Mahakumbh Katha Part 1 2025 : देवों-असुरों की लड़ाई से शुरू हुआ महाकुंभ, जानें अमृत की चार बूंदें जहां गिरीं वहां की कहानी, कैसे शुरू हुआ सबसे बड़ा सनातन धर्म महोत्सव
Mahakumbh Katha Part 1 2025 : प्रयागराज में महाकुंभ का आगाज हो चुका है. 144 वर्ष बाद महाकुंभ का का पूण्य काल आया है. प्रयागराज महाकुंभ की इस महत्ता पर news4nation अपने पाठकों के लिए विशेष प्रस्तुति लाया है जो महाकुंभ के इतिहास, पौराणिकता और अध्यात्मि
Maha Kumbh Katha Part 1 2025 : महाकुंभ का अगाज हो चुका है.13 जनवरी 2025 से शुरु होकर इसका समापन 26 फरवरी 2025, महाशिवरात्रि को होगा.45 दिन तक चलने वाले इस महाकुंभ में तीन शाही स्नान होंगे.प्रयागराज में आयोजित इस बार के कुंभ में तीन ऐसी तिथियां होंगी जिन पर स्नान करना भी काफी शुभ माना जा रहा है. प्रयागराज में लगने वाले महाकुंभ की चर्चा से पहले आज आपको बतायेंगे कि महाकुंभ की शुरुआत कब हुई. इसके क्या हैं धार्मिक महत्व और इसके दंतकथाओं से जुड़ी रोचक कहानी.वैसे हिन्दुओं की पौराणिक ग्रंथ वेद और पुराण में में महाकुंभ को लेकर कोई चर्चा नहीं है. लेकिन, इससे जुड़ी कई दंतकथा है.
कुंभ मेले से जुड़ी दंत कथाओं के संबंध में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में प्राचीन इतिहास के प्रोफेसर डॉ. डी.पी. दुबे ने अपनी किताब ‘कुंभ मेला पिलग्रिमेज टू द ग्रेटेस्ट कॉस्मिक फेयर’ में पूरी कहानी है. इस किताब में ही कुंभ से जुड़ी दंतकथा की चर्चा के क्रम में प्रोफेसर डॉ. डी.पी. दुबे ने बताया है कि समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश को लेकर देवताओं और राक्षसों में युद्द हुआ.इस युद्द में राक्षसों ने देवताओं को हराकर अमृत अपने पास रख लिया.
इसके बाद देवताओं ने राक्षसों से अमृत कलश चुरा लिया. देवता जब राक्षसों से चुराकर यह अमृत कलश स्वर्ग ले जा रहे थे, इसी क्रम में अमृत कलश की चार बूंदे छलक कर पृथ्वी पर गिर पड़ा.आज उन्हीं चार स्थानों पर महाकुंभ लगता है. महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज के संगम , हरिद्वार में गंगा नदी, उज्जैन में शिप्रा नदी, और नासिक में गोदावरी नदी पर किया जाता है. इस बार प्रयागराज में महाकुंभ मेले का आयोजन हो रहा है.
क्या है देवताओं राक्षसों की कहानी
दरअसल, समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश को लेकर देवताओं और राक्षसों में युद्द हुआ.इस युद्द में राक्षसों ने देवताओं को हराकर उनसे अमृत कलश अपने पास रख लिया. देवताओं ने इसके बाद समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश को चुराने के लिए इंद्र के बेटे जयंत को भेजा. जयंत पक्षी का रुप लेकर धोखे से अमृत कलश चुराकर इसे स्वर्ग लेकर आए और फिर इसे स्वर्ग में हीं छिपा दिया. राक्षसों के घर से अमृत कलश को चुराने के लिए जयंत के साथ चार और देवता चंद्रमा, सूर्य, बृहस्पति और शनि को भेजा गया था. इन सभी को कई महत्वपूर्ण जिम्मेवारी दी गई थीय इसमें बृहस्पति को राक्षसों को रोकना था तो शनि को जयंत की निगरानी करनी थी कि वह सारा अमृत खुद ही नहीं पी जाए. इसी प्रकार से चंद्रमा को कलश को छलकने से बचाना था और सूर्य को कलश को टूटने से बचाने के लिए भेजा गया था.
लेकिन, दंत कथाओं के अनुसार राक्षसों के घर से अमृत कलश तो चुरा लिया. राक्षसों के घर से स्वर्ग ले जाने के क्रम में अमृत कलश से चार बूंदें छलक कर पृथ्वी पर गिर पड़ा. अमृत कलश के चार बूंदें छलक कर जहां पर गिरा वहीं पर महाकुंभ लगता है. दंतकथाओं के अनुसार ये चार बूंदें पृथ्वी पर हरिद्वार, प्रयाग राज,नासिक और उज्जैन पर गिरीं. अमृतकलश से जहां भी बूंदें छलक कर गिरी वह स्थान पवित्र हो गया और यहां पर स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ती होती है. यही कारण है कि इन जगहों पर महाकुंभ लगता है. कहा जाता है कि अमृत कलश को चुराने के लिए जयंत के साथ सूर्य, चंद्र, बृहस्पति और शनि गए थे. यही कारण है कि इन ग्रहों के स्थिति के कारण तय होता है कि कुंभ कहां पर लगेगा.
हर 12 साल के बाद ही क्यों लगता है महाकुंभ
डॉ. डी.पी. दुबे अपनी किताब में लिखते हैं कि पौराणिक कथाओं में समुद्र मंथन के साक्ष्य तो मिलते हैं.लेकिन अमृत के चार जगहों पर छलकने या कुंभ के आयोजन का कोई जिक्र नहीं है.हालांकि दंतकथाओं में कुंभ की कहानी की चर्चा है. चूंकि राक्षसों के पास से स्वर्ग तक जानें में इंद्र के बेटे जयंत को 12 दिन लग गए थे और देव कुल का एक दिन पृथ्वी के 12 दिनों के बराबर होता है. इस कारण प्रत्येक 12 वर्षों पर महाकुंभ का आयोजन किया जाता है.दंतकथाएं ऐसी अलिखित इतिहास है जो कहानी की तरह हर पीढ़ी,अपनी अगली पीढ़ी को सुनाती है. वे कहते हैं कि संभव है कि प्रत्येक 12 वर्ष पर लगने वाले कुंभ मेले की शुरुआत सनातन धर्म से भी प्राचीन हो.
शाही स्नान
13 जनवरी (सोमवार)- स्नान, पौष पूर्णिमा
14 जनवरी (मंगलवार)- शाही स्नान, मकर सक्रांति
29 जनवरी (बुधवार)- शाही स्नान, मौनी अमावस्या
3 फरवरी (सोमवार)- शाही स्नान, बसंत पंचमी
12 फरवरी (बुधवार)- स्नान, माघी पूर्णिमा
26 फरवरी (बुधवार)- स्नान, महाशिवरात्रि
महाकुंभ मेले पर रवि योग का निर्माण होने जा रहा है. इस दिन इस योग का निर्माण सुबह 7 बजकर 15 मिनट से होगा और सुबह 10 बजकर 38 मिनट इसका समापन होगा.इसी दिन भद्रावास योग का भी संयोग बन रहा है. इस योग में भगवान विष्णु की पूजा करना विशेष फलदायी माना जाता है.
महाकुंभ से news4nation की टीम