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एक देश एक चुनाव’ विचार का मतलब क्या? फायदा, नुकसान से लेकर संविधान संशोधन तक

एक देश एक चुनाव’ विचार का मतलब क्या?  फायदा, नुकसान से लेकर संविधान संशोधन तक

जब मुंबई में विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया की तीसरी बैठक हो रही थी, ठीक उसी दिन केंद्र सरकार पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द की अध्यक्षता में  कमेटी गठित की  "एक देश- एक चुनाव" की संभावनाओं पर विचार करेगी. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में 'एक देश एक चुनाव' पर विचार हेतु केंद्र सरकार ने एक समिति बना दी गई है, तब यह मुद्दा बहुत विचारणीय हो गया है. इससे एक दिन पहले केंद्र सरकार ने 18 से 22 सितंबर के बीच संसद का विशेष सत्र बुलाने का ऐलान किया.स्वाभाविक तौर पर केंद्र सरकार की घोषणाओं को लेकर और राजनीतिक कयास लगने भी शुरू हो गए हैं.

‘एक देश-एक चुनाव’ लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव एक साथ करवाने की नीति के लिए केंद्र प्रयासरत है. देश में केंद्र और सभी राज्यों में सरकारों का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है. ये कार्यकाल, किसी भी महीने पूरा हो सकता है. जब किसी निर्वाचित सरकार का पांच साल का कार्यकाल पूरा हो जाता है, तो उस राज्य में अथवा केंद्र में एक निर्धारित अवधि के अंदर नए चुनाव कराना आवश्यक होता है, ताकि वहां नई सरकार गठित की जा सके. 

‘एक देश-एक चुनाव’ के पीछे सबसे बड़ा उद्देश्य तो यही है कि राजकोष पर पड़ने वाले चुनावी खर्च के बोझ को कम से कम किया जाए, जो पिछले कुछ दशकों में लगातार बढ़ता ही गया है. इसके अलावा थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद होने वाले चुनावों के दौरान आचार संहिता लागू हो जाने से बहुत सारे विकास कार्य और जनहित 1951-52 में जब पहले लोकसभा चुनाव हुए थे, तो इनमें 53 राजनीतिक दल चुनाव लड़ेरे थे, इन चुनावों में 1874 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा और खर्च आया कुल 11 करोड़ रुपए.साल  2019 के लोकसभा चुनाव में  9000 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा और खर्च आया था लगभग 60 हजार करोड़ रुपए. इन्हीं चुनावों को एक साथ करायें तो इस खर्च को काफी हद तक कम किया जा सकता है. इससे जो धन राशि बचेगी, उसका उपयोग शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित कराने जैसे कार्यों में किया जा सकता है, जिससे लोगों के जीवन स्तर में सुधार आएगा.

1999 में विधि आयोग ने भी अपनी एक रिपोर्ट में ‘एक देश-एक चुनाव’  समर्थन किया था. अगस्त 2018 में एक देश-एक चुनाव पर लॉ कमीशन की रिपोर्ट भी आई थी. लॉ कमिशन की रिपोर्ट में सुझाव दिया गया था कि देश में दो फेज में चुनाव कराए जा सकते हैं. विधि आयोग ने कहा था कि एक साथ चुनाव कराने के लिए कम से कम पांच संवैधानिक सिफारिशों की आवश्यकता होगी. देशभर में एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा. इसके लिए संविधान के अनुच्छेद- 83, 85, 172, 174 और 356 में संशोधन का जिक्र किया गया था.‘एक देश एक चुनाव’ का विचार काफी फायदेमंद है. इसमें प्रशासनिक तंत्र और सुरक्षा बलों पर बार-बार पड़ने वाला बोझ कम होगा, जिससे वे चुनावी गतिविधियों से बचा समय दूसरे उपयोगी कामों को दे सकते हैं. 

भारत जैसे बड़े लोकतंत्र में बहुत सारी चुनौतियां भी सामने आ सकती हैं. इनमें सबसे बड़ी समस्या तो लोकसभा और विधानसभाओं के कार्यकाल के बीच सामंजस्य स्थापित करने की है. अगर हम 2024 के आम चुनावों को ही लें तो देश के करीब आधे राज्यों की विधानसभाएं इन चुनावों के दौरान ऐसी होंगी, जिन्होंने अपना आधा कार्यकाल भी पूरा नहीं किया होगा. ऐसे में उन्हें बीच में भंग कर नए चुनाव कराना बहुत सारे राजनीतिक विवादों का सबब बन सकता है.अनुच्छेद 83 के अनुसार लोकसभा का कार्यकाल उसकी पहली बैठक की तिथि से पांच वर्ष होगा और अनुच्छेद 172, जो यही प्रावधान विधानसभा के लिए निर्धारित करता है. इसके अलावा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम और संसदीय प्रक्रिया में भी बदलाव करना होगा.

एक साथ पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव करवाने के लिए भी कम से कम दो साल का समय लगेगा.वन नेशन, वन इलेक्शन' को लागू करना इतना आसान नहीं है. संविधान में कई संशोधन करने होंगे. राज्यों से सहमति लेनी होगी और राज्य विधानसभाओं को भंग करना होगा.बता दें आजाद भारत में 1967 तक एकसाथ चुनाव होते थे, लेकिन 1968-69 में कुछ राज्य विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं. ऐसे में एक साथ चुनाव की परंपरा समाप्त हो गई. साथ ही 1970 में पहली बार लोकसभा को भी निर्धारित समय से पहले ही भंग कर दिया गया था और 1971 में देश मध्यावधि चुनाव की तरफ बढ़ गया था.


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