UP NEWS: मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट पर इस बार होने वाला उपचुनाव राजनीति और रिश्तों का संगम बन गया है। इस सीट से चुनावी मैदान में समाजवादी पार्टी (सपा) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दो प्रत्याशी आमने-सामने हैं, जो रिश्ते में एक-दूसरे के परिवार से जुड़े हैं।
करहल सीट का सियासी इतिहास
करहल विधानसभा सीट मैनपुरी जिले की चार प्रमुख सीटों में से एक है, और यहां सपा का प्रभाव लंबे समय से बरकरार है। 2002 के विधानसभा चुनाव को छोड़कर, सपा ने यहां लगातार जीत हासिल की है। 2002 में भाजपा के सोबरन सिंह यादव ने इस सीट से जीत दर्ज की थी, लेकिन इसके बाद उन्होंने सपा का दामन थाम लिया और तीन बार लगातार सपा के टिकट पर विधायक चुने गए।
2022 में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने करहल से विधानसभा चुनाव लड़ा और भाजपा के केंद्रीय मंत्री डॉ. एसपी सिंह बघेल को हराकर इस सीट पर कब्जा जमाया। 2024 में कन्नौज से लोकसभा चुनाव जीतने के बाद अखिलेश यादव ने करहल से इस्तीफा दे दिया, जिसके चलते इस सीट पर उपचुनाव हो रहा है।
दो धुरंधरों के दामाद आमने-सामने
इस उपचुनाव में सपा ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के दामाद तेजप्रताप यादव को प्रत्याशी बनाया है। तेजप्रताप यादव का विवाह लालू प्रसाद की छोटी बेटी राजलक्ष्मी यादव से हुआ है। दूसरी ओर, भाजपा ने मुलायम सिंह यादव के परिवार से जुड़े अनुजेश यादव को उम्मीदवार बनाया है। अनुजेश यादव, मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई अभयराम यादव की बेटी और सांसद धर्मेंद्र यादव की बहन संध्या यादव के पति हैं। इस रिश्ते के आधार पर वे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के बहनोई भी लगते हैं।
रिश्तों और सियासत के बीच मुकाबला
इस चुनाव में रिश्तों का एक और दिलचस्प पहलू यह है कि सपा प्रत्याशी तेजप्रताप यादव और भाजपा प्रत्याशी अनुजेश यादव आपस में फूफा-भतीजे का रिश्ता रखते हैं। अनुजेश की पत्नी संध्या यादव, तेजप्रताप की बुआ हैं। लेकिन इस उपचुनाव में दोनों ही अपने रिश्तों से ऊपर उठकर पार्टी के प्रति निष्ठा दिखा रहे हैं।
भाजपा में शामिल होने पर परिवारिक विवाद
अनुजेश यादव के भाजपा में शामिल होने के बाद उनके साले और सपा सांसद धर्मेंद्र यादव ने उनसे सभी रिश्ते तोड़ने का ऐलान किया था और एक पत्र जारी कर कहा था कि उनका किसी भाजपा नेता से संबंध नहीं हो सकता। इसके बावजूद, हाल ही में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अनुजेश के साथ रिश्तेदारी की बात स्वीकारी और भाजपा पर तंज कसते हुए कहा कि "जब भाजपा कोई तिकड़म नहीं लगा पाई तो हमारे रिश्तेदार को ही टिकट दे दिया।"
उपचुनाव की बढ़ती प्रतिष्ठा
यह उपचुनाव केवल दो प्रत्याशियों के बीच की लड़ाई नहीं है बल्कि दो पूर्व मुख्यमंत्रियों और उनके परिवारों की प्रतिष्ठा का भी सवाल बन गया है। करहल की इस सीट पर पूरे उत्तर प्रदेश की नजरें टिकी हैं, और इस उपचुनाव को दोनों दलों के लिए प्रतिष्ठा का विषय माना जा रहा है। करहल में यह मुकाबला न केवल राजनीतिक महत्त्व का है, बल्कि इसमें रिश्तों और सियासी संघर्ष की एक अलग ही कहानी नजर आती है, जो इसे उत्तर प्रदेश के चुनावी इतिहास में एक विशेष जगह देती है।