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Mahabharat: द्रौपदी पांडवों के साथ पत्नी के रूप में कैसे रहती थी साथ? जानें किसके साथ बिताती थी कितना समय

द्रौपदी ने न केवल पत्नी के रूप में बल्कि एक सलाहकार और प्रेरणा स्रोत के रूप में भी पांडवों का मार्गदर्शन किया। वह हर कठिनाई में सभी भाइयों के प्रति समान भाव रखती थीं और उनके कल्याण का ध्यान रखती थीं।

Mahabharat:  द्रौपदी पांडवों के साथ पत्नी के रूप में कैसे रहती थी साथ? जानें किसके साथ बिताती थी कितना समय
पांडवों के साथ रहती थी द्रौपदी- फोटो : social media

Mahabharat: महाभारत में द्रौपदी के विवाह के बाद एक महत्वपूर्ण नियम बनाया गया, जिसमें तय हुआ कि वह प्रत्येक पांडव भाई के साथ एक समय में केवल एक ही रहेगी। इस नियम के अनुसार, जब द्रौपदी किसी पांडव के साथ होंगी, तो अन्य भाइयों को उनके कक्ष में प्रवेश करने की अनुमति नहीं होगी। यदि कोई भाई अनजाने में भी इस नियम का उल्लंघन करेगा, तो उसे 12 वर्षों के लिए वनवास जाना पड़ेगा।

कैसे टूटा यह नियम?

इस नियम का पालन सभी पांडव भाइयों ने कड़ाई से किया। हालांकि, एक बार अर्जुन ने इसे तोड़ा। एक दिन अर्जुन को अपने धनुष और तीर की आवश्यकता पड़ी, जो युधिष्ठिर और द्रौपदी के कक्ष में थे। अर्जुन को पता था कि कक्ष में प्रवेश करना नियम का उल्लंघन होगा, लेकिन स्थिति की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने प्रवेश कर लिया।

अर्जुन का आत्मनिर्वासन

नियम तोड़ने के बाद अर्जुन ने खुद को 12 वर्षों के लिए वनवास की सजा दी। इस दौरान, उन्होंने विभिन्न स्थानों पर यात्रा की, नागकन्या उलूपी, चित्रांगदा और सुभद्रा से विवाह किया, दिव्यास्त्रों का अभ्यास किया, और तपस्या के माध्यम से भगवान शिव को प्रसन्न किया।

द्रौपदी का प्रत्येक पांडव के साथ समय बांटने का नियम

महाभारत की विभिन्न व्याख्याओं के अनुसार, द्रौपदी प्रत्येक पांडव के साथ एक निश्चित समय तक रहती थीं। कुछ संस्करणों के अनुसार, यह अवधि प्रत्येक पांडव के साथ 72 दिनों (दो महीने और 12 दिन) की थी। इस प्रकार, पांचों पांडवों के साथ द्रौपदी का एक वर्ष का चक्र पूरा होता था। दक्षिण भारतीय महाभारत के संस्करणों में कहा गया है कि द्रौपदी प्रत्येक पांडव के साथ एक-एक वर्ष तक रहती थीं।

द्रौपदी का अन्य पांडवों के प्रति व्यवहार

जब द्रौपदी किसी एक पांडव के साथ होती थीं, तो उनका अन्य भाइयों के प्रति व्यवहार गरिमापूर्ण और मर्यादित होता था। वह किसी अन्य पांडव के व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप नहीं करती थीं और सभी के प्रति समान सम्मान और स्नेह बनाए रखती थीं।

द्रौपदी के पांच पुत्र

महाभारत में द्रौपदी के पांच पांडवों से पांच पुत्र हुए, जिन्हें उपपांडव कहा जाता है।

प्रतिविंध्य: युधिष्ठिर के पुत्र, जिन्हें धर्मशील माना गया।

सुतसोम: भीम के पुत्र, जो उनकी शक्ति और साहस के उत्तराधिकारी थे।

श्रुतकीर्ति: अर्जुन के पुत्र, जो उनके पराक्रम का प्रतीक थे।

श्रुतसेन: नकुल के पुत्र, जिनमें नकुल की सौंदर्य और वीरता झलकती थी।

शतानीक: सहदेव के पुत्र, जो उनकी बुद्धिमत्ता और रणनीतिक कौशल का प्रतिनिधित्व करते थे।

महाभारत युद्ध में इन उपपांडवों ने पांडवों की ओर से युद्ध लड़ा, लेकिन अश्वत्थामा के धोखे से सोते समय उनकी हत्या कर दी गई।

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