Medicine prices decrease:अब नहीं खरीदनी पड़ेगी महंगी दवा, दवाओं की कीमतें घटाने को लेकर NPPA ने जारी कर दिया ये बड़ा फरमान , मरीज़ों को मिलेगा सीधा फायदा

सरकार ने जैसे ही कई दवाओं पर GST घटाया, वैसे ही NPPA ने दवा कंपनियों को सख़्त हिदायत दी है कि टैक्स कम हुआ है तो MRP भी कम करो, ताकि जनता को सीधा फ़ायदा मिले।...

दवाओं की कीमतें घटाने को लेकर NPPA ने जारी कर दिया बड़ा फरमान- फोटो : social Media

Medicine prices decrease: बिहार से लेकर दिल्ली तक चुनावी गलियारों में जब महंगाई सबसे बड़ा मुद्दा बन चुकी है, ऐसे वक़्त में नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (NPPA) का ताज़ा आदेश सियासत की ज़ुबान में जनता को राहत की सौगात माना जा रहा है। सरकार ने जैसे ही कई दवाओं पर GST घटाया, वैसे ही NPPA ने दवा कंपनियों को सख़्त हिदायत दी है कि टैक्स कम हुआ है तो MRP भी कम करो, ताकि जनता को सीधा फ़ायदा मिले।

अब तक आम लोग यही शिकायत करते रहे कि टैक्स में कटौती का ऐलान तो होता है, मगर उसका असर न तो दुकानदार तक पहुँचता है और न ही उपभोक्ता की जेब पर। मगर इस बार आदेश साफ़ है MRP उसी अनुपात में घटाना अनिवार्य होगा। यानी जनता को कागज़ी राहत नहीं बल्कि दवाइयों के बिल में वास्तविक राहत मिलेगी।

NPPA का यह फ़ैसला सिर्फ़ तकनीकी आदेश नहीं, बल्कि राजनीतिक संदेश भी है। विपक्ष अक्सर सत्ता पर आरोप लगाता रहा है कि महंगाई पर कोई काबू नहीं। वहीं सत्ता पक्ष अब इसे अपने “जनकल्याण एजेंडे” के हिस्से के तौर पर पेश करेगा।

हाल ही में कई दवाओं पर GST की दर 12% से घटाकर 5% कर दी गई है, जबकि कुछ जीवनरक्षक दवाओं पर 5% से सीधे शून्य प्रतिशत कर दिया गया है। इसका मतलब यह है कि अब मरीजों को इलाज के लिए पहले से कम पैसे खर्च करने होंगे। जो परिवार रोज़ाना दवाओं पर सैकड़ों रुपये खर्च करते हैं, उन्हें यह राहत बड़ी लग सकती है।

NPPA ने दवा निर्माताओं और मार्केटिंग कंपनियों को साफ़ कहा है कि री-लेबलिंग, री-स्टिकरिंग या रीकॉल की कोई अनिवार्यता नहीं होगी। बस एक संशोधित प्राइस लिस्ट जारी करनी है और उसे रिटेलर्स व राज्य नियंत्रकों तक पहुंचाना है। यानी जनता को फायदा मिले और कंपनियों पर अतिरिक्त बोझ न पड़े। यह कदम प्रशासनिक सख़्ती और व्यावहारिक राहत का संतुलन दिखाता है।

असल मायनों में यह आदेश उन परिवारों के लिए बड़ी राहत है, जिनके घर में किसी को डायबिटीज़, ब्लड प्रेशर या अन्य गंभीर बीमारियों के लिए रोज़ दवा लेनी पड़ती है। इलाज का बोझ कम होगा और चुनावी भाषा में कहें तो “सत्ता ने जनता के दर्द पर मरहम लगाने की कोशिश की है।”