Nawada Fire: जाति की राजनीति के लिए बदनाम बिहार में यहां के सियासतदान ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ते जिसमें बिहार के लोग जाति के इर्द-गिर्द ही उलझे रहें. बिहार के नवादा में महादलितों के दर्जनों घरों में लगाई गई आग कि लपटें अभी शांत भी नहीं हुई थी कि सियासतदानों ने इस घटना के बहाने जातीय संघर्ष पैदा करने वाली बयानबाजी शुरू कर दी. नवादा जिले के कृष्णा नगर में बुधवार, 19 सितम्बर की शाम महादलित बस्ती को आग के हवाले करने वाला मुख्य आरोपी दलित वर्ग से आने वाला नंदू पासवान था. लेकिन बिहार के दो प्रमुख राजनीतिक चेहरों जीतन राम मांझी और तेजस्वी यादव ने इस घटना को यादव बनाम भूमिहार बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. नतीजा है कि दलितों ने जलाए महादलितों के घर और सियासी आग में झुलस रहे यादव- भूमिहार.
यादव बनाम भूमिहार : महादलित बस्ती के जलते घरों की आग बुझाने के बदले नेताओं ने अपने बेसिरपैर के बयानों से बिहार को जातीय संग्राम में धकेलने कि पुरजोर कोशिश की, लेकिन उनके बेलगाम जुबान का मतलब जनता समझ चुकी थी. परिणाम स्वरूप ये पूरी तरह विफल रहे. इस बार नेताओं ने इस आग में बिहार को यादव बनाम भूमिहार के बीच बाँटने कि अजीबोगरीब कोशिश की. पिछले कई दशकों से इन दोनों जातियों को एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी के रूप में पेश कर अपनी सियासी रोटी सेंकने वाले नेताओं ने फिर से बिहार को यादव और भूमिहार के बीच बाँटने का हास्यास्पद (कु) कृत्य किया.
मांझी का यादव पर हमला : जीतन राम मांझी ने कथित दावा किया कि महादलितों के घरों में आग लगाने वाले यादव समुदाय के लोग थे और एक दल के समर्थक थे. उनका इशारा लालू यादव की पार्टी राजद की ओर था. वहीं महादलित बस्ती को जलाने के मामले में पुलिस गिरफ्त में आए आरोपियों में अधिकांश आरोपी दलित वर्ग से रहे. मांझी ने लालू यादव पर एक ओर हमला करते हुए कहा कि मांझी ने सोशल मीडिया पर लिखा कि लालू यादव अपनी जाति छुपा रहे हैं और उन्हें गर्व से अपनी जाति का नाम लेना चाहिए. उन्होंने लालू यादव को चुनौती दी कि वे भी गर्व से कहें कि वे ‘गरेड़ी’ हैं, जिस तरह मांझी खुद को ‘मुसहर’ कहते हैं.
तेजस्वी के निशाने पर भूमिहार : दूसरी ओर तेजस्वी यादव ने मांझी को जवाब देने के लिए अजीबोगरीब बातें की. तेजस्वी ने जीतन राम मांझी का नाम बदलकर ‘जीतनराम शर्मा’ कहकर उन पर तंज कसा. तेजस्वी का मांझी को ‘शर्मा’ कहना एक तरह से यह संकेत रहा कि अब जीतन राम मांझी ‘भूमिहार’ हो गए हैं. यानी नवादा की महादलित बस्ती में आग लगाने वाले भले ही दलित वर्ग से आने वाला नंदू पासवान और अन्य हों लेकिन तेजस्वी यहां भी भूमिहार जाति को निशाने पर लेने से नहीं चूके.
जातीय संग्राम में बिहार : एक दौर में लालू यादव पर भी ऐसे ही आरोप लगते थे कि वे भूमिहार सहित सवर्ण वर्ग को जानबूझकर कर निशाने पर लेते हैं जिससे उनका यादव और अन्य पिछड़े तथा दलित वर्ग के वोटरों पर प्रभाव बढ़े. हालांकि तेजस्वी ने अपनी छवि बदलने की कोशिश की और ‘ए टू जेड’ को साथ लेने का दावा किया. यानी कि वे सभी जातियों को जोड़कर चलने कि बात किये. लेकिन अब नवादा की महादलित बस्ती कि आग में सियासी रोटी सेंकने के चक्कर में जबरन ‘भूमिहार’ पर हमला कर दिया.
विधानसभा चुनाव पर नजर : जीतन राम मांझी हों या तेजस्वी यादव इन नेताओं के जातीय संग्राम बढ़ाने वाले बयान से बिहार जरुर बदनाम हुआ है. ऐसे में यह बड़ा सवाल है कि महादलित बस्ती में जलाए गए घरों के कारण जो लोग बेघर हुए हैं उन्हें राहत दिलाने के बदले बिहार को जातीय आग में झोंकने वाले बयान कब रुकेगा? सवाल बड़ा है कि क्या कास्ट के सहारे कुर्सी मेनेजमेंट के सियासी संस्कार में डूबे राजनेता इनसे अलग रास्ता अख्तियार कर पाएंगे, ऐसा तो नहीं लगता. चुकी सिर पर बिहार विधानसभा चुनाव 2025 आ खड़ा हुआ है. सियासी खेत में वोट कि फसल काटने के लिए अभी से जातीय जुगाड़ फिट करने की कुल्सित कोशिश शुरू हो गई है. ‘ए टू जेड’ कि बात करने वाले तेजस्वी यादव को पता है कि विधानसभा चुनाव् से पहले जितना ज्यादा सम्भव हो सवर्णों को टारगेट कर पिछड़ा, अतिपिछडा और दलितों को गोलबंद किया जाए. दूसरी तरफ एनडीए के बड़े घटकों के बड़े नेताओं को यह इल्हाम है कि सवर्णों का एक बड़ा वोट बैंक हमारे हिस्से में है. वहीं अतिपिछडे और महादलितों कि गोलबंदी से बिहार के सत्ता का गोल आसानी से साधा जा सकता है. इतिहास गवाह है कि बिहार कि राजनीति चुनाव आते आते जाति की छाती पर जमकर नाचती है. अब नवादा के महादलितों के जलते घरों को देख भला नेताजी जातीय बांसुरी का राग कैसे न बजाएं?