कैसे 3 महीने में तैयार हुई 125 किलो वजनी और साढ़े 6 फीट ऊंची न्याय की देवी की न्यू स्टैच्यू? जाने सबकुछ
मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की द्वारा नई न्याय की मूर्ति को बनाने की पहल को भारतीय न्याय व्यवस्था में एक बड़ी परिपाटी के बदलाव के रूप में देखा जा रहा है,
New Lady Of Justice Statue: सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के नेतृत्व में 'न्याय की देवी' (लेडी ऑफ जस्टिस) की मूर्ति में किए गए बदलाव को भारतीय न्याय प्रणाली में एक ऐतिहासिक कदम के रूप में देखा जा रहा है। इस नई प्रतिमा के निर्माण का कार्य शिल्पकार विनोद गोस्वामी ने किया, जिन्होंने NDTV को बताया कि इस प्रतिमा को बनाने में तीन महीने की कड़ी मेहनत लगी। मूर्ति का वजन लगभग सवा सौ किलो है और साढ़े 6 फीट ऊंची है. इसको तैयार करते समय भारतीयता का विशेष ख्याल रखा गया है।
महत्वपूर्ण बदलावों में से एक यह है कि पहले की मूर्ति में न्याय की देवी की आंखों पर बंधी पट्टी को हटाया गया है, और हाथ में तलवार की जगह अब संविधान की किताब दी गई है। इसके अलावा, पारंपरिक गाउन की जगह भारतीय नारी की पहचान साड़ी का इस्तेमाल किया गया है, जो भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है। यह प्रतीकात्मक बदलाव न्याय प्रक्रिया को अधिक भारतीय और समकालीन दृष्टिकोण से जोड़ने का प्रयास है।
क्या है बदलाव का मुख्य उद्देश्य?
इस बदलाव का उद्देश्य यह संदेश देना है कि अब कानून अंधा नहीं है, बल्कि यह संविधान के सिद्धांतों के आधार पर निष्पक्ष और समावेशी न्याय करता है। पहले पट्टी का संदेश यह था कि कानून सभी के लिए समान है और न्यायिक प्रक्रिया में व्यक्ति की पहचान के आधार पर भेदभाव नहीं होता। लेकिन इस नई प्रतिमा के माध्यम से यह स्पष्ट किया जा रहा है कि कानून जागरूक और संवेदनशील है, और यह संविधान की किताब के अनुसार निष्पक्षता से न्याय करता है।
मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की पहल
मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की इस पहल को भारतीय न्याय व्यवस्था में एक बड़ी परिपाटी के बदलाव के रूप में देखा जा रहा है, जहां अंग्रेजी शासन से चले आ रहे न्यायिक प्रतीकों को बदलकर भारतीयता को प्राथमिकता दी जा रही है। इन बदलावों का उद्देश्य संविधान में समाहित समानता और न्याय के सिद्धांतों को और मजबूती से लागू करना है। यह पहल न्यायिक व्यवस्था में भारतीय सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्यों को सम्मिलित करने की दिशा में एक अहम कदम है, और इसे विभिन्न हलकों से व्यापक समर्थन मिल रहा है।