Maha kumbh 2025 : धरती से लेकर आसमान तक कुंभ मेला का रहेगा महत्व, 144 साल बाद बनने जा रहा ऐसा संयोग
जानिए प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेले का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व, जहां लाखों श्रद्धालु पवित्र संगम में स्नान करते हैं।
Maha kumbh 2025: प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेला एक भव्य हिन्दू तीर्थयात्रा और सांस्कृतिक महोत्सव है, जो हर 12 वर्षों में एक बार होता है। इस पवित्र आयोजन में विश्वभर से लाखों श्रद्धालु आते हैं और गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों के त्रिवेणी संगम पर पवित्र स्नान करते हैं। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, कुंभ के दौरान इन नदियों में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कुंभ मेला चार पवित्र स्थलों—हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज में होता है, लेकिन प्रयागराज का कुंभ विशेष महत्व रखता है क्योंकि इसका संबंध पौराणिक समुद्र मंथन की कथा से है। इस घटना के दौरान अमृत की कुछ बूँदें चार स्थानों पर गिरी थीं, जिनमें से एक स्थान प्रयागराज है, जो इस आयोजन को अत्यधिक पवित्र बनाता है। 2013 में पिछला पूर्ण कुंभ मेला प्रयागराज में आयोजित किया गया था, और 2019 में अर्ध कुंभ मेला हुआ। अब 2025 में एक और पूर्ण कुंभ मेले का आयोजन होगा, जहां 10 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के संगम में स्नान करने की संभावना है।
खगोलीय संयोग और कुंभ का विशेष प्रभाव
कुंभ मेला 2025 का सबसे अद्वितीय और आकर्षक पहलू इसका 144 वर्षों बाद हो रहा एक दुर्लभ खगोलीय संयोग है। कूर्म पुराण के अनुसार, इस समय ग्रह और नक्षत्र ऐसी स्थिति में होते हैं कि केवल मानव ही नहीं, बल्कि स्वर्ग के देवता भी अपने लोक में कुंभ स्नान करते हैं। इस विशेष खगोलीय संयोग से यह कुंभ और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। शास्त्रों के अनुसार, जब पृथ्वी पर कुंभ मेला होता है, तो देवलोक के द्वार भी खुल जाते हैं और वहां के देवगण अपने पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। यह संयोग आध्यात्मिक ऊर्जा को बढ़ाता है और कुंभ के पवित्र महत्व को और भी अधिक ऊंचाइयों पर ले जाता है।
कुंभ मेला से जुड़ी पौराणिक कथाएं
हिन्दू शास्त्रों, विशेष रूप से कूर्म पुराण और शिव पुराण, में कुंभ मेला की उत्पत्ति और महत्व को विस्तार से बताया गया है। इस महोत्सव की जड़ें देवताओं और असुरों के बीच अमृत प्राप्त करने के लिए हुए महान संघर्ष, जिसे समुद्र मंथन कहते हैं, में हैं। समुद्र मंथन के दौरान अमृत की चार बूँदें पृथ्वी पर चार स्थानों पर गिरीं, जो अब कुंभ के पवित्र स्थल माने जाते हैं। शिव पुराण में कहा गया है कि मकर संक्रांति के समय भगवान शिव स्वयं पृथ्वी पर आते हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। वह माता पार्वती के साथ साधारण वेश में प्रयागराज और वाराणसी जैसे प्राचीन नगरों में विचरण करते हैं और अपने भक्तों की परीक्षा लेते हैं। यह मान्यता कुंभ के आध्यात्मिक महत्व को और भी गहरा बनाती है।
कुंभ मेला 2025: क्या उम्मीद करें
कुंभ मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है, यह मानवता, संस्कृति और परंपराओं का अद्भुत संगम है। दुनिया भर से आने वाले लाखों तीर्थयात्री, संत, आध्यात्मिक गुरू और श्रद्धालु इस महोत्सव में हिस्सा लेते हैं और संगम में स्नान करते हैं। अनुमान है कि इस वर्ष 10 करोड़ से अधिक लोग कुंभ मेले में पवित्र स्नान करेंगे, और इस विशाल संख्या को संभालने के लिए व्यापक इंतजाम किए गए हैं। कुंभ मेले की एक प्रमुख विशेषता है विभिन्न संप्रदायों के साधु-संतों का भव्य जुलूस और धार्मिक आयोजन। इस मेले में नागा साधु, जो साधारणतया एकांत में रहते हैं, बड़ी संख्या में उपस्थित होते हैं, और उनका कुंभ में शामिल होना इस आयोजन को और भी रहस्यमय और दिव्य बनाता है।