पटना- कैसे किसी को गवाही की बदौलत सजा दिलाई जा सकती है इसके मिसाल थे सिवान के चंदा बाबू. बिहार के बाहुबली नेता शहाबुद्दीन को चर्चित तेजाब कांड में उन्होंने सजा दिलाई. तमाम धमकियों के बावजूद चंद्रकेश्वर प्रसाद उर्फ चंदा बाबू टस से मस नहीं हुए. हालांकि, इस लड़ाई में उन्होंने अपना पूरा परिवार खो दिया. आपराधिक मामलों में गवाहों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. बिहार सहित देश में ऐसे कई मामले देखने को मिले हैं। गवाही की बदौलत इंसाफ होते इस देश ने देखा है, और गवाह के बिना इंसाफ को दम तोड़ते भी देश ने देखा है. बिहार के अररिया में एक पत्रकार की गोली मारकर हत्या कर दी गई। बताया गया कि वो अपने छोटे भाई के मर्डर केस में गवाह थे, इसलिए विरोधी खेमे ने उनको मौत के घाट उतार दिया.कहा जा रहा है कि अपने छोटे भाई गब्बू की मर्डर केस में पत्रकार विमल कुमार यादव गवाह थे. इन पर गवाही नहीं देने का दबाव था, इसे लेकर बार-बार धमकी भी दी जा रही थी.किसी भी मुकद्दमें में गवाह की भहत्वपूर्म भूमिका होती है,ऐसे में आरोपी गवाह पर येन केन प्रकारेण दबाव बनाते हैं.गवाह के नहीं मानने पर उन्हें इसकी कीमत जान दे कर भी चुकानी पड़ती है.
गवाह के मुकरने के कारम पूरे केस पर क्या असर पड़ता है देस ने देखा है. याद कीजिए मुजफ्फरनगर कांड,एक अदालत में 2013 दंगों के एक मुक़दमे में गवाह पलट गए जिसकी वजह से 10 मुलज़िमों को रिहाई मिल गई. इनपर एक बच्चे और उसकी चाची की हत्या का इलज़ाम था.अपने बयान से मुकरने वाले कुल दस गवाहों में से पांच पीड़ितों के रिश्तेदार थे.
जेसिका लाल कांड अभी सबके जेहन मे होगा. इस केस में गवाहों के बयान से मुकरने के कारण सभी अभियुक्त निचली अदालत से बरी हो गए थे.जेसिका लाल की हत्या दिल्ली के एक बार में गोली मारकर कर दी गई थी.केस में नौ लोगों के ख़िलाफ़ मुक़दमा चला. कांग्रेस नेता विनोद शर्मा के बेटे मनु शर्मा मुक़दमे में अभियुक्त थे. कुल छह में से तीन गवाह बयान से मुकर गए थे. तीन अपनी बात पर क़ायम रहे लेकिन सबूतों के अभाव में अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया. मजबूत गवाह के कारण
मामला दिल्ली हाई कोर्ट गया जहाँ मनु शर्मा समेत तीन लोगों को दोषी पाया गया. मनु को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई गई. हाई कोर्ट ने 2013 में दो गवाहों पर बयान से पलटने और अदालत को गुमराह करने का मुक़दमा चलाने का आदेश दिया.
अब सलमान ख़ान का हिट एंड रन का मामला याद कीजिए. सितंबर 2002 में हुई इस घटना के मुक़दमे की सुनवाई करते हुए मुंबई की एक निचली अदालत ने सलमान खान को पांच साल की सजा सुनाई. सलमान ने इस फ़ैसले को बांबे हाई कोर्ट में चुनौती दी, जहां से उन्हें राहत मिली. लेकिन इस मुक़दमे में सचिन कदम नाम के एक गवाह ने पहले ही अपना बयान पलट दिया था.इस वजह से इस मामले के सरकारी वकील को मुक़दमे में काफी परेशानी हुई. बॉंबे हाई कोर्ट ने भी सरकारी वकील के ख़ास गवाह रविंदर पाटील की गवाही पर संतुष्टि नहीं जताई. इस वजह से सलामन बरी हो गए.
इसलिए किसी भी मुकद्दमें में गवाहों का केस अहम होता है.