NOTA ने किया निराश! कोर्ट ने बोला कि यह विचार कारगर नहीं हुआ है साबित, याचिका पर नहीं होगा विचार
सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी, सुनवाई के दौरान जो तथ्य सामने आए उसके बाद कोर्ट ने माना कि यह विचार कारगर साबित नहीं हुआ है चुनाव प्रक्रिया में कोई खास बदलाव या लाभ नहीं दिखा है

N4N डेस्क: देश की चुनावी प्रक्रिया में साल 2013 में शीर्ष अदालत ने NOTA (इनमें से कोई नहीं) विकल्प की शुरुआत की थी. अब इस पर सुप्रीम कोर्ट ने बोला कि यह विचार कारगर साबित नहीं हुआ है. उनके अनुसार, इस व्यवस्था से चुनाव प्रक्रिया में कोई खास बदलाव या लाभ नहीं दिखा है. इसके साथ ही, कोर्ट ने एक जनहित याचिका को भी तर्कहीन बताया, जिसमें यह मांग की गई थी कि अगर किसी सीट पर सिर्फ एक ही उम्मीदवार हो, तब भी चुनाव कराया जाए ताकि यह देखा जा सके कि उस उम्मीदवार को NOTA से ज़्यादा वोट मिलते हैं या नहीं.
बहुत कम लोगों ने दबाया NOTA
सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी जिसमें कहा गया था कि भले ही किसी क्षेत्र में सिर्फ एक ही उम्मीदवार हो, तब भी मतदान कराया जाए ताकि यह देखा जा सके कि उस प्रत्याशी को NOTA विकल्प से अधिक वोट मिलते हैं या नहीं.इस पर गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग की ओर से वकील राकेश द्विवेदी ने अदालत को बताया कि चुनाव में बहुत कम लोगों ने ही NOTA का बटन दबाया है. साथ ही, अभी तक जिन-जिन नेताओं की जीत हुई है, उन्हें NOTA से कहीं ज्यादा वोट मिले हैं.
बिना मुकाबले के जीतना मुश्किल
वही, चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट को बताया कि चुनाव में किसी उम्मीदवार का बिना मुकाबले जीतना बहुत मुश्किल है. पिछले 54 सालों में सिर्फ 6 बार ऐसा हुआ है, जब कोई नेता बिना किसी लड़ाई के जीता हो. इसके अलावा, 1951 से लेकर अब तक हुए 20 आम चुनावों में महज़ 9 मामलों में ही कोई चुनाव बिना मुकाबले हुआ.
याचिका पर नहीं होगा विचार
चुनाव आयोग ने बताया कि अब निर्विरोध चुनाव की घटनाएं बहुत कम हो गई हैं, जैसा कि आंकड़े भी साबित करते हैं. इस प्रकार, इस स्थिति में सुप्रीम कोर्ट को वर्तमान याचिका पर निर्णय नहीं लेना चाहिए. आयोग ने यह भी कहा कि NOTA का विकल्प केवल मतदान के दौरान ही सक्रिय रहता है.