बिहार उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश उत्तराखंड झारखंड छत्तीसगढ़ राजस्थान पंजाब हरियाणा हिमाचल प्रदेश दिल्ली पश्चिम बंगाल

LATEST NEWS

जो थी आज तक हकीकत वही बन गया फ़साना ...बहुत कठिन जदयू के अध्यक्ष की डगर, आरसीपी से पहले इनके लिए भी थी राहें मुश्किल

जो थी आज तक हकीकत वही बन गया फ़साना ...बहुत कठिन जदयू के अध्यक्ष की डगर, आरसीपी से पहले इनके लिए भी थी राहें मुश्किल

PATNA : जो थी आज तक हकीकत वही बन गया फ़साना... जदयू इन दिनों इसी गीत के मुखड़ा को जी रहा है और वह पहला ऐसा क्षेत्रीय दल बना है, जिसके दो- दो राष्ट्रीय अध्यक्षों ने पार्टी को अलविदा कहा है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सबसे विश्वस्त रहे आरसीपी सिंह ने गुरुवार को भाजपा का दामन थाम लिया. आरसीपी सिंह से पहले शरद यादव ने जदयू से खुद को अलग किया था.

शरद लगभग 20 साल पुरानी जदयू पार्टी के स्थापना के बाद से आधे से अधिक समय तक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे थे. वहीँ आरसीपी सिंह का अध्यक्षीय कार्यकाल महज एक साल ही था, लेकिन उन्हें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का सबसे करीबी माना जाता रहा है. अध्यक्ष बनने से पहले उन्हें संगठन का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया था. नीतीश ने उन्हें दो बार राज्यसभा भेजा. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में वे जदयू कोटा से केंद्रीय मंत्री भी रहे.

इन मुद्दों पर हुआ टकराव

शरद यादव से नीतीश कुमार का टकराव नीतिगत था. एनडीए के संयोजक रहे शरद साल 2013 में इससे अलग हो गए. जदयू के भाजपा से रिश्‍ते खराब हुए और साल 2015 का विधानसभा चुनाव जदयू- राजद ने एकसाथ लड़ा, लेकिन साल 2016 में नोटबंदी के सवाल पर शरद यादव और नीतीश कुमार के बीच मतभेद था. हालाँकि विवाद के और भी कारण थे, लेकिन भाजपा के प्रति नीतीश का झुकाव अंत में शरद की जदयू से विदाई का कारण बना. उनकी राज्यसभा सदस्यता भी समाप्त हो गई. हालांकि, निधन से कुछ महीने पहले शरद से नीतीश के संबंध सुधरे थे और शरद राजद सदस्य के रूप में दुनिया से विदा हुए.

जार्ज ने भी बनायी थी दूरी  

समता पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे जार्ज फर्नांडिस कभी जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं बन पाए. साल 2004 में वह इस पद की लड़ाई भी हार गए थे. नीतीश की मदद से शरद जदयू के अध्यक्ष बने. इसके बाद के पांच सालों में जार्ज और नीतीश के संबंध बिगड़ते चले गए.

साल 2009 में वह दिन भी आया, जब जदयू ने जार्ज को मुजफ्फरपुर से लोकसभा का उम्मीदवार नहीं बनाया. जार्ज निर्दलीय लड़े और हारे. नीतीश ने उसी साल राज्यसभा में भेजकर उनका सम्मान किया. यह मनोनयन उप- चुनाव के तहत हुआ था, जिसका कार्यकाल महज एक साल का ही था. राज्यसभा से विदा होने के बाद स्वास्थ्य कारणों से जार्ज फिर कभी राजनीतिक रूप से सक्रिय नहीं हो पाए.

भाजपा का समर्थन पड़ा भारी

उधर शरद भाजपा का विरोध कर रहे थे तो नीतीश कुमार की भाजपा से नजदीकी बढ़ रही थी और जब समय बदला तो भाजपा की यही करीबी आरसीपी पर भारी पड़ गई. जदयू के आम कार्यकर्ताओं तक यह चर्चा चली गई थी कि आरसीपी जदयू को भाजपा की झोली में डाल देंगे. उनका हाव- भाव भी बदल गया था. अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए उन्होंने एक लाख 11 हजार रुपये का दान दिया. पूजा- भजन में उनका अधिक समय गुजरने लगा और गुरुवार को उन्होंने भाजपा की सदस्यता भी ग्रहण कर ली.

Suggested News