Bhagalpur: ये क्या हो रहा है भाई साहब! 3 साल से काम पर नहीं जा रही थी नर्स, फिर भी उठा ली सैलरी, सरकार को हुआ 28 लाख का नुकसान

JLNMCH भागलपुर में स्टाफ नर्स प्रतिमा कुमारी तीन साल तक बिना काम किए वेतन लेती रहीं। 37 अवकाश आवेदन के बावजूद उनकी उपस्थिति दर्ज होती रही। अब मामला सामने आने पर जांच के आदेश दिए गए हैं।

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Bhagalpur- फोटो : social media

Bhagalpur Nurse Scam: बिहार के प्रमुख सरकारी अस्पतालों में शामिल जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज अस्पताल (JLNMCH), भागलपुर में एक चौंकाने वाला घोटाला सामने आया है। पैथोलॉजी विभाग से जुड़ी स्टाफ नर्स प्रतिमा कुमारी ने तीन साल तक अस्पताल में ड्यूटी किए बिना ही वेतन प्राप्त किया। न केवल यह घटना प्रशासनिक लापरवाही का मामला है, बल्कि एक गहरी सांठगांठ और साजिश की ओर भी इशारा करती है जिसमें अधीक्षक कार्यालय, मेट्रन और विभागीय कर्मचारी शामिल हो सकते हैं।

कैसे हुआ खुलासा: वेतन मिल रहा था लेकिन नर्स थी गायब

मामला तब सामने आया जब वर्तमान अधीक्षक डॉ. हेमशंकर शर्मा ने उपस्थिति और वेतन रजिस्टर की नियमित जांच की प्रक्रिया शुरू की। इसमें पाया गया कि प्रतिमा कुमारी ने पिछले तीन साल में 37 बार अवकाश का आवेदन मेट्रन कार्यालय में दिया, जो स्वीकृत भी हुए। लेकिन हैरानी की बात यह रही कि हर बार उनकी उपस्थिति रजिस्टर में मौजूद थी और नियमित वेतन भी जारी होता रहा।

यह तब और गंभीर हो जाता है जब हम जानते हैं कि अस्पताल में दो जगह हाजिरी बनती है—एक बायोमेट्रिक और दूसरी विभागीय। दोनों को मिलान करने के बाद ही वेतन बनता है, फिर भी प्रतिमा कुमारी को लगातार वेतन कैसे मिलता रहा?

किसने बनाई हाजिरी? सवालों के घेरे में स्टाफ और लिपिक

पैथोलॉजी विभाग की हाजिरी प्रतिमा के बिना भी बनाई जाती रही। यह उपस्थिति अधीक्षक कार्यालय को भेजी जाती थी, जहां वेतन बनाया जाता रहा। आश्चर्यजनक बात यह भी है कि अवकाश का आवेदन मेट्रन कार्यालय में स्वीकृत हो रहा था, पर इसकी सूचना अधीक्षक कार्यालय तक नहीं पहुंची या पहुंच कर भी अनदेखी की गई।

मौजूदा मेट्रन को भी इस बात की भनक नहीं थी कि प्रतिमा पिछले तीन वर्षों से कार्यस्थल पर नहीं आ रही हैं। इसका सीधा सा मतलब है कि अवकाश और उपस्थिति रजिस्टर का कोई स्पष्ट लेखा-जोखा नहीं रखा गया।

वेतन प्रक्रिया में लापरवाही: जांच प्रणाली पूरी तरह फेल

नियमों के अनुसार किसी भी सरकारी संस्थान में वेतन बनाने से पहले कम से कम तीन स्तर की जांच होनी चाहिए। लेकिन यहां लिपिक ने आंख मूंद कर रजिस्टर पर वेतन बना दिया और अधीक्षक से हस्ताक्षर करवा कर सीधे खजाने में भेज दिया। किसी ने यह जांच नहीं की कि किसका वेतन बनना है और किसका नहीं।

इस प्रक्रिया में न केवल नियमों की अनदेखी हुई बल्कि राज्य को 28 लाख रुपये का सीधा नुकसान भी उठाना पड़ा। इस घोटाले का दायरा बड़ा है और यह सिर्फ प्रतिमा कुमारी तक सीमित नहीं रह सकता।

पूर्व अधीक्षक और मेट्रन भी घेरे में

प्रतिमा की गैरमौजूदगी पूर्व अधीक्षकों डॉ. उदय नारायण सिंह और डॉ. राकेश कुमार के कार्यकाल में रही। इन दोनों ने न केवल इस पर संज्ञान नहीं लिया, बल्कि प्रतिमा को सेवा लाभ और इन्क्रीमेंट तक दे दिया। अब जब मामला उजागर हो चुका है, तो जांच की आंच इन पूर्व अधिकारियों तक भी पहुंच रही है।

जांच की प्रक्रिया और संभावित कार्रवाई

वर्तमान अधीक्षक डॉ. शर्मा ने इस घोटाले की औपचारिक जांच के लिए एक टीम गठित कर दी है। अब शोकॉज नोटिस के जवाब और विभागीय रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई तय की जाएगी। यह जांच यह भी स्पष्ट करेगी कि प्रतिमा कुमारी को कितना वैध अवकाश मिला, कितना अनधिकृत रूप से लिया गया और कितनी राशि की वसूली बनती है


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