सीमांचल में बीजेपी की सियासी चाल, पक रही है एनडीए की सियासी खिचड़ी, समझिए पीएम मोदी के पूर्णिया दौरे का असली मतलब
Bihar Vidhansabha Chunav 2025: चुनावी रणभूमि में सबसे अधिक ध्यान सीमांचल क्षेत्र पर केंद्रित है, जो राजनीतिक दृष्टि से अब सबसे अहम क्षेत्र बन चुका है।....
Bihar Vidhansabha Chunav 2025: बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मी अब अपने चरम पर है। सियासी पार्टियां मतदाताओं को अपने पाले में करने के लिए हर हथकंडा आजमा रही हैं। जहां एनडीए सत्ता में वापसी के लिए पूरी ताकत झोंक रहा है, वहीं महागठबंधन अपने अस्तित्व को बचाने और वोटरों में अपनी पकड़ मजबूत करने में जुटा है। इस चुनावी रणभूमि में सबसे अधिक ध्यान सीमांचल क्षेत्र पर केंद्रित है, जो राजनीतिक दृष्टि से अब सबसे अहम क्षेत्र बन चुका है।
आज यानी 15 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सीमांचल के पूर्णिया में दौरे पर हैं, जहां वह 36,000 करोड़ रुपये से अधिक की विकास परियोजनाओं का उद्घाटन करेंगे। इनमें पूर्णिया हवाई अड्डे के नए टर्मिनल भवन का उद्घाटन, राष्ट्रीय मखाना बोर्ड की शुरुआत और अन्य विकास कार्य शामिल हैं। पीएम मोदी का यह दौरा इस इलाके में एनडीए की राजनीतिक पकड़ को मजबूत करने का रणनीतिक कदम माना जा रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी हाल ही में इस इलाके का दौरा कर चुके हैं।
वहीं विपक्षी मोर्चे पर महागठबंधन अपने वोटर अधिकार यात्रा के माध्यम से सीमांचल में सक्रिय है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव और कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस यात्रा के दौरान महागठबंधन की एकजुटता का संदेश दिया। पूर्णिया में सांसद पप्पू यादव और आरजेडी नेतृत्व के बीच पिछले मतभेदों के बावजूद समझौते का संकेत देने की कोशिश की गई। राहुल गांधी ने बेरोजगारी, कृषि और शिक्षा के मुद्दों पर केंद्र और राज्य सरकारों पर कटाक्ष किया।
प्रशांत किशोर ने सीमांचल के रूपौली, कस्बा, बनमनखी और बैसी जैसे विधानसभा क्षेत्रों में सक्रिय भूमिका निभाई। उनका दावा है कि ओवैसी, लालू और नीतीश कुमार ने मुसलमानों के लिए पर्याप्त काम नहीं किया। किशोर का फोकस विकास के जरिए मुस्लिम वोटरों को आकर्षित करना है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि किशोर की सक्रियता से मुस्लिम वोट बंट सकता है, जिससे महागठबंधन को नुकसान और एनडीए को लाभ होने की संभावना है।
सीमांचल में एआईएमआईएम की मौजूदगी और प्रशांत किशोर के नेतृत्व में जन सुराज आंदोलन ने सियासी ड्रामे को और रोचक बना दिया है। ओवैसी की पार्टी ने मुस्लिम वोट का ध्रुवीकरण करके महागठबंधन के समीकरण को प्रभावित किया। सीमांचल में 2020 के विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम ने पांच सीटें जीतीं, जिनमें से चार विधायक बाद में आरजेडी में शामिल हो गए। अब अमौर से उसका एकमात्र विधायक बचा है।
सीमांचल में किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया जिले आते हैं, जिनमें कुल 24 विधानसभा सीटें हैं। यहां मुस्लिम आबादी की संख्या अधिक है, जिसके कारण सभी राजनीतिक दल इन वोटरों को अपने पाले में करने के लिए रणनीतिक कदम उठा रहे हैं। साल 2011 की जनगणना के अनुसार, सीमांचल में औसतन 46 प्रतिशत मुस्लिम हैं। किशनगंज में 68%, अररिया में 43%, पूर्णिया में 38% और कटिहार में 44% मुस्लिम आबादी है। इसके अलावा यादव और अति पिछड़े वर्गों (EBC) की संख्या भी निर्णायक भूमिका निभाती है।
पिछले चुनावों की तुलना करें तो 2020 में सीमांचल में महागठबंधन और कांग्रेस का समीकरण बिगड़ गया था। कांग्रेस ने 5 सीटें और आरजेडी-लेफ्ट ने 1-1 सीट जीती थी। एआईएमआईएम ने 5 सीटें जीतकर अपने प्रभाव का सबूत दिया और बीजेपी ने 8 सीटें जीती। 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी, जेडीयू और कांग्रेस ने समान रूप से 5-5 सीटें जीतीं, जबकि आरजेडी ने 9 सीटों पर विजय पाई थी।
हाल ही में हुए वोटर लिस्ट के गहन पुनरीक्षण (SIR) ने भी राजनीतिक हलचल बढ़ा दी। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार सीमांचल के चार जिलों में दो जिले ऐसे हैं जहां मतदाता सूची में अधिकतम कटौती हुई है। पूर्णिया में 12.08%, किशनगंज में 11.82%, कटिहार में 8.27% और अररिया में 7.59% वोटर सूची से हटा दिए गए।
सीमांचल की यह राजनीतिक जटिलता, मुस्लिम वोट का ध्रुवीकरण और विकास योजनाओं का ऐलान, आगामी बिहार विधानसभा चुनाव को अत्यंत रोमांचक और निर्णायक बना रहे हैं। इस इलाके की राजनीति में अब एनडीए, महागठबंधन और एआईएमआईएम के बीच सघन टकराव नजर आएगा, जो राज्य की राजनीतिक दिशा तय करेगा।