बिहार विधानसभा चुनाव के पहले हट जाएगा इन मतदाताओं का नाम, चुनाव आयोग करा रहा ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’, भड़का वामदल
बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चुनाव आयोग की ओर से मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण कराया जा रहा है. वामदलों का कहना है कि इससे बड़ी संख्या में मतदाताओं का नाम मतदाता सूची से हट जाएगा.
Bihar Vidhansabha Election: सीपीआई (एमएल) एल ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर इस साल के अंत में होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची के ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’ (एसआईआर) के संचालन पर कड़ी आपत्ति जताई है. वामदल ने इसे तार्किक रूप से बेतुका विचार कहा है, क्योंकि 'कम समय सीमा' में इस पुनरीक्षण के परिणामस्वरूप पूर्ण अराजकता और बड़े पैमाने पर अशुद्धियाँ और नाम हटाए जाने का अंदेशा जताया है. वामदलों का कहना है कि इससे कई वैध मतदाताओं का नाम हट जाएगा.
वामदल जिसने 2020 के बिहार चुनावों में 19 में से 12 सीटें और राज्य से 2024 के लोकसभा चुनावों में दो लोकसभा सीटें जीती थीं, ने यह भी कहा कि बिहार में एसआईआर एक तरह से असम में हुए एनआरसी अभ्यास के समान होगा, जहां 3.3 करोड़ की आबादी को कवर करने में छह साल लग गए थे, जबकि बिहार में 7.8 करोड़ मतदाता हैं, जिन्हें एक महीने के समय में अभ्यास में शामिल किया जाना है.
एक महीने में होगी गणना
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को लिखे पत्र में सीपीआई (एमएल) एल महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि वे “अचानक आदेशित” एसआईआर के बारे में सुनकर स्तब्ध हैं, जिसके तहत चुनाव आयोग को बिहार में लगभग 7.8 करोड़ मतदाताओं की सिर्फ एक महीने के भीतर घर-घर जाकर पूरी गणना करनी है और भरे हुए गणना फॉर्म जमा करना है. उन्होंने कहा, आखिरी बार बिहार में इस तरह का गहन पुनरीक्षण 2002 में किया गया था, जब कोई चुनाव नहीं था और मतदाताओं की संख्या लगभग 50 (पांच करोड़) मिलियन थी. बिहार में 2000 और 2005 में राज्य चुनाव और 2004 में लोकसभा चुनाव हुए.
वामदल ने कहा बेतुका विचार
उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी बिहार में भूमिहीन गरीबों के वोट के अधिकार के आंदोलन से सबसे अधिक जुड़ी रही है और हमें डर है कि चुनाव से पहले इतने कम समय में विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान से घोर अराजकता और बड़े पैमाने पर अशुद्धियां और नाम हटाए जाने की स्थिति पैदा हो जाएगी। उन्होंने चुनाव आयोग से अनुरोध किया कि इस समय 'तर्कसंगत रूप से बेतुके विचार को त्याग दिया जाए और मतदाता सूची को सामान्य रूप से अद्यतन करने का काम किया जाए.
देना होगा दस्तावेज
चुनाव आयोग ने 2003 की मतदाता सूची को आधार सूची मानने का प्रस्ताव रखा है और बाद में जोड़े गए मतदाताओं को पहचान के लिए कई तरह के सबूत देने होंगे. उन्होंने कहा कि जो मतदाता किसी कारणवश इस समय सीमा के दौरान आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर पाएंगे, उनका नाम मतदाता सूची से हटा दिया जाएगा और उन्हें उनके मतदान के अधिकार से वंचित कर दिया जाएगा. उन्होंने उम्मीद जताई कि चुनाव आयोग उनकी चिंता पर "गंभीरता से प्रतिक्रिया" देगा और यह सुनिश्चित करेगा कि संविधान और गणतंत्र की 75वीं वर्षगांठ पर बिहार के लोग मतदान के अपने मौलिक लोकतांत्रिक अधिकार से "वंचित" न हों.
पारदर्शी होगी प्रक्रिया : आयोग
दरअसल, मंगलवार को इस प्रक्रिया की घोषणा करते हुए चुनाव आयोग ने कहा कि गहन संशोधन का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी पात्र नागरिकों के नाम मतदाता सूची में शामिल किए जाएं और कोई भी अपात्र मतदाता इसमें शामिल न हो. इससे मतदाता सूची में मतदाताओं के नाम जोड़ने या हटाने की प्रक्रिया में पूर्ण पारदर्शिता भी सुनिश्चित होगी. 2003 के बाद पंजीकृत हुए मतदाताओं और नए मतदाताओं को जन्म तिथि या जन्म स्थान का प्रमाण देना होगा और जो ऐसा नहीं कर पाएंगे उनके नाम मतदाता सूची से हटा दिए जाएंगे.