RBI ने LCR फ्रेमवर्क पर जारी की अंतिम गाइडलाइंस, अप्रैल 2026 से होगा लागू

RBI Guidelines
RBI Guidelines- फोटो : Social Media

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने लिक्विडिटी कवरेज रेश्यो (LCR) फ्रेमवर्क को लेकर अंतिम दिशानिर्देश जारी कर दिए हैं। यह संशोधित फ्रेमवर्क 1 अप्रैल, 2026 से लागू होगा। इसका उद्देश्य बैंकों की तरलता प्रबंधन क्षमता को मजबूत बनाना और उन्हें वित्तीय संकट की स्थिति में बेहतर तरीके से तैयार करना है। यह कदम RBI द्वारा 25 जुलाई, 2024 को प्रस्तावित किए गए ड्राफ्ट सर्कुलर का अगला चरण है, जिसमें बेसल III मानकों के अनुरूप LCR फ्रेमवर्क में बदलाव का प्रस्ताव रखा गया था। हितधारकों से प्राप्त सुझावों और प्रतिक्रियाओं की समीक्षा के बाद अब केंद्रीय बैंक ने अंतिम रूप से दिशानिर्देश जारी किए हैं।

RBI द्वारा जारी गाइडलाइंस के अनुसार, बैंकों को अब इंटरनेट और मोबाइल बैंकिंग का उपयोग करने वाले रिटेल और स्मॉल बिजनेस ग्राहकों की जमा राशि पर 2.5 फीसदी की अतिरिक्त रन-ऑफ रेट लगानी होगी। इसके साथ ही स्टेबल रिटेल डिपॉजिट्स की रन-ऑफ रेट को 5% से बढ़ाकर 7.5% कर दिया गया है। लेस-स्टेबल रिटेल डिपॉजिट्स की रन-ऑफ रेट को 10% से बढ़ाकर 12.5% कर दिया गया है। बैंकों को अब गवर्नमेंट सिक्योरिटीज (Level 1 HQLA) की मार्केट वैल्यू को समायोजित करने के लिए लिक्विडिटी एडजस्टमेंट फैसिलिटी (LAF) और मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (MSF) के तहत आवश्यक हेयरकट का उपयोग करना होगा।

RBI ने ‘अन्य कानूनी संस्थाओं’ से प्राप्त फंडिंग के लिए रन-ऑफ रेट को भी अधिक यथार्थवादी बनाया है। अब नॉन-फाइनेंशियल एंटिटीज जैसे कि शैक्षणिक, धर्मार्थ और धार्मिक ट्रस्ट, साझेदारी संस्थाएं (पार्टनरशिप), और लिमिटेड लाइबिलिटी पार्टनरशिप्स (LLP) से प्राप्त धन पर रन-ऑफ रेट 100% से घटाकर 40% कर दी गई है। इन नए बदलावों का उद्देश्य भारत के बैंकिंग सिस्टम को वैश्विक मानकों के अनुरूप लाना और यह सुनिश्चित करना है कि बैंकों के पास किसी भी प्रकार के लिक्विडिटी संकट से निपटने के लिए पर्याप्त उच्च गुणवत्ता वाली तरल संपत्तियां (HQLA) हों।

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