तेजस्वी के सामने सियासत की ये है सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा राजद की ऐतिहासिक पराजय के बाद संगठन के बिखरने का खतरा!
बड़ी शिकस्त के बाद न सिर्फ राजद का मनोबल गिरा है, बल्कि तेजस्वी की नेतृत्व क्षमता पर भी गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। दो चुनाव लगातार हारने के बाद अब उन्हें अपनी राजनीति की सबसे कठिन परीक्षा देनी होगी
RJD: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में राजद को मिली करारी शिकस्त ने न सिर्फ राजनीतिक धरातल पर तेजस्वी यादव की पकड़ ढीली कर दी है, बल्कि पार्टी और परिवार दोनों के भीतर ऐसा भूचाल ला दिया है जिसकी गूंज लंबे समय तक सुनाई देगी। महागठबंधन की पार्टियों ने दबी जुबान में ही सही, लेकिन साफ कर दिया है कि तेजस्वी को ज़बरदस्ती सीएम फेस बनाने की ज़िद ने पूरे गठबंधन को डुबो दिया। चुनावी नतीजों के बाद सहयोगी खुले तौर पर नेतृत्व पर सवाल उठाने लगे हैं, और हार का पूरा ठीकरा तेजस्वी के सिर फोड़ने की तैयारी दिखा रहे हैं।
इस राजनीतिक संकट को और गहरा करने का काम किया तेजस्वी की बहन रोहिणी आचार्या ने। लोकसभा चुनाव में सबसे मुखर समर्थक रहीं रोहिणी ने इस बार नतीजों के बाद पार्टी और परिवार दोनों से नाता तोड़ दिया। उधर बड़ी बहन मीसा भारती से भी अनबन की खबरों ने साफ कर दिया है कि लालू-राबड़ी परिवार में दरारें चौड़ी हो रही हैं। सवाल यह भी उठ रहा है कि लालू प्रसाद और राबड़ी देवी कब तक तेजस्वी की ढाल बनकर खड़े रहेंगे।
हार के बाद पुराने और निकाले गए नेताओं ने भी हमला तेज कर दिया है। राजद की महिला प्रकोष्ठ की पूर्व अध्यक्ष रितु जायसवाल ने सोशल मीडिया पर लिखा कि खुद को चाणक्य समझने की भूल में जीती हुई सीटें गंवाई जाती हैं। यह टिप्पणी तेजस्वी के सलाहकारों, विशेषकर संजय यादव और उनके करीबी रमीज़, पर तीखा वार मानी जा रही है।
जातीय गणित भी इस बार तेजस्वी के खिलाफ गया। उन्हें विरासत में मिलामुस्लिम–यादव समीकरण ) इस चुनाव में बिखरा नजर आया। राजद के 54 यादव उम्मीदवारों में से सिर्फ 11 जीते, जबकि NDA में 15 यादव विधायक जीतकर आए। मुस्लिम वोट तो और भी तेज़ी से खिसके RJD ने 19 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे, लेकिन सिर्फ 3 जीते। इसके उलट AIMIM ने सीमांचल की सभी 5 मुस्लिम बहुल सीटों को फिर से अपने नाम कर लिया। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, मुस्लिम समाज अब मानने लगा है कि तेजस्वी BJP को रोक पाने में सक्षम नहीं हैं।
इधर परिवार की टूट भी चुनावी हार जितनी ही गहरी साबित हो रही है। तेज प्रताप यादव की नाराज़गी खुलकर सामने आ चुकी है। सोशल मीडिया पर गर्लफ्रेंड की तस्वीर विवाद के बाद उन्हें परिवार और पार्टी दोनों से अलग-थलग कर दिया गया। जवाब में उन्होंने जनशक्ति जनता दल बनाकर 45 सीटों पर चुनाव लड़ा और भले कोई सीट न जीत पाए, लेकिन महुआ में राजद को हराने में सफल रहे।
रोहिणी आचार्या ने भी पोस्ट किया “मैं पार्टी और परिवार दोनों से नाता तोड़ रही हूं…सब दोष मेरा है।”तेज प्रताप ने तो और भी तीखा तंज कसा—“जो भाई का नहीं हुआ, वो जनता का क्या होगा।”तेजस्वी यादव के सामने अब दोहरी चुनौती खड़ी है टूटते परिवार को बचाना,बिखरती पार्टी को फिर से खड़ा करना।
इतनी बड़ी शिकस्त के बाद न सिर्फ संगठन का मनोबल गिरा है, बल्कि तेजस्वी की नेतृत्व क्षमता पर भी गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। दो चुनाव लगातार हारने के बाद अब उन्हें अपनी राजनीति की सबसे कठिन परीक्षा देनी होगी पहले परिवार जोड़ना, फिर पार्टी को बचाना और उसके बाद ही भाजपा जैसी ताकत से मुकाबला करना।