बिना चिराग पासवान बिहार में नहीं लगेगी एनडीए की नैया पार, सबसे ज्यादा वोट प्रतिशत पर पकड़, भाजपा को हुआ राजनीतिक ताकत का अहसास

पटना. लोकसभा चुनाव 2024 के पहले भाजपा की नजर बिहार पर है. बिहार की 40 लोकसभा सीटों को जीतने के लिए भाजपा ने अभी से तैयारी तेज कर दी है और इसमें अपने साथ नए साथियों को जोड़कर बिहार की राजनीति में जातीय वोटबैंक को अपने पाले में लाने की तैयारी में लग गई है. नतीजा है कि भाजपा ने 18 जुलाई की एनडीए की दिल्ली में होने वाली बैठक में बिहार से जिस प्रमुख नेता को शामिल कराने की सबसे बड़ी तैयारी की है वह हैं चिराग पासवान. वही चिराग जिनके पिता रामविलास पासवान के निधन के बाद लोजपा दो फाड़ हो गई थी तो चिराग के चाचा पशुपति पारस को तब भाजपा ने तरजीह देकर केंद्र में मंत्री बना दिया. 

हालांकि अब बिहार में बदले राजनीतिक हालातों में चिराग ने साबित किया है उनके साथ पासवान समुदाय का बड़ा वोट बैंक है. यह मोकामा और गोपालगंज विधानसभा उपचुनाव में भी देखने को मिला था जब बिना एनडीए में रहे ही चिराग को भाजपा ने अपने उम्मीदवारों के लिए चुनाव प्रचार करने उतारा था. साथ ही कई मौके आए जब साबित हुआ कि पशुपति पारस के मुकाबले पासवान बिरादरी में चिराग की लोकप्रियता ज्यादा है. भाजपा ने अब उसी को भांपते हुए चिराग पासवान को हर हाल में एनडीए में शामिल करने के लिए बड़ा प्रयास किया है. इसका अंदाजा इससे लगता है कि चिराग से पिछले एक सप्ताह में दो बार केंद्रीय राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने मुलाकात की. 

दरअसल, चिराग पर भाजपा की मेहरबानी का मूल कारण बिहार में पासवान वोटों की अच्छी खासी तादाद है. एक अनुमान के मुताबिक बिहार  में लगभग 16% दलित वोटर्स हैं. इनमें लगभग 6% पर पासवान वोटों चिराग पासवान का एकाधिकार माना जाता है. किसी एक पार्टी के साथ 6 प्रतिशत वोटों का जुड़ाव होना ही चिराग की राजनीतिक ताकत को दर्शाता है. अनुमान के तौर पर राज्य के हर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में 40 से 50 हजार दलित मतदाता हैं, जो जीत हार में निर्णयक भूमिका निभाते हैं. दलितों में सर्वाधिक संख्या रविदास, मुसहर और पासवान जाति की है. माना गया कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में लोजपा के 6 सीटों पर जीतने में कामयाबी मिलने का एक बड़ा कारण उसका एनडीए में रहना और पासवान वोटों का 100 फीसदी लोजपा का साथ देना रहा. 

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ऐसे में बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली महागठबंधन सरकार को जोरदार टक्कर देने के लिए भाजपा ने अपनी रणनीति में चिराग पासवान को सबसे मुफीद चेहरा माना है. चिराग के बहाने भाजपा के साथ 6 फीसदी वोटों का जुड़ाव भी हो जाएगा. यह वर्ष 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी साबित हुआ था जब चिराग ने सबसे ज्यादा नुकसान नीतीश कुमार को पहुंचाया था. भले चिराग की पार्टी को सिर्फ एक सीट पर कामयाबी मिली (बाद में लोजपा विधायक ने जदयू का दामन थाम लिया था) लेकिन उन्होंने जदयू को मात्र 43 सीटों पर समेटने में अहम भूमिका निभाई. चिराग की इस राजनीतिक ताकत को देखते हुए अब भाजपा ने हर हाल में चिराग को 18 जुलाई की एनडीए की बैठक में शामिल करने की तैयारी की है. 

माना जा रहा है कि चिराग ने इसके लिए भाजपा के सामने कुछ शर्त भी रखा है जो भाजपा मान सकती है.  चिराग पासवान को एनडीए में आने के पहले उनकी शर्तों पर विचार करने का मुद्दा प्रमुख है. इसमें चिराग को केंद्र में मंत्री बनाने सहित चाचा पशुपति पारस से चल रहा उनका राजनैतिक विवाद को पाटने की कोशिश और लोकसभा चुनाव 2019 में चिराग की पार्टी को बिहरा में अधिकाधिक सीट देने की बातें शामिल बताई जा रही है. कहा जा रहा है कि चिराग की शर्तों पर भाजपा ने सहमति जताई है जिसके बाद जेपी नड्डा की ओर से उन्हें चिट्टी लिखी गई है और 18 जुलाई की बैठक में बुलाया गया है. इससे भाजपा को बड़ा फायदा होने की उम्मीद है और 6 फीसदी वोटों का लाभ भी मिल सकता है.