Bihar School News: एस. सिद्धार्थ ने पलटा केके पाठक का आदेश, शिक्षा विभाग ने लिया बिहार के 998 स्कूलों पर बड़ा फैसला, हजारों बच्चों पर असर
पटना. शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव एस. सिद्धार्थ ने विभाग के पूर्व अपर मुख्य सचिव केके पाठक के एक बड़े आदेश को पलट दिया है. इससे राज्य के 998 स्कूलों पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा. साथ ही इस निर्णय से राज्य के हजारों बच्चों को अब बेहतर सामाजिक और शैक्षिक माहौल में पढ़ाई पूरी करने का अवसर मिलेगा जो केके पाठक के निर्णय के कारण खत्म हो गया था. मुख्य रूप से एस. सिद्धार्थ के इस फैसले से एससी-एसटी वर्ग के बच्चे बड़े स्तर पर लाभान्वित होंगे.
दरअसल, केके पाठक जब शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव थे उस समय बड़े स्तर पर ऐसे स्कूल जिसमें मुख्य रूप से एससी-एसटी वर्ग के बच्चे पढ़ते थे और उन स्कूलों के पास अपना भवन नहीं था. उनका विलय उस इलाके के आसपास के मूल विद्यालयों में कर दिया है. भूमिहीन स्कूलों का मूल विद्यालयों में विलय कर देने से एससी-एसटी बहुसंख्यक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को अब उन बच्चों के साथ पढ़ने को बाध्य होना पड़ा जिनका सामाजिक परिवेश उनसे काफ़ी अलग है. ऐसा माना जाता है कि मूल स्कूलों में पहले से पढ़ने वाले बच्चे न सिर्फ़ संख्या में बहुत ज़्यादा हैं, बल्कि तथाकथित सामाजिक श्रेष्ठता की वजह से उनका वंचित समाज के बच्चों के साथ बर्ताव भी भेदभावपूर्ण है। परिणामस्वरूप, एससी-एसटी समाज के बच्चे इस नए परिवेश में सामंजस्य बिठाने संबंधी दिक्कतों से लेकर हीन भावना व अन्य समस्याओं से जूझने को मजबूर हैं।
वंचित समाज को मिल रही थी सुविधा : वहीं वंचित समाज के लोगों को मुख्य धारा में लाने हेतु बिहार सरकार के स्तर पर कई प्रयास किए गए हैं। इनमें बिना किसी भेदभाव के उनके लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की सुलभता सुनिश्चित करना एक महत्वपूर्ण कारक है। बिहार में सामाजिक न्याय को केंद्र में रखकर हाशिए पर रहने वाले समुदायों के बीच शिक्षा के प्रचार-प्रसार को विशेष प्राथमिकता दी जाती रही है। इसी कारण पूरे राज्य में वंचित समाज बहुल रिहाइश के आसपास के बहुत सारे विद्यालयों के परिसर में इस समाज के बच्चे-बच्चियों के लिए अलग से स्कूल चल रहे थे। भूमि के अभाव में ये स्कूल मूल स्कूलों की इमारतों को साझा कर चलाए जा रहे थे। लेकिन उनमें अन्य किसी भी सामान्य स्कूल के समान सभी सेवाएं बहाल थीं और सबसे बढ़कर, उनकी अपनी एक स्वतंत्र पहचान थी।
पाठक के फैसले पर दलित वर्ग की आपत्ति : हालाँकि भूमिहीन स्कूलों का मूल विद्यालयों में विलय कर देने से एससी-एसटी बहुसंख्यक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को कई प्रकार की चुनौतियां झेलनी पड़ रही हैं. भोजपुर ज़िला स्थित सलेमपुर के रहने वाले भूटन राम कहते हैं कि हमारे बच्चों के लिए पहले वाला स्कूल ही सही था। इस नए सिस्टम के कारण बच्चों को एडजस्ट करने में काफी दिक्कतें आ रही हैं और पढ़ाई-लिखाई में उनका मन भी कम लग रहा है। बिहार महादलित विकास मिशन योजना के तहत कार्यरत विकास मित्रों को भी वंचित समाज के हवाले से इस बारे में कई शिकायतें सुनने को मिली हैं। पश्चिम चंपारण ज़िला के चनपटिया प्रखंड में कार्य करने वाले रामनिवास कुमार के मुताबिक़ दलित समाज के बच्चों में नए स्कूल के प्रति कम रुझान देखा जा रहा है। वे नए माहौल में अलग-थलग महसूस करते हैं और इस कारण स्कूल में उनकी नियमित उपस्थिति सुनिश्चित करना एक चुनौती बन गई है।
एस सिद्धार्थ ने बदला तुगलकी फैसला : वर्तमान अपर मुख्य सचिव एस सिद्धार्थ, जिनकी पहचान ज़मीन से जुड़े अधिकारी के रूप में है, ने पदभार संभालने के बाद इस तुगलकी फ़ैसले से उपजी समस्याओं के आलोक में सभी जिलों से ऐसे स्कूलों के बारे में रिपोर्ट देने को कहा। अपनी छवि के अनुरूप, उन्होंने इस मुद्दे को पूरी गंभीरता से लिया और वंचित समाज के हितों की रक्षा हेतु 2-3 महीने के गंभीर विचार-विमर्श के बाद उनके आदेश पर ऐसे बहुत सारे स्कूलों को मूल स्कूलों से अलग कर दिया गया है। ताज़ा उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक़, अब तक शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों को मिलाकर कुल 2661 विलय हुए विद्यालयों में से 998 को विलय से मुक्त किया जा चुका है। साथ ही, उपयुक्त भूमि की पहचान कर स्कूल इमारत का निर्माण कार्य शुरू करने का भी निर्देश दिया गया है।
कुछ स्कूलों को मिली जमीन : कई भूमिहीन स्कूल को अब जमीन मिल गई है जिस पर स्कूल बनाए जा सकते हैं, लेकिन कुछ अभी भी सरकारी मानदंडों के अनुरूप उपयुक्त भूमि की अनुपलब्धता के चलते भूमिदाता खोजने के लिए संघर्षरत हैं। कुल 2661 स्कूलों का विलय मूल स्कूलों में किया गया था लेकिन अब 998 को उस विलय से अलग कर दिया गया है और अब वे पहले की तरह स्वतंत्र पहचान के साथ चलेंगे.