Bihar Administrative News: सत्ता के गलियारों में सीएम के प्रधान सचिव दीपक कुमार का कद, नीतीश के सबसे भरोसेमंद अफसर पर कब तक रहेगी सियासी मेहरबानी?
Bihar Administrative News: बिहार की राजनीति में सरकार बदलती है, लेकिन सत्ता के केंद्र में कुछ चेहरे ऐसे होते हैं जो हर दौर में कायम रहते हैं। सीएम नीतीश कुमार के प्रधान सचिव दीपक कुमार उन्हीं नामों में शुमार हैं।...
Bihar Administrative News: बिहार की राजनीति में सरकार बदलती है, गठबंधन टूटते-जुड़ते हैं, लेकिन सत्ता के केंद्र में कुछ चेहरे ऐसे होते हैं जो हर दौर में कायम रहते हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रधान सचिव दीपक कुमार उन्हीं नामों में शुमार हैं। पूर्व मुख्य सचिव रह चुके दीपक कुमार को मुख्यमंत्री का प्रधान सचिव बने लगभग पाँच साल होने को हैं और अब जब नीतीश कुमार ने दसवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है, तो सियासी गलियारों में यह सवाल गूंजने लगा है कि आखिर दीपक कुमार कब तक मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव बने रहेंगे।
इन चर्चाओं के बीच हक़ीक़त यह है कि दीपक कुमार की नियुक्ति किसी अस्थायी राजनीतिक समझौते का नतीजा नहीं, बल्कि ठोस प्रशासनिक फैसले की बुनियाद पर टिकी है। नीतीश कुमार ने 1 मार्च 2021 के प्रभाव से उन्हें मुख्यमंत्री का प्रधान सचिव नियुक्त किया था। इस संबंध में मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग ने अधिसूचना जारी की थी, जिसमें साफ़ किया गया कि यह नियुक्ति 2 फरवरी 2002 को जारी अधिसूचना की कंडिका-4 के आलोक में की गई है, जो राबड़ी देवी के शासनकाल में लिए गए निर्णय पर आधारित थी। यानी यह पद सिर्फ़ सत्ता की मर्ज़ी नहीं, बल्कि नियमों की ढाल में सुरक्षित है।
सरकार ने दीपक कुमार को मंत्री स्तर की सुविधाएं भी दी हैं, जो उनके सियासी और प्रशासनिक क़द को और ऊंचा करती हैं। 18 मार्च 2021 को जारी सरकारी पत्र में स्पष्ट किया गया कि उनकी नियुक्ति संविदा के आधार पर 1 मार्च 2021 से अगले आदेश तक के लिए होगी। इस अगले आदेश तक ने ही तमाम अटकलों को जन्म दिया है, क्योंकि इसका मतलब साफ़ है कार्यकाल की कोई तय सीमा नहीं। जब तक सरकार चाहेगी, दीपक कुमार सत्ता के इस अहम दरवाज़े पर मौजूद रहेंगे।
वेतन और सुविधाओं को लेकर भी सरकार ने कोई धुंध नहीं छोड़ी। उन्हें पेंशन घटाकर अनुमन्य मासिक वेतन, भत्ते, आवास, अवकाश, यात्रा रियायत और चिकित्सा सुविधा मिलेगी। आकस्मिक और उपार्जित अवकाश की सुविधा भी दी गई है, और जो अवकाश इस्तेमाल नहीं होगा, उसका नकद भुगतान संविदा समाप्ति पर किया जाएगा। वहीं, सरकार ने यह अधिकार भी अपने पास रखा है कि बिना कारण बताए एक महीने की नोटिस पर संविदा समाप्त की जा सकती है।
कुल मिलाकर, दीपक कुमार की मौजूदगी सत्ता और सिस्टम के उस गठजोड़ को दर्शाती है, जहां भरोसा सबसे बड़ी पूंजी है। सवाल यही है कि क्या नई सरकार में भी यह भरोसा यूं ही कायम रहेगा, या सियासत किसी नए मोड़ पर इस अध्याय को विराम देगी?