बिहार विधानसभा चुनाव में 35 वर्ष बाद खत्म होगी जाति की राजनीति, नई पीढ़ी के नेताओं की मजबूरी बने 57 फीसदी युवा, जानिए कैसे

बिहार की सियासत करीब 35 वर्ष के बाद जाति के जकड़न से मुक्ति की ओर है. इतना ही नहीं यह पहला मौका है जब एक साथ युवाओं नेताओं के बीच सियासी भिड़ंत है.

Bihar assembly elections main issue- फोटो : news4nation

Bihar assembly election: जनगणना के आंकड़ों के अनुसार बिहार में 57% आबादी 25 वर्ष से कम आयु की है, जो देश में युवाओं का सबसे अधिक अनुपात है. बिहार में युवाओं की यह 'भीड़' राजनीतिक दलों के लिए भी अपनी सियासी रणनीति को बदलने को मजबूर कर रहा है. यही कारण है कि बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार चुनावी विमर्श केवल जातीय समीकरण या पुराने नारों तक सीमित नहीं दिख रहा बल्कि सियासी दल अब शिक्षा, पलायन और रोजगार जैसे बुनियादी मुद्दों को लेकर जमीन पर लड़ाई लड़ी जा रही है. 


संयोग से इस बार का बिहार विधानसभा चुनाव युवा नेताओं के चेहरे पर लड़ा जा रहा है चुनाव भी साबित होने वाला है. जैसे राजद प्रमुख तेजस्वी यादव, उनके भाई तेज प्रताप यादव, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान, डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी, चुनाव रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर, बिहार के पूर्व सीएम जीतन राम मांझी के बेटे संतोष कुमार सुमन और यूके-रिटर्न पुष्पम प्रिया चौधरी सक्रिय रूप से बिहार के गांवों, कस्बों और बस्तियों में सार्वजनिक रैलियां और प्रचार कर रहे हैं. इनमें से अधिकांश नेता 35 से 55 वर्ष की आयु के हैं. ऐसे में वे युवा  मतदाता से जुड़ाव मजबूत कर खुद को बिहार की सत्ता का सिरमौर बनाने की कोशिश में लगे हैं. यहां तक कि युवा नेताओं की फेहरिस्त में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत भी शामिल हैं जिनकी सियासी एंट्री को लेकर चर्चा तेज है. 


तेजस्वी करेंगे कलम से कमाल! 

राजद नेता तेजस्वी यादव ने युवाओं के एक कार्यक्रम में छात्रों को कलम वितरित करते हुए शिक्षा के वादे दोहराया. तेजस्वी यादव जिन्होंने 2020 के चुनाव अभियान में बेरोजगारी और पलायन पर ध्यान केंद्रित किया था, वे इस बार सत्ता में आने पर 100% डोमिसाईल नीति और स्थानीय लोगों के लिए नौकरी के अवसरों का वादा कर रहे हैं. लालू यादव जहां 'तेल पिलावन-लाठी घुमावन' जैसी रैलियों से अपने लिए जनता के दिल में जगह बनाते थे, वहीं उनके पुत्र अब युवाओं को 'कलम पकड़ाओ' का नारा देकर अपनी सियासी जमीन को मजबूत कर रहे हैं. माना जा रहा है कि इसका बड़ा कारण बिहार की  57% आबादी ई जो 25 वर्ष से कम आयु की है. इसे ही अपने पाले में करने के लिए तेजस्वी का यह जोर है. 


पीके का स्कूल बैग 

जनसुराज अभियान के सूत्रधार प्रशांत किशोर को चुनाव चिन्ह के रूप में स्कूल बैग मिला है.  जनसुराज के कार्यक्रमों में अक्सर इस बात पर जोर दिया जाता है कि बिहार में सरकारी स्कूलों की स्थिति दयनीय है, शिक्षक-अभाव, आधारभूत ढांचे की कमी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की अनुपलब्धता के कारण लाखों बच्चे शिक्षा से वंचित हैं. पीके अपने इस अभियान से साफ संकेत दे रहे हैं कि शिक्षा को मुख्यधारा की राजनीति में प्रमुख स्थान मिलना चाहिए.


सियासी जानकारों का मानना है कि बिहार का सबसे बड़ा सामाजिक-आर्थिक संकट पलायन है. शिक्षा की बदहाली और स्थानीय रोजगार के अभाव ने राज्य के युवाओं को वर्षों से दूसरे राज्यों की ओर पलायन करने पर मजबूर किया है. प्रशांत किशोर अपने जनसभाओं में लगातार इस मुद्दे को उठाते हैं. वे पूछते हैं, "आख़िर कब तक बिहार का नौजवान पंजाब की ईंट भट्टियों या दिल्ली की सड़कों पर मज़दूरी करता रहेगा?" उनके निशाने पर लालू के साथ नीतीश कुमार भी हैं. ऐसे में अब स्कूल बैग के सहारे वे युवाओं के बीच शिक्षा को सियासी मुद्दा बनाकर पेश करने में लगे हैं. 


बिहार फर्स्ट-बिहारी फर्स्ट 

चिराग पासवान भी युवाओं को केंद्रित राजनीति करने के लिए ही बिहार फर्स्ट-बिहारी फर्स्ट का नारा पिछले कई चुनावों से लगा रहे हैं. इस बार भी वे इसी के आसपास अपनी राजनीति को केंद्रित किये हैं. वे इसके द्वारा  बिहार की राजनीतिक दिशा बदलने की कोशिश का नारा दे रहे हैं. 


निशांत और सम्राट चौधरी भी युवा चेहरे 

जदयू की ओर से निशांत को अब नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी के रूप में पेश करने की वकालत कई नेताओं ने की है. नीतीश कुमार के पुत्र अभी तक राजनीति में आने से इंकार करते रहे हैं लेकिन उन्हें अब जदयू की कमान संभालने के लिए बार बार पार्टी के भीतर से आवाज उठ रही है. वहीं भाजपा में भी जिस चेहरे को युवा के रूप में पेश किया गया है उसमें उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी का नाम प्रमुख है. जीतन राम मांझी भी अपने बेटे संतोष सुमन को पढ़ा लिखा और योग्य युवा चेहरा बता चुके हैं. 


बिहार में बदली सियासी बयार 

बिहार की राजनीति अब महज़ जातीय ध्रुवीकरण या भावनात्मक नारों से नहीं चलने वाली शायद इसका अंदाजा इन युवा सियासतदानों को लग गया है. स्कूल बैग और कलम जैसे प्रतीकों का इस्तेमाल एक बदले हुए सियासी विमर्श का संकेत है, जहाँ युवाओं की आकांक्षाएँ, शिक्षा की गुणवत्ता और रोजगार की उपलब्धता प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं. और इसका सबसे बड़ा कारण बिहार में 57% आबादी 25 वर्ष से कम आयु का होना माना जा रहा है.