Pandit Chhannulal Mishra: सुरों के साधक पंडित छन्नूलाल मिश्र नहीं रहे, काशी में दी जाएगी अंतिम विदाई, संगीत जगत में शोक की लहर, स्वर अनन्तः, साधकः अमरः

Pandit Chhannulal Mishra: पद्मविभूषण से अलंकृत शास्त्रीय गायक पंडित छन्नूलाल मिश्र अब इस जगत में नहीं रहे। गुरुवार प्रातःकाल लगभग साढ़े चार बजे अंतिम श्वास ली।

सरस्वती के वरद पुत्र पंडित छन्नूलाल मिश्र नहीं रहे- फोटो : social Media

Pandit Chhannulal Mishra:भारतीय शास्त्रीय संगीत की उपशाखाओं में अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले, पद्मविभूषण से अलंकृत शास्त्रीय गायक पंडित छन्नूलाल मिश्र अब इस जगत में नहीं रहे। गुरुवार प्रातःकाल लगभग साढ़े चार बजे मिर्जापुर स्थित अपनी पुत्री डॉ. नम्रता मिश्र के आवास पर उन्होंने अंतिम श्वास ली। उनकी पार्थिव देह अब काशी लायी जा रही है, जहाँ इस संगीत-साधक का अंतिम संस्कार होगा।

पंडित जी की देहावसान की सूचना मिलते ही संगीतजगत, काशी और समूचे राष्ट्र में शोक की लहर दौड़ गई। उनके एकमात्र पुत्र व विख्यात तबला वादक पं. रामकुमार मिश्र दिल्ली से सड़क मार्ग से बनारस रवाना हो चुके हैं। उनके शाम तक पहुँचने की संभावना है।

1936 में आज़मगढ़ की पावन भूमि पर जन्मे पं. छन्नूलाल मिश्र, काशी की गंगा-जमुनी तहज़ीब और बनारस घराने की परंपरा के जीवंत स्वर बनकर विश्वभर में गूंजे। किराना घराने की गायकी में भी उन्होंने अद्वितीय योगदान दिया। ठुमरी, दादरा, चैती, कजरी और भजन गान में उनका स्वर मानो रसधारा बन बहता था।

संगीत साधना के लिए उन्हें कई उच्च सम्मान प्राप्त हुए—

संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (2000)

पद्मभूषण (2010)

पद्मविभूषण (2020)

वे सिर्फ़ संगीतज्ञ ही नहीं, बल्कि राष्ट्रजीवन के भी निकट रहे। वर्ष 2014 में वाराणसी लोकसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी नरेंद्र मोदी के प्रस्तावक के रूप में उन्होंने ऐतिहासिक भूमिका निभाई थी।

पिछले कुछ वर्षों से पंडित जी अस्वस्थ चल रहे थे। 11 सितंबर को अचानक तबीयत बिगड़ने पर चिकित्सकीय दल उनके पास पहुँचा और उपचार प्रारंभ हुआ। मिर्जापुर व बीएचयू के चिकित्सकों ने हृदय, श्वसन और रक्तचाप संबंधी जटिलताओं के बीच उन्हें संभालने का प्रयास किया।

पंडित जी ने स्वयं स्पष्ट कहा था कि किसी भी परिस्थिति में उन्हें वेंटिलेटर पर न रखा जाए। इस इच्छा का उनके परिवार ने सम्मान किया। बीएचयू में 13 दिनों के उपचार के बाद उन्हें छुट्टी देकर घर भेज दिया गया था। किंतु, अंततः 2 अक्टूबर की भोर, उनके जीवन-दीप की लौ शांति से बुझ गई।

पंडित जी का संगीत केवल कला नहीं, बल्कि भक्ति और साधना था। उनके गायन में माँ सरस्वती की वाणी झलकती थी। उनके स्वर में गंगा की गहराई, काशी का माधुर्य और ब्रज की रसिकता मिलती थी।यही पं. मिश्र का जीवन-मंत्र भी था— “जाहि विधि राखे राम, ताहि विधि रहिए।”

पं. छन्नूलाल मिश्र के देहावसान के साथ उपशास्त्रीय गायन की वह परंपरा भी विरल होती जा रही है, जो गिरिजा देवी से प्रारंभ होकर उनकी वाणी में जीवित थी। वे केवल गायक नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति के जीवंत दूत थे।

आज जब उनकी पार्थिव देह काशी में पंचतत्व में विलीन होगी, तब गंगा की लहरें मानो स्वयं रुदन करेंगी। किंतु उनकी रागिनी, ठुमरी और भजन अनंत काल तक हमारी स्मृति में गूंजते रहेंगे।

पंडित छन्नूलाल मिश्र का जीवन संगीत, साधना और संस्कारों का अद्भुत संगम था। उन्होंने काशी की धरती को केवल स्वर नहीं, आत्मा भी दी। उनके निधन से एक युग का पटाक्षेप हुआ है। किंतु यह भी सत्य है कि— “मृत्योः अपि न संगीतं म्रियते। स्वर अनन्तः, साधकः अमरः।” यानी मृत्यु में भी संगीत नहीं मरता। वाणी अनंत है, साधक अमर है।