Makar Sankranti Special : फड़किया की दही के बिना अधूरा है मकर संक्रांति, हांडी उलटने के बाद नहीं गिरता दही, दीवाल पर मारो तो चिपक जाएगी
Makar Sankranti Special : मकर संक्रांति में दही का विशेष महत्व होता है. ऐसे में आपने फड़किया का दही नहीं खाया तो कुछ नहीं खाया. जानिए क्या है फड़किया के दही की खासियत
KHAGARIA : खगड़िया जिला के पशुपालक दूध उत्पादन बड़े पैमाने पर करते हैं। खगड़िया जिला को फड़किया भी कहा जाता है। फरकीय की दही गमछा में बांधकर ले जाने की परंपरा आज भी कायम है। यहां खान-पान में दही भोज संस्कार है। यहां के पशुपालक अपने मवेशियों के खान-पान पर विशेष ख्याल रखते हैं। फरकीय की दही स्वादिष्ट होने का एक अलग तजुर्बा है। सबसे पहले मवेशियों के खान-पान पर ध्यान, साथ ही मवेशियों से प्राप्त दूध को उबालने के साथ ही दूध को जमाने वाले बर्तन की भूमिका भी मानी जाती है। दूध को जमाने के लिए जोड़न पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है।
गांव या आप पास के क्षेत्र में खासकर दूध व्यापारी या पशुपालक बढ़िया दही का निर्माण करते हैं। यहां तक की बड़े-बड़े आयोजन में जब तक दही पर पंच परमेश्वर का मोहर नहीं लगता। तब तक दूध व्यापारी को राशि का भुगतान नहीं होता है। यहां की दही खाने के बाद हाथ को साबुन या गर्म पानी से धोने या कपड़े से पोछना पड़ता है। आसान तरीके से दही का क्रीम हाथ से नहीं छूटता है। यहां के दूध व्यापारी बढ़िया दही तैयार करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। ताकि उसका नाम बरकरार रहे। अन्य जगहों के लोग यहां के दही का आनंद एक बार कर लेते हैं तो भूलना नामुमकिन होता है। फरकीया में सभी तबके के लोगों में अपने रिश्तेदारों को संदेश के रूप में दही देने की परंपरा है। यहां मकर संक्रांति के मौके पर यह देखना दिलचस्प होता है कि सब के बीच रिश्तेदारों से पहुंचने वाला दही बड़ा मटका और चुरा की मोटरी से घर का माहौल खास बना रहता है।
चौखट पर मैके का संदेश पहुंचते ही महिलाएं फूल नहीं समाती है। फड़किया इलाके में बड़े छोटे आयोजन को सफल बनाने के लिए दही की भूमिका अहम होती है। इसलिए यहां के लोगों के लिए खान-पान में दही मन नहीं मान सम्मान से जुड़ा होता है। आपको बताते चले अगवानी निवासी कवि शायर विकास सोलंकी ने बताया कि रिश्ते का दूध फट न जाए इसलिए भी फड़किया के लोग दही जमाने में माहिर होते हैं। दही फड़किया की संस्कृति भी है संस्कार भी। यहां दही सामान्य से खास मौके तक में अपना विशेष महत्व रखता है। यहां दही की महत्ता को ऐसे भी समझी जा सकती है कि कोई भी संस्कार दही के बिना पूरा नहीं होता यहां अपना मान प्रतिष्ठा जमाने के लिए पहले दही जमाना पड़ता है। खगड़िया अंतर्गत अगवानी के पालो यादव ने बताया कि हमारा दूध का धंधा 40 वर्षों का है और हम जो दही जमाते हैं वह लगभग पूरे बिहार में यहां से जाता है। क्या किसी की मजाल की कोई हमारे दही की शिकायत कर दे।
खगड़िया से अमित की रिपोर्ट