Bihar Vidhansabha Chunav 2025: बिहार चुनाव से पहले 15 पार्टियों पर आयोग का शिकंजा , डीलिस्टिंग की लटकी तलवार, लिस्ट देख लीजिए

Bihar Vidhansabha Chunav 2025: बिहार विधानसभा चुनाव की उलटी गिनती भले ही औपचारिक रूप से शुरू न हुई हो, लेकिन चुनाव आयोग एक्टिव मोड में आ चुका है।

बिहार चुनाव से पहले 15 पार्टियों पर आयोग का शिकंजा- फोटो : social Media

Bihar Vidhansabha Chunav 2025: बिहार विधानसभा चुनाव की उलटी गिनती भले ही औपचारिक रूप से शुरू न हुई हो, लेकिन चुनाव आयोग एक्टिव मोड में आ चुका है। राजनीतिक दलों की भीड़ में से निष्क्रिय और निष्प्रभावी संगठनों को हटाने की दिशा में आयोग ने सख्ती दिखाते हुए उन रजिस्टर्ड गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों की सूची जारी की है, जिन्होंने 2019 के बाद से एक भी चुनाव नहीं लड़ा है।

मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के दफ़्तर से जारी नोटिस में साफ कहा गया है कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत पंजीकृत दलों को कई प्रकार की सुविधाएँ और लाभ मिलते हैं। यदि कोई दल वर्षों तक चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा ही नहीं लेता, तो यह व्यवस्था का दुरुपयोग माना जाएगा। ऐसे दलों को अब कारण बताना होगा कि उन्हें सूची से बाहर क्यों न किया जाए।

आयोग ने सभी ऐसे निष्क्रिय दलों को 1 सितंबर दोपहर 3 बजे तक अपना पक्ष प्रस्तुत करने का आदेश दिया है। राजनीतिक दलों को न केवल लिखित पक्ष रखना होगा बल्कि अपने सक्रिय होने के साक्ष्य भी प्रस्तुत करने होंगे। इसके बाद रिपोर्ट भारत निर्वाचन आयोग को भेजी जाएगी और डीलिस्टिंग की कार्रवाई शुरू होगी।

जिन दलों को नोटिस मिला है, उनमें कई अज्ञात और लगभग अदृश्य नाम शामिल हैं—

भारतीय आवाम एक्टिविस्ट पार्टी

भारतीय जागरण पार्टी

भारतीय युवा जनशक्ति पार्टी

एकता विकास महासभा पार्टी

गरीब जनता दल सेक्यूलर

जय जनता पार्टी

जनता दल हिंदुस्तानी

लोकतांत्रिक जनता पार्टी सेकुलर

मिथिलांचल विकास मोर्चा

राष्ट्रवादी युवा पार्टी

राष्ट्रीय सद्भावना पार्टी

राष्ट्रीय सदाबहार पार्टी

वसुदेव कुटुंबकम पार्टी

वसुंधरा जन विकास दल

यंग इंडिया पार्टी

इन नामों को पढ़कर ही साफ हो जाता है कि बिहार की राजनीतिक फिज़ा में चुनावी मौसम आते ही कितने “कागज़ी संगठन” सक्रिय हो उठते हैं, और मौसम बीतते ही गायब हो जाते हैं।

दरअसल, बिहार की सियासत इन दिनों बेहद अस्थिर रही है। नीतीश कुमार ने 2020 में एनडीए के साथ सरकार बनाई, फिर 2022 में आरजेडी के साथ चले गए, और जनवरी 2024 में एक बार फिर भाजपा की गोद में लौट आए। सत्ता समीकरण की इस उठापटक के बीच छोटे दल हाशिये पर खिसक गए। अब आयोग के शिकंजे से इनकी राजनीतिक “प्रासंगिकता” पर ही प्रश्नचिह्न लग गया है।

बहरहाल बिहार चुनाव से पहले यह कदम चुनाव आयोग की  सफाई अभियान जैसी पहल है। अब राजनीति में वही टिकेगा जो मैदान में उतरेगा, सिर्फ नाम और पंजीकरण के सहारे राजनीतिक दल कहलाना अब संभव नहीं रहेगा।