Hindi Protest:मुंबई से लेकर मीरा रोड तक, महाराष्ट्र में फिर गरमी पकड़ता भाषा विवाद, ‘मराठी अस्मिता’ बनाम ‘भाषाई विविधता’

Hindi Protest:भारत की पहचान उसकी भाषाई बहुलता है सैकड़ों बोलियाँ, दर्जनों भाषाएँ और उनमें गुँथा हुआ सांस्कृतिक वैभव। लेकिन यही विविधता समय-समय पर विवाद का सबब भी बन जाती है।

Hindi Protest:मुंबई से लेकर मीरा रोड तक, महाराष्ट्र में फिर
महाराष्ट्र में फिर गरमी पकड़ता भाषा विवाद- फोटो : social Media

Hindi Protest:भारत की पहचान उसकी भाषाई बहुलता है सैकड़ों बोलियाँ, दर्जनों भाषाएँ और उनमें गुँथा हुआ सांस्कृतिक वैभव। लेकिन यही विविधता समय-समय पर विवाद का सबब भी बन जाती है। महाराष्ट्र में एक बार फिर से भाषाई राजनीति ने जोर पकड़ा है।ताज़ा घटनाक्रम में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना  कार्यकर्ताओं ने मुंबई के अंधेरी मेट्रो स्टेशन पर विरोध प्रदर्शन किया। स्टेशन पर हिंदी में लिखे विज्ञापन को लेकर एमएनएस कार्यकर्ताओं ने स्टेशन बोर्ड पर कालिख पोत दी और नाराज़गी जताई। उनका कहना था कि मुंबई, जो मराठी मानुष की धरती है, वहाँ हर सार्वजनिक स्थल पर मराठी भाषा का वर्चस्व होना चाहिए।

भाषाई तनाव कोई नया नहीं है। जुलाई 2025 में मीरा रोड पर 48 वर्षीय एक मिठाई दुकानदार पर एमएनएस से जुड़े कार्यकर्ताओं ने हमला कर दिया था, क्योंकि उसने ग्राहकों से मराठी में बात करने से इनकार कर दिया था। यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसके बाद सात लोगों पर प्राथमिकी दर्ज हुई और तीन को नोटिस जारी हुआ।इसी तरह, वीरार और पालघर इलाके में एक ऑटो-रिक्शा चालक को मराठी न बोलने पर पीटा गया। यह हमला शिवसेना से जुड़े कार्यकर्ताओं ने किया। रिक्शा चालक का कहना था कि उसे हिंदी या भोजपुरी बोलने का हक है, लेकिन ऐसा कहते ही उसे सड़क पर थप्पड़ मारे गए और सार्वजनिक माफी मंगवाई गई।

महाराष्ट्र की राजनीति में भाषाई अस्मिता लंबे समय से केंद्रीय मुद्दा रही है। शिवसेना का उभार भी इसी नारे से हुआ था “मराठी मानुष, मराठी अस्मिता”। एमएनएस ने इस राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाते हुए अब हर उस जगह पर विरोध करना शुरू किया है जहाँ उन्हें लगता है कि मराठी भाषा की अनदेखी हो रही है।मेट्रो स्टेशन पर हिंदी विज्ञापन का मामला इस असुरक्षा को और गहरा करता है। एमएनएस कार्यकर्ताओं का कहना है कि हिंदी का वर्चस्व मराठी पहचान को दबा रहा है। वहीं, दूसरी तरफ हिंदी भाषी समुदाय का तर्क है कि मुंबई देश की आर्थिक राजधानी है, यहाँ पूरे भारत से लोग आते हैं, इसलिए हिंदी और अंग्रेज़ी का प्रयोग स्वाभाविक है।

जुलाई 2025 में ही महाराष्ट्र सरकार के उस आदेश पर भी विवाद हुआ था, जिसमें प्राइमरी स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य किया गया। मराठी संगठनों का मानना है कि इस तरह के कदम से बच्चों में मराठी की पकड़ कमजोर होगी और धीरे-धीरे मराठी भाषा हाशिये पर चली जाएगी।वहीं, शिक्षाविदों का कहना है कि बच्चों को बहुभाषी बनाने से उनका दायरा बढ़ेगा और हिंदी का ज्ञान उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर अवसर दिलाएगा। लेकिन सियासत में तर्क से ज़्यादा भावना और अस्मिता का महत्व होता है, और यही वजह है कि यह विवाद थमता नज़र नहीं आ रहा।

लोनावला के महाराष्ट्र बैंक शाखा में भी ऐसी ही घटना हुई। एमएनएस कार्यकर्ताओं ने बैंक मैनेजर से मराठी में कामकाज करने की मांग की। जब एक कर्मचारी ने हिंदी के इस्तेमाल का बचाव किया, तो उसे भी पीटा गया।विश्लेषकों का मानना है कि महाराष्ट्र में भाषाई राजनीति को हवा देने के पीछे आगामी चुनावों का गणित छिपा है।एमएनएस, जो पिछले कुछ वर्षों से हाशिये पर चली गई थी, मराठी अस्मिता को भड़काकर अपना राजनीतिक आधार मज़बूत करना चाहती है।शिवसेना (UBT) और शिंदे गुट, दोनों ही मराठी वोट बैंक को साधने के लिए भाषा को चुनावी मुद्दा बनाने से पीछे नहीं हटेंगे।

वहीं बीजेपी और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियाँ इस विवाद में संतुलन की राजनीति साधना चाहती हैं, क्योंकि उनका समर्थन आधार हिंदी भाषी समुदाय में भी है।