Bihar School News: बिहार का ऐसा स्कूल जिसे नसीब नहीं है भवन, बरगद के पेड़ के नीचे जमीन पर बैठकर पढ़ने को मजबूर हैं बच्चे, गुरु जी भी रहते हैं नदारद

Bihar School News:शिक्षा विभाग के कागजी आंकड़े भले ही सुनहरे सपने दिखाते हों, लेकिन हकीकत यह है कि आज भी बच्चे खुले आसमान के नीचे, बरगद के पेड़ की छांव में शिक्षा ग्रहण करने को मजबूर हैं।

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ऐसा स्कूल जिसे नसीब नहीं है भवन- फोटो : Reporter

Bihar School News: एक ओर बिहार का शिक्षा विभाग राज्य में शिक्षा सुधार के दावे कर रहा है, वहीं दूसरी ओर जमुई जिले के नक्सल प्रभावित इलाकों की जमीनी हकीकत इन दावों की पोल खोल रही है। शिक्षा विभाग के कागजी आंकड़े भले ही सुनहरे सपने दिखाते हों, लेकिन हकीकत यह है कि आज भी आदिवासी बच्चे खुले आसमान के नीचे, बरगद के पेड़ की छांव में शिक्षा ग्रहण करने को मजबूर हैं।

बात कर रहे हैं जमुई के बरहट प्रखंड स्थित गुरमाहा उत्क्रमित मध्य विद्यालय की। यह स्कूल कई आदिवासी गांवों के दो सौ से अधिक बच्चों के लिए शिक्षा का एकमात्र सहारा है। लेकिन हालात इतने बदतर हैं कि यहां न तो भवन है, न शिक्षक नियमित आते हैं, और न ही बच्चों को मध्यान्ह भोजन नसीब हो रहा है।

शिक्षा भवन गायब, शिक्षक नदारद

 स्कूल परिसर में न कोई शिक्षक मौजूद था और न ही कोई व्यवस्था दिखाई दी। स्कूल प्रभारी अरुण दिवाकर के साथ-साथ सहायक शिक्षकों—अनुपम कुमारी, प्रीति कुमारी और सिंटू कुमार—में से कोई भी स्कूल में उपस्थित नहीं था। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि शिक्षक सिर्फ तब आते हैं जब कोई उच्चाधिकारी का दौरा होता है या कोई कार्यक्रम होता है।

मध्यान्ह भोजन भी एक छलावा

बच्चों को पोषण देने के लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही मध्यान्ह भोजन योजना भी इस स्कूल में मज़ाक बन कर रह गई है। ग्रामीणों के अनुसार, महीनों से बच्चों को भोजन नहीं मिला है और योजना के तहत मिला चावल सामुदायिक भवन में सीमेंट के बोरे के पास सड़ रहा है।

प्रशासन की प्रतिक्रिया और जनता की निराशा

जब इस मुद्दे पर जिला शिक्षा पदाधिकारी राजेश कुमार से सवाल किया गया, तो उन्होंने सिर्फ औपचारिक बयान देते हुए "जांच के बाद कार्रवाई" की बात कही। पर सवाल यह है कि जांच कब होगी, और कार्रवाई किस पर?

क्या आदिवासी बच्चों का भविष्य ऐसे ही उजड़ता रहेगा?

गुरमाहा जैसा हाल आज भी बिहार के कई नक्सल प्रभावित गांवों का है, जहां सरकारी घोषणाएं तो होती हैं, लेकिन उनका लाभ धरातल पर नज़र नहीं आता। जिन बच्चों के हाथों में किताबें होनी चाहिए, वो आज भी खाली कुर्सियों की ओर टकटकी लगाए बैठे हैं, कि शायद कोई आए... उन्हें पढ़ाए।

बिहार सरकार और शिक्षा विभाग को चाहिए कि वह सिर्फ कागज़ों पर सुधार न दिखाए, बल्कि ज़मीनी स्तर पर बदलाव लाने के लिए ईमानदारी से काम करे। वरना यह हालात कल के भविष्य को अंधकार की ओर धकेलते रहेंगे।

सुमित सिंह की रिपोर्ट

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