BIHAR NEWS: करप्शन पर प्रहार करने की बात करने वाली नीतीश सरकार ने अपना हथियार खुद ही भोथर कर लिया है. सरकार ने अपने सबसे ताकतवर हथियार को इस तरह पंगु बना दिया है, जिससे कि वो अंतिम सांसें गिन रहा.जिसका परिणाम है कि भ्रष्टाचार में लिप्त अफसरों की पौ-बारह है. हम बात कर रहे निगरानी अन्वेषण ब्यूरो की. यह एजेंसी निगरानी विभाग के जिम्मे काम करती है. इस विभाग के मंत्री खुद मुख्यमंत्री हैं. उनके जिम्मे वाले निगरानी ब्यूरो की स्थिति यह कि 10 फीसदी ताकत के साथ काम कर रही है. सिपाही से लेकर हवलदार ,दारोगा से लेकर एएसपी-एसपी तक के अधिकारियों की भारी कमी है. यूं कहें कि सुशासन राज में निगरानी ब्यूरो की मारक को जान बूझकर कम कर दिया गया है,ताकि भ्रष्ट अधिकारियों की चांदी रहे.
10 फीसदी Strength से कैसे रूकेगा करप्शन ?
निगरानी ब्यूरो अपनी कुल क्षमता के 10 फीसदी ताकत से काम कर रही है. अधिकारियों की कमी से जांच प्रभावित हो रहा है. इस पर निगरानी विभाग के प्रधान सचिव अरविंद चौधरी से सवाल पूछा गया. सूचना एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा आयोजित किए गए प्रेस कांफ्रेंस में निगरानी विभाग के प्रधान सचिव अरविंद चौधरी ने पत्रकारों के सवाल पर कहा कि आप सही कह रहे हैं. मुख्यमंत्री जी ने निगरानी विभाग की समीक्षा की थी. उन्होंने भी इस संबंध में आवश्यक निर्देश दिए हैं. जैसे-जैसे उपलब्धता होती है, वैसे-वैसे पदस्थापन होगी. बहुत जल्द इन रिक्तियों को भर दिया जायेगा.
नीतीश सरकार ने निगरानी ब्यूरो की ताकत को किया कम
बिहार की जांच एजेंसी निगरानी अन्वेषण ब्यूरो के पास न तो सिपाही है और न ही हवलदार,जमादार और दारोगा. एसपी भी नहीं है और न डीआईजी. अब आप कहेंगे कि निगरानी ब्यूरो काम कैसे कर रही है ? हम बताते हैं...यह जांच एजेंसी काम नहीं कर रही है, सिर्फ खानापूर्ति कर रही है. क्यों कि बिना ताकत के काम कैसे होगा ? निगरानी ब्यूरो की ताकत उसके स्टाफ और अफसर होते हैं. लेकिन इस एजेंसी के पास क्षमता के महज 10 फीसदी सिपाही-हवलदार-जमादार-दारोगा हैं. ब्यूरो के पास भ्रष्टाचार संबंधी शिकायतों का अंबार है. उन शिकायतों की जांच नहीं हो पा रही है. सरकारी सेवकों के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति अर्जन(डीए) का नया केस नहीं हो पा रहा है. सैकड़ों पुराने केस लंबित हैं, जांच पूरी नहीं हो पा रही है. अफसरों की कमी की वजह से एक-एक जांच अधिकारी (आईओ) पर 20-30 केसों का जिम्मा है. आप समझ सकते हैं कि एक-एक अधिकारी इतनी संख्या में केस की जांच कैसे कर सकता है, वो भी भ्रष्टाचार संबंधी मामलों का. ब्यूरो के पास जितनी क्षमता है, उसी से पुराने केसों की जांच का काम तेज किया है.
निगरानी ब्यूरो में कितने पद हैं....
अब आपको बताते हैं कि सरकार ने निगरानी ब्यूरो कितना पद सृजित कर रखा है. निगरानी ब्यूरो के बॉस डीजी/एडीजी रैंक के पुलिस अधिकारी होंगे. इसके अलावे एक आईजी का पद सृजित है. वहीं डीआईजी-2, एसपी/एएसपी के 7 पद सृजित हैं. वहीं स्पेशल मजिस्ट्रेट के 2 पद, डीएसपी के 33 पद बनाए गए हैं. एपीपी -6, इंस्पेक्टर- 47, सब इंस्पेक्टर-18, स्टोनो एसआई-2, स्टोनो ए.एसआई-15, ए.एस.आई-12, हवलदार-10 और सिपाही के 96 पद सृजित किए गए हैं.
DIG एक भी नहीं..SP के पांच पद खाली, सिपाही महज 10 फीसदी
निगरानी ब्यूरो की वर्तमान हालत क्या है..यह भी बताते हैं. इस जांच एजेंसी के बॉस बिहार के वर्तमान डीजीपी आलोक राज हैं. लेकिन नीतीश सरकार ने हाल ही में आलोक राज को बिहार के डीजीपी का अतिरिक्त प्रभार दे दिया है. डीजीपी बनने के बाद आलोक का पूरा ध्यान पुलिसिंग पर है, ऐसे में निगरानी ब्यूरो का काम दूसरे नंबर पर हो गया है. क्यों कि किसी भी राज्य में डीजीपी का पद सबसे महत्वपूर्ण होता है. अब आइए..आईजी पर. वर्तमान में एस.प्रेम लता पदस्थापित हैं. लेकिन डीआईजी का दोनोंं पद खाली है. एसपी-एएसपी के सात पद हैं,जिनमें सिर्फ दो भरे हैं,यानि एसपी का सात पद खाली है. डीएसपी के भी कई पद खाली थे, लेकिन हाल में इंस्पेक्टरों को डीएसपी में प्रोन्नति दी गई है, लिहाजा निगरानी ब्यूरो में पदस्थापित कई इंस्पेक्टर डीएसपी बन गए हैं, इस तरह से वर्तमान में डीएसपी का सृजित पद भरा है. लेकिन अब इंस्पेक्टर क्षमता से कम हो गए हैं. निगरानी ब्यूरो में एसआई-एएसआई-हवलदार और सिपाही का भारी अभाव है.बताया जाता है कि वर्तमान में महज 10 सिपाही कार्यरत्त हैं. जबकि सिपाही-हवलदार- जमादार का सृजित पद लगभग डेढ़ सौ है.