Heaven of Earth: इस मंदिर में स्वयं देवर्षि नारद करते हैं पूजा-अर्चना, अनादि काल का घृत कम्बल प्रसाद बना श्रद्धालुओं का सौभाग्य
योगसिद्धिदा, द्वापर युग में विशाला और कलियुग में बदरिकाश्रम के नाम से विख्यात बदरीनाथ धाम, भगवान नारायण के पवित्र निवास के रूप में विश्व भर में पूजनीय है।

Heaven of Earth: योगसिद्धिदा, द्वापर युग में विशाला और कलियुग में बदरिकाश्रम के नाम से विख्यात बदरीनाथ धाम, भगवान नारायण के पवित्र निवास के रूप में विश्व भर में पूजनीय है। 4 मई 2025 को बदरीनाथ धाम के कपाट खुलते ही भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा, और भगवान बदरी विशाल का नित्य अभिषेक, पूजन, दर्शन और अर्चना का सिलसिला शुरू हो गया। यह धाम न केवल आध्यात्मिक शांति का केंद्र है, बल्कि अनादि काल से चली आ रही परंपराओं का भी जीवंत प्रतीक है।
देवर्षि नारद और मानव पूजा की परंपरा: बदरीनाथ मंदिर के धर्माधिकारी के अनुसार, शीतकाल में जब मंदिर के कपाट 6 माह के लिए बंद रहते हैं, तब स्वयं देवर्षि नारद भगवान बदरी विशाल की पूजा-अर्चना करते हैं। इस अवधि में देवता ही भगवान के मुख्य पुजारी होते हैं। कपाट खुलने के साथ ही यह दायित्व मानवों को सौंपा जाता है। दक्षिण भारत के केरल प्रांत से आए नंबूदरी ब्राह्मण, जिन्हें रावल कहा जाता है, मंदिर के मुख्य पुजारी के रूप में पूजा-अर्चना की यह पवित्र जिम्मेदारी निभाते हैं।
कपाट खुलने पर सबसे पहले रावल मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करते हैं। वे भगवान बदरी विशाल को दंडवत प्रणाम कर उनकी आज्ञा लेते हैं। इसके बाद, शीतकाल में कपाट बंद होने के समय भगवान को पहनाया गया ऊनी वस्त्र (कम्बल) रावल द्वारा अनुरोधपूर्वक उतारा जाता है। इस कम्बल को "घृत कम्बल" कहा जाता है, जिसके एक-एक रेशे को प्रसाद के रूप में प्राप्त करना श्रद्धालु अपना परम सौभाग्य मानते हैं। बदरीनाथ मंदिर के पूर्व धर्माधिकारी बताते हैं कि यह आस्था और मान्यता अनादि काल से चली आ रही है, जो भक्तों के लिए असीम श्रद्धा का प्रतीक है।
घृत कम्बल न केवल भगवान के विग्रह से प्राप्त पवित्र प्रसाद है, बल्कि यह भक्तों की आस्था का केंद्र भी है। श्रद्धालु इसे प्राप्त कर स्वयं को धन्य मानते हैं, क्योंकि यह माना जाता है कि इस प्रसाद में भगवान बदरी विशाल की कृपा समाहित होती है। यह परंपरा बदरीनाथ धाम की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को और भी समृद्ध बनाती है।
योगसिद्धिदा, विशाला और बदरिकाश्रम जैसे नामों से पुकारा जाने वाला यह धाम हिंदू धर्म में चारधाम यात्रा का अंतिम और अत्यंत महत्वपूर्ण पड़ाव है। भगवान नारायण के दर्शन से मोक्ष की प्राप्ति का विश्वास इस धाम को और भी पवित्र बनाता है। कपाट खुलने के साथ शुरू हुई पूजा-अर्चना और भक्ति का यह सिलसिला अगले छह महीनों तक अनवरत जारी रहेगा।