Bihar Politics: कमरिया के बल पर वोट की बिसात, मुजफ्फरपुर के मेले में राजनीति और रंगीनियत का संगम, क्या क्या ना सहा हमने सनम आपकी खातिर..
Bihar Politics: राजनीति के रंग बड़े गहरे होते हैं, और चुनावी मौसम में तो इन रंगों की छटा देखते ही बनती है। मेले में भीड़ थी, मंच पर नाचती "लोक संस्कृति की प्रतीक" नृत्यांगनाएं थीं। पर जो नहीं था, वो था जनता का मुद्दा...

Bihar Politics:राजनीति के रंग बड़े गहरे होते हैं, और चुनावी मौसम में तो इन रंगों की छटा देखते ही बनती है। बिहार में विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे नेताओं की सक्रियता और रचनात्मकता, दोनों अपने चरम पर पहुंच रही हैं। चुनाव को लेकर सभी पार्टी के नेता जनता को रिझाने के लिए और बड़े नेताओं को खुश करने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपना रहे है। इसी कड़ी में बिहार के मुजफ्फरपुर जिले का एक मेला चर्चा में बना हुआ है। जी हां शहर के एक विधानसभा के माननीय अपने बल बूते हर साल मेला का आयोजन करवाते हैं। लकिन इस साल चुनाव है तो जाहिर सी बात है कि माननीय पर मेला में अधिक भीड़ जमा करने की और पार्टी के बड़े नेताओं को ज्यादा जमावड़ा दिखाने की नैतिक जिम्मेदारी बढ़ गई।
अब भीड़ इक्कठ्ठा कैसे हो तो इसके लिए नेता जी ने एक जुगाड़ लगाया। उन्होंने राज्य के मशहूर नृत्यगनाओं का जमघट लगावाया, नत्यगंनाओं ने भी लटके झटके से जनता का भरपुर मनोरंजन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
इसके बाद जब मेला का अवसान होने वाला था तो माननीय ने अपने पार्टी के शीर्ष नेता को रावन दहन कार्यक्रम में शरीक होने के लिए आमंत्रित किया। माननीय के आमत्रंण पर बड़े नेता जी ने भी आने की हामी भर दी।
इसके बाद माननीय इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए बड़े नेता जी को अधिक भीड़ दिखाने के लिए कुलबुलाने लगे । इस भीषण गर्मी में नेता जी ने भीड़ जुटाने का सबसे नायाब तरीका निकाला।
माननीय ने आव न देखा ताव और बड़े नेता के स्वागत में भीड़ के सामने रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन करवा दिया। रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम में जनता को लुभाने के लिए नेता जी ने स्थानीय संस्कृति के नाम पर राज्य की प्रसिद्ध नृत्यांगनाओं को बुलाया। पर यहां लोकगीत और सांस्कृतिक प्रस्तुति की जगह मंच पर अश्लीलता की बौछार देखने को मिली। 'लोक' तो जरूर मौजूद था, पर 'संस्कृति' को कहीं कोने में पटक दिया गया था।
"हमार कमर ए बाबू करोड़ी बा हो..." जैसे गीतों पर नाचती नृत्यांगनाओं के पीछे मेला परिसर में बैठे ग्रामीणों की भीड़ झूमती रही। बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं और नौजवान – सभी इस चुनावी तमाशे के मूक दर्शक बन गए।
जब राज्य के एक वरिष्ठ पार्टी नेता को रावण दहन कार्यक्रम में बुलाने की बारी आई, तो माननीय विधायक खुद माइक थामे उद्घोषक की भूमिका में उतर आए। पसीने से तरबतर विधायक जी लोगों से कहते रहे –"कैंपस के अंदर कोई नहीं जाएगा, आधे घंटे में डिप्टी साहब आ रहे हैं..."
इधर माननीय उद्घोष कर रहे थे उधर नृत्यंगना 'हमार कमर ए बाबू करोदी बा हो, भईल केतना लोगन के कामजोड़ी बा हो हो ...,बलखाते हुए कमर लचका रही था...अब इलेक्शन है, तो कमरिया पर भला तो चलेगा हीं...
बहरहाल भीड़ थी, तालियां थीं, कैमरे थे, और मंच पर नाचती "लोक संस्कृति की प्रतीक" नृत्यांगनाएं थीं। पर जो नहीं था, वो था विकास का मुद्दा, युवाओं की बेरोज़गारी, गांव की सड़क, पानी की व्यवस्था, शिक्षा की चर्चा।इस पूरे आयोजन ने यह स्पष्ट कर दिया कि लोकतंत्र के इस महापर्व में भीड़ जुटाने का नया मंत्र है – "कमरिया के बल पर वोट की बिसात बिछाओ, और तालियों में तमाशा ढंक दो।
रिपोर्ट- नरोत्तम कुमार सिंह के साथ रितिक कुमार