UP NEWS: पहली बार डिजिटल अरेस्ट साइबर ठगी पर सबसे तेज़ फैसला, CBI अधिकारी बनकर महिला डॉक्टर से 85 लाख की ठगी करने वाले को 7 साल की सजा

लखनऊ: लखनऊ की एक अदालत ने खुद को CBI अधिकारी बताकर महिला डॉक्टर से 85 लाख रुपये की साइबर ठगी करने वाले आरोपी देवाशीष राय को सात साल की कठोर सजा सुनाई है। 16 जुलाई 2025 को सीजेएम कस्टम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया और आरोपी पर 68,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया। यह उत्तर प्रदेश का पहला मामला है जिसमें डिजिटल अरेस्ट जैसे साइबर फ्रॉड में इतनी तेजी से सुनवाई पूरी कर दोषी को सजा दी गई।
438 दिन में पूरा हुआ ट्रायल, यूपी में सबसे तेज़ सजा
इस केस की खास बात यह है कि सिर्फ 438 दिनों में पूरे मामले की जांच, ट्रायल और सजा की प्रक्रिया पूरी हो गई। देवाशीष राय को 5 मई 2024 को लखनऊ के गोमतीनगर विस्तार स्थित मंदाकिनी अपार्टमेंट से गिरफ्तार किया गया था। पुलिस ने महज 83 दिन में, यानी 2 अगस्त 2024 को चार्जशीट दाखिल कर दी थी। इसके बाद 348 दिनों में ट्रायल पूरा हुआ और 16 जुलाई 2025 को कोर्ट ने सजा सुना दी।
कैसे रची गई थी ठगी की साजिश?
1 मई 2024 को लखनऊ की डॉक्टर सौम्या गुप्ता को एक फोन कॉल आया, जिसमें कॉल करने वाले ने खुद को कस्टम अधिकारी बताया। उसने आरोप लगाया कि डॉक्टर के नाम से भेजे गए एक पार्सल से जाली पासपोर्ट और ड्रग्स बरामद हुआ है। फिर कॉल एक और व्यक्ति को ट्रांसफर की गई, जिसने खुद को CBI अधिकारी बताया। इसके बाद डॉक्टर को वीडियो कॉल पर डराया गया और बताया गया कि उन्हें "डिजिटल अरेस्ट" किया जा रहा है। आरोपी ने पीड़िता को 10 दिन तक लगातार मानसिक दबाव में रखा और अलग-अलग बैंक खातों में कुल 85 लाख रुपये ट्रांसफर करवा लिए। पीड़िता को भरोसे में लेकर डर के माहौल में यह रकम ठग ली गई।
कौन है देवाशीष राय?
देवाशीष राय लखनऊ के गोमतीनगर विस्तार के सुलभ आवास में रहता था और मूल रूप से आजमगढ़ का रहने वाला है। उसने ठगी के लिए फर्जी मोबाइल नंबर, आधार कार्ड और सिम कार्ड का इस्तेमाल किया था। कोर्ट के मुताबिक, देवाशीष ने फर्जी पहचान के सहारे सरकारी एजेंसी के नाम पर डर फैलाया और एक बेहद सुनियोजित तरीके से अपराध को अंजाम दिया।
कोर्ट ने क्या कहा अपने फैसले में?
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह अपराध न केवल एक व्यक्ति को आर्थिक नुकसान पहुंचाने वाला है, बल्कि यह समाज में सरकारी एजेंसियों के नाम पर डर का माहौल बनाकर लोगों को ठगने की कोशिश है। कोर्ट ने इस अपराध को गंभीर माना और सख्त सजा को जरूरी बताया ताकि ऐसे मामलों में सख्ती से निपटा जा सके।
पुलिस और कोर्ट की तत्परता बनी मिसाल
डीसीपी (क्राइम) कमलेश दीक्षित ने इस फैसले को साइबर अपराधियों के लिए सख्त संदेश बताया और कहा कि लखनऊ पुलिस ने जिस तेज़ी और सटीकता से डिजिटल सबूत जुटाए, उसने इस केस को मजबूत बनाया। यह मामला राज्य में त्वरित और प्रभावी न्याय का उदाहरण बन गया है।
डिजिटल ठगी के खिलाफ बड़ा संदेश
यह केस न सिर्फ डिजिटल अपराधों की गंभीरता को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि अब कानून व्यवस्था और न्याय प्रणाली ऐसे मामलों में तुरंत और कठोर कार्रवाई करने को तैयार है। जनता को भी सजग रहने की जरूरत है और किसी भी फोन कॉल या वीडियो कॉल पर सरकारी अधिकारी बनने के झांसे में आकर पैसे ट्रांसफर नहीं करने चाहिए।