Prayagraj Maha Kumbh 2025: गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम स्थल पर कुंभ स्नान की परंपरा का आगाज हो गया है।यह आयोजन 45 दिनों तक जारी रहेगा।पौष पूर्णिमा का आज अमृत स्नान का अवसर है। प्रातःकाल से ही भक्तगण गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदी के संगम में स्नान कर रहे हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि आज लगभग 1 करोड़ श्रद्धालु गंगा में स्नान करेंगे। इसके साथ ही, अधिकारियों ने बताया है कि पौष पूर्णिमा से एक दिन पूर्व रविवार को संगम पर लगभग 50 लाख श्रद्धालुओं ने स्नान किया।
प्रयागराज में महाकुंभ की शुरुआत हो गई है. इस दौरान दुनियाभर से करोड़ों भक्त संगम में स्नान करने वाले हैं. ब्रह्म मुहुर्त से हीं त्रिवेणी की पावन जलधारा में लोग आस्था की डुबकी लगा रहे हैं. सुबह 5.27 बजे ब्रह्म मुहूर्त से श्रद्धालु संगम तट पर स्नान शुरु हो गया है। दिनभर संगम तट के अलग-अलग घाटों पर स्नान करेंगे. पौष पूर्णिमा स्नान पर्व से ही महाकुंभ में पवित्र कल्पवास की शुरुआत हो गई है। 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर सभी 13 अखाड़ों के संत स्नान करेंगे।
समुद्र मंथन से प्राप्त कलश से बहे अमृत की कुछ बूँदों से प्राचीन काल से चली आ रही कुंभ स्नान की परंपरा का आरंभ सोमवार को हुआ है। यह मेला, जो विश्व के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक है, 26 फरवरी तक चलेगा। पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान उत्पन्न अमृत कलश को लेकर देवताओं और असुरों के बीच भयंकर युद्ध हुआ था। इस युद्ध में अमृत कलश से कुछ बूंदें पृथ्वी पर चार स्थानों पर गिरी थीं: हरिद्वार, उज्जैन, प्रयागराज और नासिक। मान्यता है कि इन स्थानों पर गिरी हुई अमृत की इन बूंदों के कारण ही इन स्थानों पर बारह वर्ष के अंतराल पर महाकुंभ का आयोजन किया जाता है।
पुराणों में वर्णित अमृत मंथन, मानवता के अस्तित्व की एक गहरी आध्यात्मिक यात्रा है। यह सिर्फ एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि जीवन के मूल तत्वों का एक उत्कृष्ट चित्रण है।
जब अनंत को मंथन किया जाता है, तो यह संकेत करता है कि मानवता के भीतर छिपे अनंत संभावनाओं को बाहर निकालने के लिए निरंतर प्रयास करने की आवश्यकता है। इस मंथन से जो अमृत निकलता है, वह असल में जीवन का सार है - ज्ञान, आनंद, शांति और मोक्ष।
देवता और असुर, दोनों ही अमृत की चाह रखते हैं। यह दर्शाता है कि जीवन के उच्चतम लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सभी प्राणी एक समान रूप से तत्पर रहते हैं। लेकिन, अमृत को पाने के लिए संघर्ष भी होता है, जो जीवन के संघर्षों का प्रतीक है।
देवगुरु वृहस्पति द्वारा अमृत कलश को विभिन्न स्थानों पर रखना, समय और स्थान की सापेक्षता को दर्शाता है। हर बार जब कुंभ का आयोजन होता है, तो यह एक नई शुरुआत का संकेत होता है। यह दर्शाता है कि जीवन चक्र चलता रहता है और नए अवसर हमेशा आते रहते हैं।
बारह वर्ष का चक्र, वृहस्पति के राशि चक्र में घूमने का प्रतीक है, जो ज्ञान और विवेक का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि ज्ञान प्राप्त करने के लिए समय और धैर्य की आवश्यकता होती है।
तीर्थ, एक पवित्र स्थल है, जो आत्मशुद्धि और मोक्ष का मार्ग दर्शाता है। कुंभ मेला, इसी तरह, एक तीर्थ है जो लोगों को एक साथ लाता है और उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है।कुंभ मेला, भारत की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह सदियों से लोगों को जोड़ता आया है और भक्ति, संस्कृति और परंपराओं का एक अद्भुत संगम है।अमृत मंथन की कथा, जीवन के गूढ़ रहस्यों को उजागर करती है।