Bhaiya Bahini Temple: जहां धरती ने निगल लिए भाई-बहन, वहीं फूटा अमर प्रेम का वटवृक्ष ,भीखाबांध का पावन भैया-बहिनी मंदिर
Bhaiya Bahini Temple: एक भाई अपनी बहन को उसके ससुराल से विदा कराकर घर ला रहा था।मुगल सैनिकों ने डोली रोकी और बहन की अस्मिता पर घृणित दृष्टि डाली।बहन ने ईश्वर से पुकारा "हे प्रभु! मेरी लाज की रक्षा करना।" कहते हैं कि धरती माता ने अपना आँचल फैला...
Bhaiya Bahini Temple: सीवान की धरती… यह केवल मिट्टी नहीं, यह तपस्या, त्याग और त्यागमयी प्रेम की सजीव गाथा है। द्रोणाचार्य के शौर्य से लेकर तथागत बुद्ध के करुणामय उपदेशों तक, इस भूमि की हर बयार में धर्म, वीरता और करुणा की सुगंध बसी है। इसी पवित्र सीवान में, दरौंदा और महाराजगंज थाना क्षेत्र की सीमा पर स्थित है एक अलौकिक स्थान भीखाबांध गांव का भैया-बहिनी मंदिर।
यह कोई साधारण मंदिर नहीं, यहां कोई सोने-चांदी का सिंहासन नहीं, कोई रत्नजड़ित प्रतिमा नहीं। यहां पूजित हैं मिट्टी के पिंड, जो भाई और बहन के अमर रिश्ते के प्रतीक हैं। एक टीले पर भाई, दूसरे पर बहन और इनके बीच वह कथा, जिसे सुनकर हृदय श्रद्धा और वेदना से भर उठता है।
कथा उस काल की है जब मुग़ल सल्तनत अपने वैभव पर थी। एक भाई अपनी बहन को उसके ससुराल से विदा कराकर घर ला रहा था। रास्ता भीखाबांध गांव से होकर गुज़रा। तभी मुगल सैनिकों ने डोली रोकी और बहन की अस्मिता पर घृणित दृष्टि डाली। अकेला भाई, धर्म की रक्षा के संकल्प से जूझ पड़ा, परंतु शत्रु संख्या में अधिक थे।
वह घड़ी आई जब बहन ने अपनी पलकें बंद कर ईश्वर से पुकारा "हे प्रभु! मेरी लाज की रक्षा करना।" कहते हैं कि जैसे ही ये प्रार्थना पूरी हुई, धरती माता ने अपना आँचल फैला दिया। पल भर में वह पवित्र जोड़ी भाई और बहन भूमि में समा गए। स्थान खाली रह गया, पर प्रेम की वह अद्भुत मिसाल समय के पन्नों में अमर हो गई।कुछ समय बाद, उसी पवित्र स्थान पर दो वटवृक्ष अंकुरित हुए। एक वृक्ष भाई, दूसरा बहन, और कालांतर में दोनों एक-दूसरे से लिपटकर एक हो गए। प्रकृति ने स्वयं इस रिश्ते को अमरत्व का आशीर्वाद दे दिया।
गांव के लोगों ने इस स्थान को मंदिर का रूप दिया। मिट्टी के पिंड बनाकर पूजा होने लगी, और रक्षाबंधन का पर्व यहां एक अद्वितीय आस्था के महोत्सव के रूप में मनाया जाने लगा। इस दिन बहनें यहां आकर पवित्र वटवृक्ष को राखी बांधती हैं और भाई के दीर्घायु, सुख-समृद्धि और रक्षा की कामना करती हैं।
कभी यह स्थान मात्र दो वटवृक्षों का था, आज यह 12 बीघे में फैल चुका है। इसकी जड़ों का रहस्य आज तक अनसुलझा है मानो यह वृक्ष धरती के गर्भ से सीधे ईश्वर के आंगन में जुड़े हों। रक्षाबंधन के अवसर पर यहां भव्य मेला लगता है, जहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। स्थानीय विश्वास है "यहां मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।"
गांववाले इस पवित्र स्थल की सेवा को धर्म मानते हैं। सफाई से लेकर पूजा-पाठ तक, सब मिलकर करते हैं। कोई पंडित मंत्रोच्चार में व्यस्त है, तो कोई मेले में आए श्रद्धालुओं की मदद में। हर ओर शंख, घंटा और राखी की खुशबू मिलकर एक अद्भुत वातावरण रचते हैं।
भैया-बहिनी मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, यह भाई-बहन के अटूट बंधन की जीवंत गाथा है। यहां आकर लगता है कि रक्षाबंधन केवल धागे का त्योहार नहीं, बल्कि उस वचन का प्रतीक है जिसे निभाने के लिए धरती भी अपने आँचल में समा ले।