Religion: नंदी क्यों रहते हैं मंदिर के बाहर? समाधि, भक्ति और आत्मबोध का प्रतीक और शिव-भक्ति का 'अमृत-सूत्र'

शिव परिवार का महत्वपूर्ण और अभिन्न हिस्सा होने के बावजूद असीम शक्तियों के स्वामी नंदी शिव परिवार के साथ न होकर गर्भ-गृह के बाहर क्यों स्थापित होते हैं. इसके पीछे भी रहस्य है. ...

नंदी क्यों रहते हैं मंदिर के बाहर?- फोटो : Meta

 नंदी का 'रहस्यमय' स्थान और शिव-भक्ति का 'अमृत-सूत्र'

यह बात यकीनन अटपटी लग सकती है कि भोलेनाथ के 'कुटुंब' का अविभाज्य अंग होने के बावजूद, असीम शक्तियों के स्वामी नंदी गर्भगृह के बाहर क्यों 'आसीन' होते हैं। इस 'पहेली' के पीछे गहरा 'मर्म' छिपा है, जो आध्यात्मिक यात्रा के गूढ़ रहस्यों को उजागर करता है। नंदी, जो गर्भगृह के बाहर 'उन्मुक्त' नेत्रों से समाधि की अवस्था में विराजमान रहते हैं, उनकी दृष्टि सदैव 'भोलेशंकर' की ओर 'केंद्रित' रहती है। यह अवस्था 'आत्मज्ञान' की पराकाष्ठा का प्रतीक है।

महाभारत के रचयिता के 'मतानुसार', 'आत्मज्ञान' की 'सिद्धि' खुली आँखों से ही होती है, और इस 'ज्ञान-चक्षु' के सहारे 'जीवन-मुक्ति' का मार्ग सरल हो जाता है। शास्त्रों में वर्णित है कि शिव-दर्शन से पूर्व नंदी के दर्शन करना 'आवश्यक' है। यह विधान इसलिए है ताकि भक्त अपने 'अहंकार' सहित समस्त 'बुराइयों' से 'मुक्त' हो सके। 'मद', 'मोह', 'छल', 'कपट' और 'ईर्ष्या' जैसे विकारों को नंदीश्वर के चरणों में 'त्याग' कर ही मनुष्य शिव के समीप जाकर उनकी 'कृपा' का पात्र बन सकता है।

'नंदी' का 'शाब्दिक' अर्थ 'प्रसन्नता' है, अर्थात् जिनके दर्शन मात्र से ही समस्त दुख दूर हो जाते हों। नंदी जीवन में 'प्रसन्नता' और 'सफलता' के 'दूत' हैं। ऋषि शिलाद के 'अयोनिज' पुत्र नंदी शिव के ही 'अंश' हैं, इसलिए वे 'अजर-अमर' हैं। उनके सींग 'विवेक' और 'वैराग्य' के 'प्रतीक' हैं, जो मनुष्य को सांसारिक 'मोह-माया' से ऊपर उठने की 'प्रेरणा' देते हैं। दाहिने हाथ के अंगूठे और तर्जनी से नंदी के सींगों को स्पर्श करते हुए ही शिव के दर्शन किए जाते हैं। यह इस बात का 'द्योतक' है कि नंदी की कृपा के बिना शिव कृपा 'असंभव' है।

आपने मंदिरों में अक्सर देखा होगा कि कुछ लोग नंदी के कान के पास जाकर कुछ 'बुदबुदाते' हैं। यह 'बुदबुदाना' और कुछ नहीं, एक तरह से 'सिफारिश की गुहार' लगाना ही है। इससे भक्त अपनी 'मनोकामना' नंदी के माध्यम से महादेव तक पहुंचाते हैं। 'भोले बाबा' अपने नंदी की बात को कभी नहीं टालते, क्योंकि नंदी, शिव और भक्तों के बीच उस 'अद्वितीय सेतु' का कार्य करते हैं, जिसके सहारे व्यक्ति शिव की शरण में पहुंच कर उनकी 'कृपा' का 'अधिकारी' हो जाता है। ॐ नमः शिवाय!

कौशलेंद्र प्रियदर्शी की कलम से...