Hindi Divas : बढ़ती हिंदी, कचहरी से दूर हिंदी, क्षेत्रीय बोलियों को निगलती हिंदी- क्या वाकई एक राष्ट्र, एक भाषा समाधान है?

Hindi Divas : बीते कुछ दशकों में दक्षिण भारत, पूर्वोत्तर और पश्चिमी राज्यों में हिंदी की उपस्थिति स्पष्ट रूप से महसूस की जा सकती है। इसमें सबसे बड़ी भूमिका संचार माध्यमों और व्यापार की रही है।

Hindi Divas- फोटो : social media

Hindi Divas :  भारत जैसे बहुभाषी देश में हिंदी की स्थिति हमेशा एक बहस का विषय रही है। एक ओर गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है, वहीं दूसरी ओर हिंदी भाषी राज्यों में ही क्षेत्रीय भाषाओं पर इसका प्रभाव चिंता का विषय बनता जा रहा है। वैश्वीकरण, संचार के नए माध्यम, मनोरंजन उद्योग और शिक्षा प्रणाली में बदलाव के चलते हिंदी ने एक नया मुकाम हासिल किया है, लेकिन इसके साथ ही कुछ गंभीर चुनौतियाँ भी सामने आ रही हैं।

गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी का विस्तार

बीते कुछ दशकों में दक्षिण भारत, पूर्वोत्तर और पश्चिमी राज्यों में हिंदी की उपस्थिति स्पष्ट रूप से महसूस की जा सकती है। इसमें सबसे बड़ी भूमिका संचार माध्यमों और व्यापार की रही है। आज तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों के युवा हिंदी बोलने और समझने लगे हैं, विशेषकर वे जो नौकरी या व्यापार के लिए उत्तर भारत के संपर्क में रहते हैं। मेट्रो शहरों में रहने वाले लोग, चाहे वे किसी भी राज्य से हों, हिंदी को एक संपर्क भाषा (lingua franca) के रूप में अपनाने लगे हैं। गैर हिंदी भाषी राज्यों के टूरिज्म सेक्टर, होटल इंडस्ट्री, और ट्रांसपोर्ट सेक्टर में हिंदी एक जरूरत बन चुकी है। यही कारण है कि आज हिंदी केवल एक क्षेत्रीय भाषा नहीं रह गई, बल्कि वह भारत की सांस्कृतिक और आर्थिक धारा में प्रमुख भूमिका निभा रही है।

बाजार में हिंदी की बढ़ती स्वीकार्यता

विज्ञापन, सोशल मीडिया और डिजिटल मार्केटिंग के क्षेत्र में हिंदी की पकड़ तेजी से मजबूत हुई है। कंपनियाँ अब उपभोक्ताओं तक पहुंचने के लिए अंग्रेजी की जगह हिंदी में प्रचार करना अधिक प्रभावी मानती हैं। ‘हिंग्लिश’ शैली में तैयार किए गए विज्ञापन आज युवाओं को ज्यादा आकर्षित करते हैं, जिससे हिंदी का स्वीकार्य रूप एक नए अवतार में सामने आया है। ई-कॉमर्स वेबसाइट्स, मोबाइल एप्स और सरकारी सेवाओं में भी अब हिंदी का विकल्प सामान्य होता जा रहा है। इससे स्पष्ट है कि हिंदी की स्वीकार्यता केवल भाषाई स्तर पर नहीं, बल्कि आर्थिक और तकनीकी क्षेत्र में भी तेजी से बढ़ रही है।

टीवी और सिनेमा की भूमिका

हिंदी टीवी सीरियल और बॉलीवुड फिल्मों ने हिंदी के प्रचार-प्रसार में अप्रतिम योगदान दिया है। दक्षिण और पूर्वोत्तर भारत के कई हिस्सों में हिंदी फिल्मों की लोकप्रियता के कारण लोग हिंदी समझने और बोलने लगे हैं। ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की वजह से भी हिंदी कंटेंट अब हर कोने तक पहुँच रहा है। मनोरंजन माध्यमों ने हिंदी को 'भावना की भाषा' के रूप में स्थापित कर दिया है, जिससे उसका सहज प्रचार हो रहा है। इन माध्यमों की पहुंच गाँव-गाँव तक होने के कारण हिंदी अब एक लोकभाषा की तरह प्रसारित हो रही है।

