मुकेश सहनी ने कुढ़नी में भूमिहार समाज के नीलाभ कुमार को बनाया उम्मीदवार, खेला बड़ा दांव

पटना. कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव में भाजपा और जदयू को अब त्रिकोणीय मुकाबले में कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ सकता है। विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख मुकेश सहनी ने कुढ़नी से उम्मीदवार का ऐलान कर दिया। वीआईपी ने भूमिहार समाज के नीलाभ कुमार को अपने उम्मीदवार बनाया है। वे कुढ़नी के पूर्व विधायक साधु शरण शाही के पोते हैं। शाही चार बार के विधायक रहे थे और कुढ़नी से वर्ष 1990 में भूमिहार जाति से जीतने वाले आखिरी विधायक रहे। अब उनके पोते को मुकेश सहनी चुनाव मैदान में वीआईपी का टिकट दे सकते हैं।

नीलाभ कुमार ने वीआईपी नेता देव ज्योति से मुलाकात की है. मंगलवार को उनकी एक तस्वीर भी आई जिसमें नीलाभ और देव ज्योति एक दूसरे से मिल रहे हैं. सूत्रों के अनुसार दोनों की मुलाकात कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव को लेकर हुई. मुकेश सहनी भी कुढ़नी से उम्मीदवार उतारना चाहते हैं. वे किसी सशक्त दावेदार पर दावं खेलना चाहते हैं. ऐसे में नीलाभ कुमार को उतारने से कुढ़नी में बड़ा उलटफेर संभव है. 

दरअसल, कुढ़नी में जातीय समीकरणों के हिसाब से भूमिहार जाति के करीब 40 हजार मतदाता हैं. इस इलाके में मतदाताओं की संख्या के हिसाब से यहां भूमिहार सबसे प्रभावशाली हैं. वहीं करीब 25 से 30 हजार सहनी समाज के मतदाता हैं. ऐसे में अगर भूमिहार और मुकेश सहनी की जाति सहनी दोनों जातियों के मतदाता एक दूसरे के साथ आते हैं तो यह नीलाभ कुमार को बड़ी ताकत देने का काम करेगी. इससे कुढ़नी में त्रिकोणीय मुकाबला हो सकता है. जदयू के मनोज कुशवाहा और वैश्य समुदाय से आने वाले भाजपा के केदार गुप्ता को नीलाभ कड़ी टक्कर दे सकते हैं. 

अगर कुढ़नी में जातीय समीकरणों की देखें तो यहां सबसे ज्यादा वोट बैंक वाली जातियों में भूमिहार करीब 40 हजार हैं. वहीं वैश्य और मुस्लिम करीब 35 से 38 हजार के बीच माने जाते हैं. वहीं यादव 30 से 32 हजार के बीच हैं जबकि कुशवाहा भी इसी अनुपात में हैं. इसके अलावा करीब 25 हजार सहनी और लगभग 15 हजार पासवान मतदाता हैं. 3 लाख 10 हजार मतदाताओं वाले इस विधानसभा क्षेत्र में जीत-हर में हमेशा ही जातीय समीकरण सबसे अहम होते हैं. यही कारण है कि टिकट बंटवारे में हमेशा ही जातीय समीकरणों को साधा जाता है. 

कुढ़नी के इतिहास की अगर बात की जाए तो यहां लम्बे अरसे तक भूमिहार जाति के विधायक रहे. दरअसल, 1990 तक कुढ़नी की राजनीति में भूमिहार जाति को बड़ा अवसर हाथ लगता रहा. 1990 में आखिरी बार भूमिहार जाति से आने वाले साधु शरण शाही चुनाव जीते थे. वे चार बार यहां से विधायक रहे. लेकिन उसके बाद कुढ़नी का यह भूमिहारी किला दरक गया. वर्ष 1995 के चुनाव में बसावन भगत ने जनता दल के टिकट पर जीत हासिल की. माना गया कि उस चुनाव को अगड़ा-पिछड़ा एक नाम पर लड़ा गया. कुशवाहा समाज से आने वाले बसावन भगत को तब लालू यादव का भी साथ मिला और वे चुनाव जीत गए. 

वहीं 1995 के बाद से राजनीतिक दलों ने भी कुढ़नी से किसी भूमिहार को उम्मीदवार बनाने से कन्नी काट ली. वर्ष 2000 के चुनाव में जरुर एनडीए ने ब्रजेश ठाकुर को समर्थन दिया था, जो बाद में बालिका गृह कांड में फंसे और जेल में बंद हैं. उस चुनाव में राजद के टिकट से फिर से बसावन भगत ने जीत हासिल की. वहीं 2005 में दो बार और फिर 2010 में मनोज कुशवाहा ने जीत हासिल की. यह सिलसिला 2015 में टूटा जब वैश्य समुदाय से आने वाले केदार प्रसाद गुप्ता को भाजपा के टिकट पर जीत मिली. वहीं 2020 में बड़ा उलटफेर हुआ और राजद के अनिल सहनी ने मात्र 712 वोटों के अंतर से जीत हासिल की. 

अब उपचुनाव में अगर मुकेश सहनी ने नीलाभ को उम्मीदवार बनाया तो यहां त्रिकोणीय मुकाबला होना तय माना जा रहा है. इससे भाजपा और जदयू दोनों दलों के उम्मीदवारों को कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ेगा. वहीं कुढ़नी के बहाने एक बार फिर से मुकेश सहनी अपनी पूरी ताकत दिखा सकते हैं.