हाहा बंगला खंडहर, क्रांतिकारियों की शरणस्थली का छत ढहा, नेताओं-अधिकारियों की चुप्पी से संरक्षण के वादे भी दफन
कभी वीरों की शरणस्थली रहा हाहा बंगला खंडहर में तब्दील हो चुका है। कभी यही वह अड्डा था जहाँ अंग्रेजों की नाक के नीचे देश के सपूत गुप्त योजनाएँ बनाते थे। लेकिन अब हालात यह हैं कि इस विरासत का छत ढह चुका है...
Bihar News: लखिसराय के बड़हिया का ऐतिहासिक हाहा बंगला... वह धरोहर जिसने स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में क्रांतिकारियों को शरण दी थी, आज अपनी स्थिति पर आंसू बहा है। कभी वीरों की शरस्थली रहा बंगला आज खंडहर में तब्दील हो चुका है। कभी यही वह अड्डा था जहाँ अंग्रेजों की नाक के नीचे देश के सपूत गुप्त योजनाएँ बनाते थे। बंगाल, यूपी, महाराष्ट्र और पंजाब से आए सेनानी यहाँ वेश बदलकर ठहरते, और क्रांति की मशाल जलाते। लेकिन अब हालात यह हैं कि इस विरासत का छत ढह चुका है, और दीवारें जर्जर मलबे में बदल चुकी हैं।
सबसे शर्मनाक यह कि संरक्षण के नाम पर सिर्फ़ वादे और आश्वासन दिए गए। नेता मंचों से भाषण देते रहे, अधिकारी काग़ज़ी कार्यवाही करते रहे, लेकिन ज़मीनी स्तर पर एक ईंट भी नहीं जुड़ी। नतीजा साफ़ है हाहा बंगला का छत ही नहीं गिरा, बल्कि नेताओं के खोखले वादे भी उसी मलबे में दब गए।
इतिहास गवाह है कि 1921 में यहीं राष्ट्रीय विद्यालय की नींव रखी गई थी और 1923 में श्री जगदंबा हिंदी पुस्तकालय की स्थापना हुई थी। यानी यह जगह केवल क्रांति का गुप्त अड्डा ही नहीं, बल्कि शिक्षा और सांस्कृतिक चेतना का भी केंद्र रही। लेकिन आज यह धरोहर अवमानना और उपेक्षा की सबसे बड़ी मिसाल बन चुकी है।
स्थानीय लोगों और इतिहासकारों का आक्रोश साफ़ झलकता है। उनका कहना है कि नेता और अफ़सर सिर्फ़ फोटो खिंचवाने आते हैं, अख़बारों में बयान देकर चले जाते हैं। संरक्षण की घोषणाएँ होती हैं, लेकिन अमल कहीं नहीं होता। समय रहते अगर ठोस कदम उठाए जाते, तो आज हाहा बंगला मलबे में नहीं, बल्कि शान से खड़ा होता।
सच्चाई यही है कि नेताओं और अधिकारियों की चुप्पी ने इस धरोहर को बर्बाद कर दिया। आज जब हाहा बंगला का छत ढहा है, तो उसके साथ ही इतिहास के संरक्षण की साख भी ढह चुकी है।
रिपोर्ट- कमलेश कुमार सिंह