Religion: चिंतन बना सकता है स्वर्ग, गिरा सकता है नर्क में—बस एक विचार और बदल जाती है पूरी जिंदगी!आजमा कर देखिए..आपका जाता क्या है..
Religion: मनुष्य का चिंतन ही उसका भाग्य रचता है। जैसे-जैसे विचार आते हैं, वैसे ही शरीर की हर तंत्रिका, हर चेतना उसी दिशा में सक्रिय हो उठती है। ..
Religion: मनुष्य का चिंतन ही उसका भाग्य रचता है। जैसे-जैसे विचार आते हैं, वैसे ही शरीर की हर तंत्रिका, हर चेतना उसी दिशा में सक्रिय हो उठती है। काम, क्रोध, लोभ या ईर्ष्या—इनका चिंतन मात्र भी शरीर और मन को विषाक्त कर देता है। कामेंद्रियां उद्दीप्त होती हैं, मन अधर्म की ओर झुकता है। यही पतन की शुरुआत है। क्रोध आए तो दृष्टि दूषित, विचार हिंसक और वाणी विषैली हो जाती है। चिंतन की दिशा यदि अधोगामी हो, तो जीवन नरक बनते देर नहीं लगती—और यदि चिंतन दिव्य हो, तो यही जीवन मोक्ष का द्वार बन जाता है।जो हम चिंतन करते हैं उसका तत्काल प्रभाव और परिणाम हमारे शरीर में दिखने लगता है,उसी तरह से शरीर और मन हरकत करने लगता है। आजमा कर देखिए,वासना क्रोध का चिंतन आते ही शरीर अकड़ने लगता है,मन दूसरे तरह की हरकतें करने लगता है। तंत्रिका कांपने लगता है, शरीर की हर तंत्रिकाएं दूसरे तरीके से एक्ट करती है। काम का चिंतन करते हीं कामेंद्रियां सक्रिय हो उठती हैं फिर हम उसी में डूब जाते हैं। फिर व्यभिचार जैसे हरकतों को अंजाम देते हैं।आज जो भी घटनाएं घट रहीं हैं बस इसी तरह के चिंतन का परिणाम है।हम वासना का चिंतन करते हैं तो मन में वहीं दौड़ता है..फिर पाप के अन्धकूप में ऐसे गिरते हैं कि लोक लाज भी छोड़ बैठते हैं। क्रोध आता है तो घर से लेकर बाहर की दुनिया नकारात्मक दिखती है।फिर वह हो जाता है जिसकी कल्पना तक हम नहीं कर रहे कामभाव,अहंकार ईर्ष्या ,राग किसी से द्वेष, हठ,लोभ,लाभ का चिंतन चित्त और मन को पूरी जिंदगी स्थिर नहीं रहने देगा यह गांठ बांध लीजिए।इन सबका परिणाम शरीर तो झेलना शुरू कर देता है आत्म को सजा कई जन्मों तक मिलती है ।
जीते जी जिन्दगी जहन्नुम बन जाती है। फिर ऐसे चिंतन का क्या फायदा जो दिल और दिमाग को स्थिर ही न रहने दे। सबसे पहले यह सोचिए जो कि जो हम सोच रहे उससे मेरे अंदर बैठे जीव फिर परिवार और समाज को क्या फायदा होगा। बैठे - बैठे भविष्य और अतीत की बात को की कल्पना कर मन बैठने लगता है। सबसे पहले अपने दिमाग के इर्द गिर्द एक जबरदस्त घेराबंदी करनी होगी।आपको 24 घंटे सतर्क रहना होगा..जैसे हीं कोई गलत चिंतन आता हो..उसको मार कर भगाइए। जैसे चिंतन को बदलने की प्रयास सफल होगा विचार निश्चित तौर पर बदल जाएगा।विचार ही फिर कर्म के तौर पर परिणत होगा। हमारे वश में ये सब है..पहले चिंतन फिर उसका विचार बनना फिर उसके बाद उसे कर्म का आकार देना।बस यही धर्मयुक्त कर्म है।
तो फिर देर किस बात की सीताराम नाम स्मरण नीति नियत बस ठीक रखिए, विवेकपूर्ण ढंग से कर्म पथ पर चलिए और सब कुछ श्री सीताराम जी पर छोड़िए। फिर देखिए। मजा आ जायेगा.... झूठ बोलना तो एकदम छोड़ दीजिए...कलयुग में यह सबसे बड़ा महापाप है,कोशिश करने में क्या जाता है..बाकी रघुनाथ जी जाने...
कौशलेंद्र प्रियदर्शी की कलम से....