Supreme Cour: "मुझे जबरन ब्याह दिया गया था, अब न्याय चाहिए हुजूर", पटना की नाबालिग लड़की ने सुप्रीम कोर्ट में ठोकी दस्तक
Supreme Cour:नाबालिग ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाते हुए अपनी जबरन शादी से आज़ादी की फ़रियाद लगाई है.....
Supreme Cour: सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर एक नाबालिग लड़की की पुकार एक पूरी सामाजिक व्यवस्था को आईना दिखा रही है। उम्र महज 16 साल 6 महीने और उस पर थोप दी गई ज़िम्मेदारी एक ऐसे रिश्ते की, जिसकी ना उसने हामी भरी, ना ही कोई ख़्वाहिश जताई। 32 वर्षीय पुरुष से जबरन ब्याह दिए जाने के बाद अब यह साहसी किशोरी अपनी आवाज़ को संविधान की सबसे ऊँची अदालत तक ले गई है, जहां वह इंसाफ़ की उम्मीद में खड़ी है।
याचिका में लड़की ने साफ़ कहा है कि यह शादी उसकी मर्ज़ी के खिलाफ हुई, जबकि उसका सपना अपनी पढ़ाई पूरी कर एक मुकम्मल ज़िंदगी जीने का है। लेकिन विवाह के बाद उसे न केवल ससुराल में शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी, बल्कि उसकी आज़ादी और आत्मसम्मान को भी कुचला गया। मजबूर होकर वह उस घर को छोड़ आई और अब अपने दोस्त सौरभ कुमार के साथ रह रही है, जो उसे समर्थन और सहारा दे रहा है।
इस बीच, लड़की की मां ने 4 अप्रैल को पटना के पिपलावा थाना में एफआईआर संख्या 59/25 दर्ज करवाई, जिसमें सौरभ और उसके परिवार पर अपहरण का आरोप लगाया गया। याचिका में यह भी दावा किया गया है कि यह प्राथमिकी लड़की को ज़बरन उसके ससुराल वापस भेजने की साज़िश है। इसलिए लड़की ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि वह इस एफआईआर पर किसी भी दमनात्मक कार्रवाई पर रोक लगाए और उसके साथ-साथ सौरभ और उसके परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित करे।
लड़की ने अपनी याचिका में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 और 142 का हवाला दिया है—जहां पहला नागरिक को मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए अदालत में याचिका दाखिल करने का अधिकार देता है, वहीं दूसरा न्यायालय को विशेष परिस्थिति में व्यापक न्याय दिलाने की शक्ति प्रदान करता है।
यह मामला केवल एक व्यक्तिगत संघर्ष नहीं, बल्कि बाल विवाह जैसी सामाजिक कुप्रथा के विरुद्ध एक कानूनी अलख है। बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के अंतर्गत 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की की शादी को गैरकानूनी माना गया है, लेकिन आज भी इस कुप्रथा की जड़ें समाज में गहराई तक फैली हैं।