नीतीश के घर बख्तियारपुर में भाजपा का कमल खिलाने की तैयारी, विधानसभा चुनाव में इनके बीच टिकट की होड़, देखिए लिस्ट
भाजपा ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के घर यानी बख्तियारपुर में विधानसभा चुनाव में कमल खिलाने की तैयारी तेज कर दी है. इस बार टिकट दावेदारों में एक नया नाम सबको हैरान कर सकता है.
Bakhtiyarpur Assembly: बिहार की 243 विधानसभा सीटों में पटना का बख्तियारपुर निर्वाचन क्षेत्र मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह क्षेत्र है. ऐसे में बख्तियारपुर विधानसभा क्षेत्र एनडीए के लिए सिर्फ एक सीट नहीं, बल्कि प्रतिष्ठा की कसौटी बनी हुई है. बख्तियारपुर का सियासी इतिहास देखें तो साल 1995 तक सिर्फ एक बार छोड़कर करीब साढ़े 4 दशक तक यहां कांग्रेस पार्टी का कब्जा रहा है. लेकिन फिर कांग्रेस इस सीट से ऐसी गायब हुई कि अब उसका नामोनिशान तक नहीं है. साल 1995 के बाद से यह सीट RJD और BJP के बीच ही घूम रही है. यहां अब तक कुल 3 बार भाजपा, 3 बार राजद के प्रत्याशी विधायक रह चुके हैं. वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में राजद के अनिरुद्ध यादव ने जीत हासिल की थी जबकि 2015 में भाजपा के रणविजय यादव उर्फ़ लल्लू मुखिया ने चुनाव जीता था.
माना जा रहा है कि राजद अपने सीटिंग विधायक अनिरुद्ध यादव को ही फिर से टिकट देने जा रही है. एनडीए की ओर से टिकट किसे मिलेगा इसके लिए कई दावेदार ताल ठोंक रहे हैं. चुकी बख्तियारपुर सीट शुरू से ही भाजपा के कोटे में रही है तो इस बार भी एनडीए में यह सीट बीजेपी को मिलेगी. बीजेपी से टिकट किसे मिलेगा यह यक्ष प्रश्न बनता जा रहा है. सूत्रों के मानें तो भाजपा के रणविजय यादव उर्फ़ लल्लू मुखिया भले ही पूर्व मुखिया रहे हों लेकिन वर्ष 2020 के बाद से उनका प्रदर्शन लगातार खराब रहा है. ऐसे में वे टिकट दावेदारी की दौड़ में पिछड़ सकते हैं.
दरअसल, रणविजय यादव उर्फ़ लल्लू मुखिया को न सिर्फ वर्ष 2020 में विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा बल्कि उसके बाद जिला पार्षद के चुनाव में भी उन्हें झटका लगा था. यहां तक कि जिस घोसवरी पंचायत से लल्लू मुखिया आते हैं वहां पंचायत चुनाव में भी इनके समर्थित उम्मीदवार की हार हुई थी. इससे टिकट दावेदारी में इनका दावा कमजोर पड़ सकता है. वहीं भाजपा से विधायक बने विनोद यादव कब का भाजपा छोड़ चुके हैं. वर्ष 2020 में उन्होंने उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी से किस्मत आजमाया था. ऐसे में अब उनके भाजपा से टिकट मिलने के कोई आसार नहीं लगते हैं.
नए चेहरे पर दांव
सूत्रों की माने तो भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इस बार किसी पुराने कार्यकर्ता और नए चेहरे को उम्मीदवार बना सकती है. इसमें जिस नाम को लेकर भीतरखाने चर्चा है उसमें सुधीर कुमार यादव का नाम सुर्खियों में है. सुधीर यादव उस दौर में बख्तियारपुर में भाजपा कार्यकर्ता बने जब लालू -राबड़ी राज में यादव समाज के ज्यादातर लोग राजद के साथ जुड़े माने जाते थे. वे लालू राजद में भारी विरोध के बाद भी वर्ष 1999 में बख्तियारपुर में भाजपा का परचम बुलंद करने निकले. तब से लगातार बीजेपी को यहां जमीनी तौर पर मजबूत किया. यहां तक कि भाजपा सांसद रहे शत्रुध्न सिन्हा के दो बार 10 साल तक सांसद प्रतिनिधि रहे. डॉ विनोद यादव को विधायक चुनाव जिताने में जमीनी मेहनत किया.
कृष्नौत वर्ग का बड़ा वोट
सुधीर कुमार यादव के साथ जातीय तौर पर एक मजबूत आधार माना जाता है. वे यादवों में कृष्नौत वर्ग से आते हैं. चिरैया, काला दियारा, हरिदासपुर, सतभैया जैसे कई पंचायतों में करीब 40 हजार कृष्नौत वर्ग के यादव मतदाता हैं. ऐसे में यह सुधीर यादव के लिए वोटरों को गोलबंद करने का मजबूत आधार है. बख्तियारपुर विधानसभा क्षेत्र के अंदर खुसरूपुर, दनियावां और बख्तियारपुर ब्लॉक आते हैं, जहां ग्रामीण वोटरों का सबसे अधिक प्रभाव है. इस पूरे क्षेत्र में यादव वोटरों का दबदबा है. करीब 90 हजार यादव वोटर हैं. इसके साथ ही करीब 40 हजार राजपूत, 30 हजार भूमिहार, 20 हजार मुस्लिम, 15 हजार कुर्मी सहित 40 हजार वैश्य व अन्य अति पिछड़ा समुदाय के वोटर भी निर्णायक भूमिका में हैं. ऐसे में पिछले ढाई दशक से इस इलाके में जमीनी स्तर पर काम कर रहे सुधीर यादव इन जातीय समीकरणों को अपने पक्ष में करने में लगे हैं.