जगद्गुरु रामभद्राचार्य और प्रेमानंद महाराज के विवाद में कूदे शंकराचार्य, संतों को दे दिया सबसे बड़ा सुझाव
Premanand Maharaj : जगद्गुरु रामभद्राचार्य द्वारा संत प्रेमानंद महाराज के भाषा ज्ञान को लेकर की गई टिप्पणी के बाद संत समाज भी इसमें दो भागों में बंटा नजर आ रहा है. जहां एक वर्ग संत प्रेमानंद महाराज के समर्थन में है दूसरा वर्ग कथावाचन के लिए संस्कृत जैसी भाषा का ज्ञान होने के जगद्गुरु रामभद्राचार्य के दावे का समर्थन कर रहा है. अब इस विवाद में शंकराचार्य भी कूद गए हैं. उन्होंने भी इस मामले में जगद्गुरु रामभद्राचार्य को लेकर एक अहम टिप्पणी की है. यह एक प्रकार से शंकराचार्य जगद्गुरु रामभद्राचार्य के विचारों का समर्थन करना माना जा रहा है.
रामभद्राचार्य के बयान के बाद शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने भी परोक्ष रूप से प्रेमानंद महाराज की भक्ति पद्धति पर प्रश्न उठाए हैं. उनका कहना है कि शास्त्र और ज्ञान के बिना अध्यात्म अधूरा है. इसी विचारधारा को लेकर उनका झुकाव रामभद्राचार्य के पक्ष में माना जा रहा है. इस विवाद ने साफ कर दिया है कि संत समाज एकमत नहीं है. एक पक्ष प्रेमानंद महाराज को “कलियुग का दिव्य संत” मानते हुए उन्हें जनमानस का मार्गदर्शक बताता है, जबकि दूसरा पक्ष उनके चमत्कार और आध्यात्मिक ज्ञान पर प्रश्न खड़े करता है.
दरअसल, संत प्रेमानंद महाराज को लेकर शुरू हुआ विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। हम आपको बता दें कि जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने हाल ही में एक पॉडकास्ट में यह कहकर हलचल मचा दी थे कि वह प्रेमानंद महाराज को "चमत्कारी" नहीं मानते। उन्होंने यहाँ तक चुनौती दे डाली कि यदि वह वास्तव में चमत्कारी हैं तो अपने संस्कृत श्लोकों का हिंदी में अर्थ बताकर दिखाएँ। इस बयान ने संत समाज को दो खेमों में बाँट दिया है।