Pappu Yadav Statement On Jinnah: पप्पू यादव के जिन्ना बयान से मचा सियासी तूफान! जानिए बिहार चुनाव में इसका क्या असर हो सकता है
Pappu Yadav Statement On Jinnah: बिहार के सांसद पप्पू यादव ने मोहम्मद अली जिन्ना के बचाव में बयान देकर सियासी भूचाल ला दिया है। जानिए उनके बयान के मायने और बिहार चुनावी राजनीति पर इसका असर।
Pappu Yadav Statement On Jinnah: पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव का ताजा बयान एक बार फिर भारतीय राजनीति को दो ध्रुवों में बांटने के लिए काफी साबित हो रहा है। उन्होंने न्यूज एजेंसी एएनआई को दिए इंटरव्यू में मोहम्मद अली जिन्ना के संदर्भ में कहा — “जिन्ना चाहे कितने भी सही या गलत क्यों न हों, गाली के लायक नहीं हैं।”
इस बयान के बाद सोशल मीडिया से लेकर संसद तक सियासी प्रतिक्रिया की बाढ़ आ गई है। कई दलों ने इसे राष्ट्रविरोधी करार दिया, वहीं कुछ ने इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी का नाम दिया।
अटल बिहारी वाजपेयी और आडवाणी का जिक्र
पप्पू यादव ने अपने बयान में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी के पाकिस्तान दौरे का हवाला देते हुए सवाल पूछा — “किसने जिन्ना की मजार पर चादर चढ़ाई थी?” उनका इशारा था कि अगर तब यह राष्ट्रहित में था तो अब उस व्यक्ति को गाली क्यों दी जा रही है।
नीतीश कुमार के खिलाफ अंदरूनी विरोध
पप्पू यादव ने अपने बयान में उपेंद्र कुशवाहा और चिराग पासवान की रणनीति को भी कटघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि गठबंधन में शामिल नेता नीतीश कुमार के नेतृत्व को कमजोर कर रहे हैं। उनका तर्क था कि अगर वे नीतीश के साथ चुनाव लड़ना चाहते हैं तो सार्वजनिक रूप से उन्हें कमजोर क्यों दिखा रहे हैं?इस बयान से यह संकेत भी मिला कि नीतीश कुमार का नेतृत्व भविष्य के गठबंधन समीकरणों में संकट में है।
तेजस्वी यादव पर सीधा हमला
पप्पू यादव ने तेजस्वी यादव को “अहंकारी युवराज” बताया और कहा कि वो उनके साथ मंच साझा नहीं करेंगे। उन्होंने यह भी जोड़ा कि जब राहुल गांधी जैसे वरिष्ठ नेता मंच पर हों, तो "पप्पू यादव जैसे नेता की ज़रूरत नहीं रहती"। यह बयान व्यक्तिगत राजनीतिक विरोध को दर्शाता है और महागठबंधन की आंतरिक स्थिति को भी उजागर करता है।
मुंबई और मराठी भाषायी विवाद में भी खोला मोर्चा
पप्पू यादव ने मराठी भाषायी राजनीति पर टिप्पणी करते हुए कहा — “हम मुंबई में मनसे प्रमुख राज ठाकरे से लड़ेंगे। बिहार में किसी भी मराठी संगठन को काम करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।” यह बयान क्षेत्रीय राजनीति और उत्तर भारतीयों के हित संरक्षण की राजनीति का हिस्सा माना जा सकता है।