उच्च शिक्षा में हिंदी की चुनौती

हालांकि प्राथमिक और माध्यमिक स्तर तक हिंदी की स्थिति सुदृढ़ है, उच्च शिक्षा में हिंदी को अभी भी गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ता है। विज्ञान, तकनीक, चिकित्सा और कानून जैसे विषयों में अध्ययन और शोध कार्य अब भी मुख्यतः अंग्रेज़ी में ही होता है। हिंदी में गुणवत्ता युक्त पाठ्य सामग्री और तकनीकी शब्दावली का अभाव इस दिशा में एक बड़ी बाधा है। नई शिक्षा नीति 2020 ने मातृभाषा में शिक्षा को बढ़ावा देने की बात की है, परंतु उच्च शिक्षा में हिंदी के सशक्तिकरण के लिए ठोस कदमों की आवश्यकता है। विश्वविद्यालयों में हिंदी माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों को रोजगार और प्रतिस्पर्धा में बराबरी का अवसर देने के लिए एक समन्वित नीति की आवश्यकता है।

प्रशासन और न्यायालयों में हिंदी का दोयम स्थान

भारतीय संविधान में हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है, लेकिन व्यवहार में यह स्थिति स्पष्ट नहीं है। केंद्र सरकार के कुछ मंत्रालयों और कार्यालयों को छोड़ दें, तो आज भी अधिकांश सरकारी कार्य अंग्रेज़ी में होते हैं। न्यायालयों में तो स्थिति और भी जटिल है—जहाँ उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में अंग्रेज़ी का एकाधिकार है। आमजन की भाषा में न्याय सुनिश्चित करना तभी संभव है, जब न्यायिक प्रक्रिया हिंदी या क्षेत्रीय भाषाओं में हो। हालांकि कुछ राज्यों में निचली अदालतों में हिंदी का प्रयोग होता है, लेकिन उच्च न्यायालयों में इसे अभी भी सीमित ही रखा गया है।

हिंदी भाषी राज्यों में क्षेत्रीय भाषाओं पर खतरा

हिंदी के विस्तार का एक चिंताजनक पक्ष यह भी है कि हिंदी भाषी राज्यों में अन्य स्थानीय और क्षेत्रीय भाषाएं, जैसे भोजपुरी, मैथिली, अवधी, ब्रज, छत्तीसगढ़ी आदि, धीरे-धीरे हाशिए पर जा रही हैं। शहरीकरण, शिक्षा व्यवस्था और सामाजिक प्रतिष्ठा की वजह से इन भाषाओं को पिछड़ा और ‘गाँव की भाषा’ मान लिया गया है। इसका परिणाम यह हुआ कि नई पीढ़ी इन भाषाओं को बोलने से कतराने लगी है। यदि यही स्थिति बनी रही, तो आने वाले वर्षों में ये भाषाएँ अपने मूल स्वरूप को खो सकती हैं। इसलिए यह ज़रूरी है कि हिंदी के साथ-साथ इन भाषाओं को भी संरक्षित और विकसित किया जाए। 

भारत में भाषाई समृद्धि 

हिंदी का राष्ट्रीय परिदृश्य में विस्तार गर्व का विषय है, लेकिन इसके साथ उत्पन्न हो रही सामाजिक और भाषाई चुनौतियों को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी की बढ़ती स्वीकार्यता सांस्कृतिक एकता का संकेत देती है, वहीं हिंदी भाषी राज्यों में अन्य भाषाओं का सिकुड़ना भाषाई विविधता के लिए खतरे की घंटी है। आवश्यकता है संतुलन की—जहाँ हिंदी का प्रचार हो, वहीं अन्य भाषाओं का संरक्षण भी सुनिश्चित किया जाए। तभी भारत की भाषाई समृद्धि और सांस्कृतिक विविधता टिकाऊ रह सकेगी।