Bihar News: 63 साल से इंतज़ार, अब सब्र का बांध टूटा, नेहरू के नाम पर बसे गांव 'जवाहर नगर' के लोग आज भी पर्चा से वंचित
Bihar News: जिस गांव का नाम देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के नाम पर रखा गया, उसी जवाहर नगर गांव में लोग आज भी सरकारी कागजों में गुमनाम हैं।
Bihar News: जिस गांव का नाम देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के नाम पर रखा गया, उसी जवाहर नगर गांव में लोग आज भी सरकारी कागजों में गुमनाम हैं। वर्ष 1962 में जब बागमती नदी ने लालपुर के किनारे बसे लोगों का घर-बार निगलना शुरू किया, तब स्थानीय प्रशासन ने कटाव पीड़ित सैकड़ों परिवारों को यहां जमीन देकर बसाया — लेकिन “बासगीत पर्चा” देने की औपचारिकता आज तक पूरी नहीं की गई।
63 साल बीत चुके हैं, पीढ़ियां गुजर गईं, कुछ लोग तो बिना पर्चा लिए ही दुनिया से विदा हो गए। मगर सरकारी फाइलें अब तक जागने को तैयार नहीं।"धरती हमारी, लेकिन दस्तावेज़ सरकार के बक्से में बंद!"
हालांकि हाल के दिनों में डीएम नवीन कुमार के निर्देश पर कुछ हिस्सों में सर्वे कर कुछ परिवारों को पर्चा देने की प्रक्रिया शुरू हुई है, लेकिन जवाहर नगर के स्कूल से पश्चिम में बसे परिवारों को ही प्राथमिकता दी जा रही है। बाकी परिवारों में असंतोष साफ दिखाई देने लगा है।
गांव के बुजुर्ग राम बहादुर महतो कहते हैं, "अगर मेरे जीते जी पर्चा मिल जाए तो मेरे बाद की पीढ़ी को कम से कम जमीन विवाद से आज़ादी मिलेगी।मनोज शर्मा और कमलेश्वरी महतो जैसे ग्रामीण भी अब आंदोलन की चेतावनी दे रहे हैं "अब सबको पर्चा दो, नहीं तो विरोध झेलो!"
यह स्थिति प्रशासन की वर्षों पुरानी लापरवाही को उजागर करती है। कभी घनश्याम सिंह जैसे विधायक ने पहल कर गांव बसवाया, नाम नेहरू पर रखा, स्कूल उठाकर लाया गया — मगर आज नेहरू के नाम पर बसा गांव खुद पहचान के लिए तरस रहा है।
सरकारी जमीन पर सरकारी बसावट, मगर बिना सरकारी दस्तावेज़ यही है “जवाहर नगर” की त्रासदी।अब जबकि सरकार “पर्चा देने” की बात कह रही है, तो सवाल सीधा है कि “क्या इंसाफ अब भी आधा- अधूरा होगा?” या फिर 63 साल बाद अब सभी को न्याय मिलेगा?
रिपोर्ट- अमित कुमार