Bihar Election Survey: बिहार विधानसभा चुनाव सर्वे में चौंकाने वाले नतीजें! जानें नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव समेत प्रशांत किशोर को लेकर क्या कहती है जनता

Bihar Election Survey: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर आजतक-सीवोटर सर्वे के नतीजे चौंकाने वाले हैं। तेजस्वी यादव सबसे लोकप्रिय नेता, नीतीश तीसरे नंबर पर और प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी तेजी से उभरती ताकत।

बिहार विधानसभा चुनाव सर्वे - फोटो : SOCIAL MEDIA

Bihar Election Survey:  बिहार की राजनीति इन दिनों अपने चरम पर है। एनडीए और महागठबंधन दोनों ही खेमों में सीट शेयरिंग को लेकर असहमति बढ़ती जा रही है। दिल्ली से लेकर पटना तक लगातार बैठकों का दौर जारी है, लेकिन किसी भी गठबंधन में अंतिम निर्णय नहीं हो पा रहा है। इस बीच नेताओं का दलबदल और पाला बदलने का सिलसिला भी तेज हो गया है।

प्रशांत किशोर की एंट्री से सियासत में हलचल

राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर (PK) ने ऐलान किया है कि उनकी पार्टी जन सुराज (Jan Suraaj Party) राज्य की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। तीन साल की तैयारी के बाद उन्होंने 51 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है। जबकि बाकी दल अभी तक सीट शेयरिंग को लेकर एकमत नहीं हो पाए हैं। इसी बीच सरकार ने कई नई मुफ्त योजनाओं (Free Schemes) की घोषणा की है, जिसमें महिलाओं के खातों में ₹10,000 की राशि भेजने की योजना सबसे ज्यादा चर्चा में है।

बिहार सर्वे 2025: जनता का रुझान क्या कहता है

एक हालिया आजतक-सीवोटर सर्वे (Aajtak C-Voter Survey) के मुताबिक, बिहार के मतदाता इस बार बहुत सोच-समझकर वोट देने का मन बना रहे हैं। सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि सीट बंटवारे, नेतृत्व और नीतियों को लेकर लोगों की राय पहले से कहीं अधिक स्पष्ट है।

एनडीए और महागठबंधन में सीट बंटवारे की चुनौती

सर्वे के अनुसार, एनडीए को 48.6% मतदाताओं का समर्थन है जबकि महागठबंधन को 24.3%। लेकिन एनडीए के भीतर छोटे दलों की नाराजगी एक बड़ी चुनौती बन सकती है। सीटों के बंटवारे को लेकर अंदरूनी असहमति का असर चुनावी नतीजों पर पड़ सकता है।

दलबदल और असंतोष की राजनीति

सर्वे के मुताबिक एलजेपी (रामविलास) में 35.1%, हम (एस) में 15% और वीआईपी पार्टी में 12.7% नेताओं के पाला बदलने की संभावना जताई गई है। इससे साफ है कि एनडीए के भीतर असंतोष बढ़ रहा है और यह गठबंधन की स्थिरता पर असर डाल सकता है।

प्रशांत किशोर की मुहिम का असर

प्रशांत किशोर की भ्रष्टाचार-विरोधी मुहिम से सबसे अधिक फायदा महागठबंधन को होता दिख रहा है। आंकड़ों के अनुसार, 33.6% लोगों ने कहा कि इससे विपक्ष को मजबूती मिलेगी, जबकि 22.4% ने माना कि इसका लाभ जन सुराज पार्टी को मिल सकता है। एनडीए को मात्र 21.9% समर्थन इस मामले में प्राप्त हुआ।

निष्पक्ष चुनाव पर जनता का भरोसा

सर्वे में 42.6% मतदाताओं ने कहा कि चुनाव प्रक्रिया निष्पक्ष है, जबकि 31% अब भी संशय में हैं। लगभग 16.5% का मानना है कि सत्ताधारी दल को प्रक्रिया से लाभ मिल सकता है। यह दिखाता है कि जनता पारदर्शिता को लेकर अब भी विभाजित है।

नए वोटरों का झुकाव किस ओर

नए वोटर लिस्ट से एनडीए को 46.1% लाभ मिलता दिख रहा है, जबकि महागठबंधन को 21.7%। बाकी मतदाता दोनों के बीच संतुलित हैं। नए मतदाताओं का झुकाव अब भी केंद्र की नीति और नेतृत्व के पक्ष में दिखाई देता है।

बेरोजगारी और पलायन पर जनता की राय

रोजगार और पलायन के मुद्दे पर जनता का झुकाव इस बार महागठबंधन की ओर दिखा है। सर्वे के मुताबिक 36.5% लोग मानते हैं कि इस समस्या पर महागठबंधन अधिक गंभीर है, जबकि 34.3% ने एनडीए का समर्थन किया। जन सुराज पार्टी को 12.8% लोगों ने इस मुद्दे पर भरोसेमंद माना।

लोकप्रिय मुख्यमंत्री चेहरा कौन

तेजस्वी यादव 36.2% समर्थन के साथ सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री चेहरा बने हैं। उनके बाद प्रशांत किशोर को 23.2% लोगों का समर्थन मिला। नीतीश कुमार, जो तीन दशकों से सत्ता का केंद्र रहे हैं, अब 15.9% समर्थन के साथ तीसरे स्थान पर हैं। चिराग पासवान और सम्राट चौधरी क्रमशः चौथे और पाँचवें स्थान पर हैं। यह रुझान बिहार की राजनीति में एक बड़ा बदलाव दर्शाता है।

मुफ्त योजनाओं का चुनावी असर

सरकार की महिलाओं को ₹10,000 देने की योजना ग्रामीण इलाकों में असर डाल सकती है। हालांकि, शहरी और शिक्षित मतदाताओं के बीच इसे “चुनावी लालच” या “Vote-Buying” के रूप में देखा जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि इन योजनाओं का असर सीमित और क्षेत्रीय रहेगा।

राहुल गांधी की यात्रा और विपक्ष की रणनीति

राहुल गांधी की वोट अधिकार यात्रा को लेकर 51% लोगों का मानना है कि इससे महागठबंधन को फायदा होगा, जबकि 32.8% ने कहा कि इसका कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा। इससे साफ है कि विपक्षी दलों की सक्रियता मैदान में बढ़ रही है।

बिहार चुनाव 2025 का मुख्य मुद्दा

सर्वे में यह स्पष्ट हुआ है कि इस बार रोजगार, भ्रष्टाचार और विकास जैसे मुद्दे जातीय समीकरणों से अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। एनडीए समर्थकों के लिए पार्टी की विचारधारा और प्रत्याशी की छवि मायने रखती है, जबकि विपक्षी मतदाताओं के लिए रोजगार और भ्रष्टाचार सबसे अहम मुद्दे बने हैं।