PATNA : नीतीश कुमार
के जदयू का राजस्थान के बांसवाड़ा से क्या रिश्ता है? लोगों के मन में जिज्ञाषा है कि आखिर नीतीश
कुमार राजस्थान के एक छोटे से जिले, बांसबाड़ा में ही क्यों गये ? जदयू के चुनाव चिह्न ‘तीर’ के जन्मदाता मामा बालेश्वर शरण की कर्मस्थली है
बांसवाड़ा। मामा बालेश्वर शरण भील जनजाति के कल्याण के लिए जाने जाते हैं। भील
समुदाय के लिए तीर-कमान जीवन का अटूट हिस्सा है। उन्होंने ही जदयू को भीलों की
पहचान ‘तीर’ को चुनाव चिह्न के रूप में अपनाने की सलाह
दी थी। जदयू ने उनकी सलाह पर अमल किया। आज जदयू का यही पार्टी सिम्बल है।
भील समुदाय के बीच दिन रात काम करने की वजह से
बालेश्वर शरण का नाम राजनीतिक गलियारे में गूंजने लगा। उनका आश्रम मध्य प्रदेश के
झाबुआ में था लेकिन वे बांसवाड़ा और डुंगरपुर में अधिक सक्रिय रहे।
बालेश्वर शरण की लोकप्रियता से प्रभावित हो कर आचार्य नरेन्द्र देव, जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया, चौधरी चरण सिंह, जॉर्ज फर्नांडीस जैसे नेता उनसे मिलने आते थे। बाद में सामाजवादी विचारधारा के दलों ने उनका वोट के लिए भी इस्तेमाल किया।
समाजवाद के प्रति रुझान होने के वजह से वे इसके
नजदीक आये। 1973 में उन्हें अखिल भारतीय संयुक्त समाजवादी पार्टी का अध्यक्ष चुना
गया था। 1977 में उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनाया गया था। 1998 में निधन के बाद झाबुआ
आश्रम में उनकी प्रतिमा स्थापित की गयी थी। इस कार्यक्रम में नीतीश कुमार भी गये
थे। नीतीश कुमार
उस समय रेल मंत्री थे।
इस तरह मामा
बालेश्वर शरण का नाम जदयू के लिए बहुत खास है। इस लिए नीतीश कुमार ने उनकी कर्मस्थली बांसवाड़ा
से अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू करने की योजना बनायी।