जिसे औरंगजेब भी नहीं तोड़ सका! रहस्यमयी शिवलिंग की गूंज से कांपता है इतिहास, ASI भी हैरान
Religion: शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ, और इसके आदि-अंत का ज्ञान आज तक किसी को नहीं हो सका।...

सनातन संस्कृति की गूढ़ गाथाओं को अपने गर्भ में संजोए हुए है। धूरि जट रौद्र धाम, जो न केवल श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है, बल्कि अनंत रहस्यों से भी परिपूर्ण है। यह मंदिर दिखौली ग्रामसभा में अवस्थित है, जो सुल्तानपुर नगर से मात्र 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।धाम सुल्तानपुर जिले की पुण्यभूमि में स्थित है।
यहां का शिवलिंग साधारण नहीं, बल्कि स्वयंभू है अर्थात यह न तो किसी मानव द्वारा स्थापित किया गया है और न ही इसकी उत्पत्ति का कोई स्पष्ट प्रमाण है। ऐसी मान्यता है कि यह शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ, और इसके आदि-अंत का ज्ञान आज तक किसी को नहीं हो सका। भारतीय पुरातत्व विभाग ने जब वर्षों पहले इस शिवलिंग की गहराई और आयु का पता लगाने के लिए सर्वेक्षण किया, तो सभी यंत्र और विज्ञान भी इसके रहस्य के आगे निरुत्तर हो गए।
श्रावण मास में जब भोलेनाथ के जयकारे गूंजते हैं, तब इस धाम पर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ता है। नर-नारी, बाल-वृद्ध, सभी जातियों और वर्गों के भक्त इस स्थान पर एक समान श्रद्धा से पूजन-अर्चन करते हैं, जिससे यह मंदिर सामाजिक समरसता का भी प्रतीक बन गया है।
इतिहास के पन्नों में यह भी दर्ज है कि क्रूर मुगल शासक औरंगजेब ने इस मंदिर को ध्वस्त करने के कई प्रयास किए, परंतु शिवशक्ति के इस धाम को रौंद न सका। मंदिर परिसर में आज भी टूटी-फूटी मूर्तियाँ मौजूद हैं, जो उस काल के अत्याचारों की मूक गवाही देती हैं। लेकिन सनातन धर्म की जयकार तब हुई, जब 1935 में स्वर्गीय बाबू रूपनारायण सिंह ने इस मंदिर का पुनरुद्धार करवा कर इसे फिर से जीवनदान दिया।
धूरि जट रौद्र धाम केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि सनातन परंपरा का जीवंत प्रतीक है जहां चिरकाल से आराधना, संघर्ष और अध्यात्म की त्रिवेणी प्रवाहित हो रही है। यहां आने वाला हर श्रद्धालु शिव की साक्षात उपस्थिति का अनुभव करता है, और यह मंदिर आज भी अपने गर्भ में वह रहस्य समेटे है, जो विज्ञान की सीमा से परे है।