JP movement: हाजीपुर के दो सपूतों की शहादत दिवस, जेपी आंदोलन में बिदूपुर थानेदार की गोली से गई थी जान
वैशाली आज के दिन जिला मुख्यालय हाजीपुर से 13 KM दूर सन 1974 में लोकनायक जय प्रकाश नारायण के आह्वान पर देश में हुए छात्र आंदोलन के दौरान बिदूपुर के तत्कालीन थानाध्यक्ष के एक ही गोली से शहीद हुए अजित कुमार अकेला एवं विशेश्वर साह का 50 वां शहादत दिवस आज प्रखंड मुख्यालय शहादत स्थल पर मनाया जाएगा।
दोनों वीर सपूत के शहादत भारत जन जागरण मंच सह 1974 ई के जे पी आंदोलन मंच के तत्वाधान में कांग्रेस सरकार में इंदिरा गांधी द्वारा देश में लाए गए आपात काल के विरुद्ध हुए जेपी के आह्वान पर छात्र आंदोलन के दौरान गत 03 अक्टूबर दिन गुरुवार 1974 को बिदुपुर प्रखंड मुख्यालय गेट पर बिदूपुर थाने में तैनात तत्कालीन थानेदार लोहा सिंह ने अपने सर्विस रिवॉल्वर से गोली चलाई थी। उसी गोली लगने से अजीत और विशेश्वर साह शहीद हो गए थे।
दोनों शहिद सपूत 10 वें वर्ग के छात्र थे। अजीत को पिता से मिली थी प्रेरणा
शहीद अजित कुमार अकेला और विशेश्वर साह दोनों 10 वें वर्ग के छात्र थे। शहीद अजीत बिदुपुर सर्वोदय स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे। और शहीद विशेश्वर साह मथुरा हाई स्कूल में पढ़ रहे थे। वे 3 अक्टूबर को अपने साथियों के साथ स्कूल गए थे। तभी सूचना मिला कि आज हड़ताल है और स्कूल से ही प्रखंड घेराव करने चले गए थे।
विशेश्वर का लाश मां बाप को भी नहीं मिला - प्रशासन से लड़ने पर अजीत का लाश परिजन को मिला
शहीद विशेश्वर चार भाईयों में माझिल थे और उनकी उम्र 17 के थे। उनके पिता योगी साह किसान थे। शहीद विशेश्वर का अंतिम संस्कार करने के लिए उनके मां बाप को प्रशासन द्वारा लाश नही दिया गया था। विशेश्वर जो कपड़े पहने हुए थे उसी का एक दुकड़ा कॉलर दिया गया था परिवार वालें उसी का अंतिम संस्कार कर श्रद्धाकर्म किया थे। जबकि बिहार का बूढ़ा शेर अमीर गुरु सिंह का शावक शहीद अजीत कुमार का लाश परिजन प्रशासन से लड़कर ले लिए थे और अंतिम संस्कार कीए।
अजित जिस परिवार से थे उनके घर से तीन स्वतंत्रता थे।
शहीद अजीत कुमार अकेला के पिता अमीर गुरु सिंह और माता लीला देवी की देश की आजादी की लड़ाई में उनकी अहम भूमिका रही है। उनका ग्राम मोहनपुर खजबत्ता स्वतंत्रता सेनानियों का गढ़ माना जाता है। 1942 के भार छोड़ो आन्दोलन में अंग्रेजी फौज इस गाँव में आने की हिम्मत नहीं करती थी। अमीर सिंह का यह गाँव स्वतंत्रता सेनानियों का प्रशिक्षण केन्द्र था, मोहनपुर खजबत्ता गाँव राजननीतिक गतिविधियों का केन्द्र था। ब्रिटिश शासन के खिलाफ सारी नीतियों यही तय होती थी, हाजीपुर का गाँधी आश्रम और मोहनपुर खजबत्ता क्रान्तिारियों का गढ़ था। स्व० अमीर सिंह भारतीय संगठन के लोग भिन्न-भिन्न नामों से उन्हें जानते थे।
