Ram Mandir:विवाह पंचमी पर श्रीराम मंदिर में धर्मध्वजा आरोहण, जानिए राम ध्वज की विशेषताएँ

विवाह पंचमी का मंगल पर्व त्रेतायुग के राम सीता विवाह की स्मृति में धरा को सुशोभित करता है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के शिखर पर धर्मध्वजा आरोहण किया ।

विवाह पंचमी पर श्रीराम मंदिर में धर्मध्वजा आरोहण- फोटो : social Media

Ram Mandir: अयोध्या धाम 25 नवंबर के पावन दिवस पर पुनः आध्यात्मिक ज्योति से आलोकित हो रहा है। इस दिन, जब विवाह पंचमी का मंगल पर्व त्रेतायुग के राम सीता विवाह की स्मृति में धरा को सुशोभित करता है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के शिखर पर धर्मध्वजा आरोहण किया । यह क्षण केवल उत्सव नहीं, बल्कि रामलला के भव्य, पूर्ण और दिव्य मंदिर के उद्घोष का ऐतिहासिक प्रतीक बनकर स्थापित हुआ।

श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्रा ने स्पष्ट कहा कि ध्वजारोहण केवल उत्सव नहीं, यह घोषणा है कि मंदिर निर्माण पूर्ण हो चुका है; भगवान अपने सिंहासन पर विराजमान हैं। यह ध्वजा विश्वभर के करोड़ों भक्तों के लिए संदेशवाहक के रूप में जाएगी कि जिस स्वप्न को शताब्दियों की तपस्या ने सींचा, वह अब पूर्णता को प्राप्त हो चुका है।

अयोध्या के हनुमत निवास मंदिर के मुख्य पुजारी मिथिलेश नंदिनी शरण ने रघुवंश की ध्वजा परंपरा का वर्णन करते हुए कहा कि भगवान श्रीराम के वंश में कोविदारा वृक्ष का प्रतीक ध्वज रहा है। आज भी वही परंपरा ध्वजारोहण के रूप में जीवित है। वह बताते हैं कि ध्वजदंड पूर्व में स्थापित किया जा चुका है तथा ध्वजा का केसरिया होना अधिक संभावित है।

इस दिव्य ध्वजा की संरचना स्वयं एक कला–विधान है।

कुल ऊँचाई : 191 फ़ुट

मुख्य शिखर की ऊँचाई : 161 फ़ुट

ध्वज की लंबाई : 22 फ़ुट

चौड़ाई : 11 फ़ुट

वज़न : 2–3 किलोग्राम

ध्वजदंड : 42 फ़ुट

ध्वज पर सूर्यदेव का तेजस्वी चिह्न और कोविदार का पवित्र संकेत अंकित है। यह ध्वज 360 डिग्री घूमने वाले बॉल–बियरिंग यंत्र से युक्त है, जिससे तीव्र हवाओं में भी इसकी गरिमा अक्षुण्ण बनी रहे।

पुजारी शरण बताते हैं कि कपिध्वज, कोविदार ध्वज, गरुड़ ध्वज और वाण ध्वज ये सभी धर्मराज्य के प्रतीक हैं; परंतु रामजी का पैतृक ध्वज कोविदार ध्वज माना गया है। अतः इस ध्वजारोहण में वंश–परंपरा का पुनःप्रत्याभास भी निहित है।

ध्वज निर्माण भी उतना ही दिव्य और श्रमसाध्य है। सात कारीगरों ने निरंतर 25 दिनों तक इसे हस्त–सिलाई कर तैयार किया है। इसका निर्माण एविएशन–ग्रेड पैराशूट नायलॉन, रेशमी सैटिन धागों, और तीन परतों वाली भारतीय सामग्री से किया गया है, जिससे यह ध्वज प्रचंड धूप, वर्षा, आर्द्रता और कठिन मौसम परिस्थितियों में भी अविचल बना रहे।यह ध्वजा केवल वस्त्र की परतें नहीं यह रामभक्ति की परंपरा, वंश–गौरव का प्रतीक, और सनातन संस्कृति की अक्षय लौ है। बाबा तुलसीदास ने रामचरितमानस में कहा है- ध्वज पताक तोरन पुर छावा। कहि न जाइ जेहि भाँति बनावा॥ सुमनबृष्टि अकास तें होई। ब्रह्मानंद मगन सब लोई॥

विवाह पंचमी के पुण्य दिवस पर होने वाला यह ध्वजारोहण, मानो त्रेतायुग के दिव्य विवाह–मंडप की स्मृतियों को पुनः अवतरित करेगा। राम सीता के पवित्र मिलन का यह दिन, अब रामलला के पूर्णभव्य मंदिर के उद्घोष से और भी पावन हो उठेगा।अयोध्या में यह क्षण युगों युगों की आस्था, तपस्या और संघर्ष का धर्म ध्वज बनकर सदैव फहराता रहेगा सनातन सत्य, राम मर्यादा और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का अमर प्रतीक बनकर।