Viral Song : तड़पाओगे तड़पा लो....हम तड़प-तड़प कर भी तुम्हारे गीत गायेंगे....66 साल बाद क्यों वायरल हुआ गाना, बता रहे बिहार के जाने-माने फिल्म विशेषज्ञ...

Viral Song : 66 साल पुराना गीत ‘तड़पाओगे तड़पा लो’ सोशल मीडिया सेंसेशन बन गया है। इस गाने पर इंस्टाग्राम पर 7 लाख से ज्यादा रील्स बनाये गए है....जानिए फिल्म विश्लेषकों की राय

तड़पाओगे तड़पा लो- फोटो : SOCIAL MEDIA

N4N DESK : सोशल मीडिया के जमाने में कौन सा गाना कब वायरल हो जाए। इसके बारे कुछ नहीं कहा जा सकता। इन दिनों इंस्टाग्राम सहित सारे सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पर स्क्रॉल करते ही एक ही गीत बार-बार सुनाई दे रहा है — "तड़पाओगे तड़पा लो"। वर्ष 1959 में आई फिल्म ‘बरखा’ का यह गीत, जिसे लता मंगेशकर ने आवाज दी थी, अचानक सोशल मीडिया पर छा गया है। इस गीत पर अब तक करीब 7 लाख रील्स बन चुकी हैं, जिनमें से कई को लाखों व्यूज और लाइक्स मिले हैं।

हर रिश्ता ढूंढ रहा है अपनी झलक

गीत के कैची बोल और भावनात्मक गहराई के चलते लोग इसे सास-बहू, पति-पत्नी, मां-बेटा या प्रेमी-प्रेमिका जैसे रिश्तों पर आधारित रील्स में इस्तेमाल कर रहे हैं। रिश्तों की जटिलताओं और भावनाओं को बखूबी दर्शाने वाला यह गीत आज के समाज में अर्थ आधारित सामाजिकता और व्यक्तिवादिता के बीच रिश्तों की तड़प को दर्शाता है — शायद यही इसकी लोकप्रियता की सबसे बड़ी वजह बन रही है।

गीत के पीछे की कहानी

‘बरखा’ फिल्म का यह गीत राजेंद्र कृष्णन द्वारा लिखा गया था और इसका संगीत चित्रगुप्त ने तैयार किया था। फिल्म में इसे शोभा खोटे और अनंत कुमार पर फिल्माया गया था। हालांकि दशकों तक यह गीत सीमित दायरे में ही सुना गया, लेकिन आज डिजिटल युग में यह वायरल ट्रेंड बन चुका है।

क्यों हुआ वायरल? विशेषज्ञ कर रहे विश्लेषण

सोशल मीडिया विशेषज्ञों का मानना है कि इस गीत की वायरल सफलता सिर्फ पुरानी धुन या लता मंगेशकर की आवाज तक सीमित नहीं है। यह आज के दौर में रिश्तों में छुपी संवेदनशीलता, असहमति और अपनापन जैसी भावनाओं को दर्शाता है, जो हर किसी के दिल को छू रहा है। वरिष्ठ फिल्म विश्लेषक प्रो. जय देव ने कहा की आसानी से समझ आते बोल और सहज मधुर संगीत के सहारे वायरल होने की ललक ने इस गीत के मुखड़े को आज की पीढ़ी के बीच नए सिरे से लोकप्रिय बना दिया है। 

वहीँ फिल्मकार प्रशांत रंजन ने बताया की सोशल मीडिया के प्रादुर्भाव तथा विशेषकर इंटरनेट के सस्ता व सुलभ होने बाद मनोरंजन के नए द्वार विकसित हो गए हैं। इसमें नई सामग्री रचे जाने के अतिरिक्त पुरानी सामग्री को इस नए माध्यम पर अनोखे संशोधन के साथ परोसा जा रहा है। जैसे पुराने जमाने के लोकप्रिय गानों को भी रील्स के माध्यम से प्रस्तुत किया जाना, इसी प्रचलन का हिस्सा है। यह मनोरंजन के माध्यमों का संक्रमणकाल है। 

लेखक एवं कला समीक्षक डॉ० कुमार विमलेन्दु सिंह ने कहा की किसी भी कालखंड का संगीत अपने युग का परिचय होता है।  आज़ादी के बाद के भारतीय संगीत का सर्वकालिक परिचय लता जी ही रहेंगी। 

बिट्स पिलानी की फ़िल्म स्टडीज़ स्कॉलर दिव्या गौतम के मुताबिक ट्रेंडिंग रील्स का मकसद ज़्यादा लोगों तक पहुँचना होता है। 'तड़पा लो' लता मंगेशकर की एक सुंदर गीत है, जिसके बोल आज की पूँजीवादी और आत्ममुग्ध दुनिया में दिल को छूती हैं। बहुत से लोग आज घर चलाने के लिए नौकरी करते हैं। लेकिन नाखुश हैं और ऐसे रिश्ते में हैं जहां मन का मेल नहीं है। फिर सामाजिक दबाव के कारण बने हुए हैं। यह रील उन रोज़मर्रा के संघर्षों को बयां करती है जो आज की युवा पीढ़ी महसूस करती है। इसलिए युवा पीढ़ी इतने पुराने गीत से ख़ुद को रिलेट कर पा रही है। 

वहीँ आकाशवाणी पटना की उद्घोषिका रचना सिंह ने कहा की लता मंगेशकर के 66 वर्ष पुराने गीत की आज रील्स पर लोकप्रियता यह दर्शाती है कि सच्चे भावों और मधुर संगीत की कोई उम्र नहीं होती। नई पीढ़ी भी उन संवेदनाओं से जुड़ रही है जो शाश्वत हैं। यह भारतीय संगीत की गहराई और लता जी की अमरता को प्रमाणित करता है।

66 साल बाद भी गीत की प्रासंगिकता

‘तड़पाओगे तड़पा लो’ आज यह साबित कर रहा है कि भावनात्मक गहराई वाले गीत कभी पुराने नहीं होते। वे समय के साथ नए अर्थ लेकर वापस लौट आते हैं — और इस बार, रील्स के ज़रिए।