ब्रिटिश हुकुमत ने देश की राष्ट्रीय स्वर को दबाने के लिए आन्दोलनकारियों का विभिन्न जेलों में बन्द कर दिया। हजारीबाग जेल की दीवार को फाद कर स्व० जयप्रकाश नारायण और स्व० राम मनोहर लोहिया ने एक आजाद दस्ता का निर्माण किया था। स्व० अमीर सिंह आजाद दस्ता के कमाण्डर बनाये गये। आजाद दस्ता का प्रशिक्षण नेपाल के जंगल में मोरंग नदी के किनारे बनाया गया। अंग्रेजी सरकार को इस बात कि सूचना मिल गयी तो उसने नेपाल सरकार पर स्वतंत्रता सेनानियों को जेल में डालने का दबाव दिया। अंग्रेजी सरकार के दबाव पर स्व० लोक नायक जयप्रकाश नारायण और स्व० डा० राममनोहर लोहिया को नेपाल के हनुमाननगर जेल में बन्द कर दिया गया था। आजाद दस्ता के कमाण्डा स्व० अमीर सिंह ने कुछ साथियों के साथ जेल का फाटक तोड़कर दोनों सेनानियों को कारा मुक्त कराया।
स्व० अमीर सिंह सीतामढ़ी होते हुए आ रहे थे जो पथ पाकर गाँव में अंग्रेजी फौज के द्वारा गिरफ्तार कर मुजफ्फरपुर जेल में बन्द कर दिये गये थे। जज ने इनको 27 वर्ष 3 महिने का सजा सुनाया। उन्हें केन्द्रीय कारा बक्सर स्थानान्तरित कर दिया गया। केन्द्रीय कारा बक्सर में दंडावेरी के साथ जेल में रहना पड़ा। जेल प्रशासन के अन्याय के विरुद्ध चार साथियों के साथ आमरण अनशन पर बैठ गये। कलक्टर के अनुरोध पर भी अनशन से नहीं झुके। अन्त में बिहार का अन्तिम गवर्नर रीजवी ने डा० राजेन्द्र प्रसाद को सूचना दी। मरनासम्म स्थिति में 45 दिनों के बाद 46वें दिन टमाटर और फल का रस जबरन नाक के द्वारा देकर अनशन तोड़वाया गया था । 27 महीना जेल जीवन के बाद हजारीबाग जेल में मुक्त हुए थे। 15 मई 1994 को क्राति की ज्वाला सदा के लिए गुम हो गयी।
स्व० अमीर सिंह का सारा परिवार राष्ट्र के बलीवेदी पर बलिदान होने के लिए सदा तैयार रहता था।
1984 के 26 जनवरी को इनके धर्मपत्नी स्व० लीला देवी ने अपनी गोद में दो वर्ष की बच्ची को लेकर आठ (8) महिलाओं के साथ हाजीपुर अनुमंडल कार्यालय पर तिरंगा झंडा फहराकर वन्दे मातरम का नारा बुलन्द करते हुए गोरी फौज द्वारा गिरफ्तार किये गये। केन्द्रीय कारा मुजफ्फरपुर में एक वर्ष तक जेल की सजा सुनाई। इनके अनुज स्व० शिवजी सिंह अंग्रेजों से युद्ध करते हुए कई वर्षों तक जेल में रहे। इतना ही नहीं आजाद भारत में भी इनका परिवार बलिदानी रहा। स्व० इन्दिरा गाँधी के अत्याबार एवं दमन के विरुद्ध स्व० जयप्रका नारायण ने व्यवस्था परिवर्तन के लिए छात्रों नौजवानों एवं किसानों और तमाम लोगों को भ्रष्ट शासन को उखाड़ फेकने का नारा दिया। जय प्रकाश नारायण के नारे पर छात्रों का आन्दोलन हुआ। बिदूपुर प्रखंड कार्यालय का घेराव करते हुए स्व० अमीर सिंह का छोटे बेटे अजीत कुमार अकेला 3 अक्टूबर 1974 में लीड कर रहे थे। तभी थानेदार के गोली का शिकार छात्र अजीत और विशेश्वर हो गए। वीर माता-पिता के वीर दो संतान ने अपना बलिदान दिया।