Literature: मूल तुम्हें तो प्यारा था ही, ब्याज पर सर्वश लुटा दिया...पढ़िए मंजू देवी की मार्मिक कविता

मंजू कुमारी द्वारा रचित "चिता" कविता एक विधुर की अन्तर्मन की अनुभूतियों को मार्मिकता से चित्रित करती है।एक अग्नि जला, तो सात जन्मों का बंधन बंधा, और एक अग्नि आज,सात जन्मों का रिश्ता खाक किया।..

एक अग्नि जला, तो सात जन्मों का बंधन एक जला तो खाक हुआ....- फोटो : reporter

चिता

पत्नी की जलती चिता देख,

पुरुष मन यादों में खो गया,

एक अग्नि जला, तो सात जन्मों का बंधन बंधा,

और एक अग्नि आज,सात जन्मों का रिश्ता खाक किया।

लगे महावर पैरों में,जब मेरे साथ तुम आयी थी ,

घर में साथ गृहप्रवेश करके, तूं गृह लक्ष्मी कहलायी थी।

तुमने अपने समझदारी से, सबके मन को मोह लिया था,

कर सारे परिवार की सेवा, कर्तव्यों को मान दिया था।

परिवार बढ़ा जिम्मेदारी बढ़ी,अपना दायरा सिमटा लिया,

और तुम अपने आधा जीवन, उनके परवरिश में लगा दिया।

बेटी की जब हुई विदाई, रोते रोते उसे समझा रही थी,

उस समय तुम्हारे चेहरे की लाली,सच में मुझे बहुत भा रही थी।

नई बहू जब घर में लाई,पैर जमीं पर नहीं थे तेरे,

शायद एक नई सफर पर,चल पड़ी तूं धीरे धीरे।

मैंने देखा तेरी अंखियां, गढ़ रहे थे सपने नये नये,

दादी नानी बनकर भी, कभी न तूं आराम किया,

मूल तुम्हें तो प्यारा था ही, ब्याज पर सर्वश लुटा दिया।

बेटे ने जब दी आवाजें, मैं वर्तमान में वापस आया,

लेकिन तूं सामने खड़ी हो, हौले से मुस्कायी।

साथ छुटा है, जिम्मेदारी नहीं छुटी, तुम मुझे समझा रही थी,

मैं थक गई थी , इसलिए वो जिम्मेदारी तेरे कंधों पर दे दी जी,

और आप अब कुछ मत सोचो,दे दो अंतिम विदाई जी।

(मंजू कुमारी द्वारा रचित "चिता" कविता एक विधुर की अन्तर्मन की अनुभूतियों को मार्मिकता से चित्रित करती है। पत्नी की चिता के सम्मुख खड़ा पति स्मृतियों में डूब जाता है  वह पल भी याद आता है जब अग्नि के समक्ष सात जन्मों का पवित्र बंधन जुड़ा था, और आज वही अग्नि उस बंधन का विसर्जन कर रही है।

पत्नी के रूप में स्त्री के जीवन-संघर्ष, त्याग और दायित्वों का बखूबी वर्णन है। विवाह से लेकर गृहप्रवेश, परिवार की सेवा, बच्चों का पालन-पोषण, विदाई के क्षणों की पीड़ा, और नई बहू के आगमन तक — हर क्षण में पत्नी ने समर्पण और प्रेम का अद्भुत परिचय दिया। वह सिर्फ परिवार की गृहलक्ष्मी नहीं, बल्कि कर्तव्यों की मूर्ति बन गई।

दादी-नानी बनकर भी विश्राम न करने वाली वह स्त्री, अंत में मृत्यु से भी पहले अपने पति को यह समझा जाती है कि उसका जाना शरीर का जाना है, न कि दायित्वों का। वह मुस्कान के साथ अपने अंतिम विदा की अनुमति माँगती है। लेखिका के परिपक्व संवेदनशील हृदय से उपजा यह काव्य, स्त्री जीवन के सूक्ष्मतम पहलुओं का साहित्यिक और भावनात्मक दस्तावेज है।)