Devar Bhabhi Ki Shadi: इश्क का पंचनामा, ग्रामीणों ने पकड़ा रंगे हाथ, आशिक देवर की जबरन बजा दी शहनाई
Devar Bhabhi Ki Shadi: प्रेमी दिलीप ने कानूनी ज्ञान झाड़ते हुए कहा – "बिना तलाक के शादी कैसे करूं?" लेकिन गांववालों ने कहा – “बेटा, इश्क में IPC नहीं चलती, यहां तो पंचायत की पीठ चलती है।”

Devar Bhabhi Ki Shadi: इश्क़ पाश्चात्य अंदाज में पनपा लेकिन न्याय देसी डंडे से मिला। ऐसा ही नजारा देखने को मिला आरा जिले के कोयल गांव में, जहां प्रेमिका के बुलावे पर चोरी-छिपे मिलने पहुँचे दिलीप को ग्रामीणों ने पकड़कर प्रेमलीला का सीधे शादी के मंडप में बैठाकर ‘मूल्यांकन’कर डाला ।
अब आप सोच रहे होंगे कि बात थोड़ी फिल्मी लग रही है? "देसी पंचायत प्रोडक्शंस" की रियल-लाइफ ब्लॉकबस्टर है, जिसमें हीरो ने अपनी ही भाभी से इश्क किया, मौसेरे भाई के घर में प्रेमकहानी रची, फिर गांववालों के लाठी प्रेम से विवाह किया।
दिलीप नामक इस प्रेमवीर का रिश्ता अपने मौसेरे भाई सोनू की पत्नी रानी से था। पहले तो इश्क छिप-छिपाकर चला, फिर सोनू को रंगे हाथ पकड़कर दिलीप ने दिया वादा—"हर वो सुख दूंगा जो पति देता है"। लेकिन जब बात शादी की आई तो बाबू साहब ने पैर पीछे खींच लिए।
पंचायत बैठी ...कोयल गांव में । प्रेमी दिलीप ने कानूनी ज्ञान झाड़ते हुए कहा – "बिना तलाक के शादी कैसे करूं?" लेकिन गांववालों ने कहा – “बेटा, इश्क में IPC नहीं चलती, यहां तो पंचायत की पीठ चलती है।”
उधर पहला पति सोनू, जो कि अब इस लव ट्रायंगल से मुक्ति पा चुका था, बोला – “रखो इसे, मुझे नहीं चाहिए।" फिर क्या था, रानी का प्रेमभरा फैसला और गांव की छड़ीधारी अदालत का आशीर्वाद मिलते ही –लव मैरिज ऑफिशियल हो गई।
शिव मंदिर में मंत्रोच्चार हुआ, रजामंदी का पेपर बना, पंचायत के नेता गवाह बने और पूरे गांव ने विदाई की मिठाई खाई। दिलीप को अब "प्यारा प्रेमी" नहीं, "प्यारा पति" कहा जाएगा – बिना कोर्ट के खर्च, सीधा ग्राम पंचायत योजना के तहत विवाह सुविधा मुफ्त!
इधर गांववालों को भनक लगी, उधर लाठी उठी और पंचायत बैठ गई। लड़की का पति बोला –मैं तो पहले ही थक चुका हूं, अब दिलीप ही निभाए ये इश्क़। दिलीप मना करता रहा –“अभी तलाक नहीं हुआ,” पर गांववालों ने कहा – “कागज बाद में आएंगे, अभी बरात निकल रही है।”
फिर क्या था, पूरे गांव के सामने शिव मंदिर में शादी हुई, गांव की ‘गांव समिति’ ने सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कर दूल्हा-दुल्हन को विदा भी कर दिया।
शादी में न बैंड था, न बाजा, बस " लाठीचार्ज" और "पंचायती मंडप" का ठाठ था। और हाँ, रजामंदी का लेटर का गांव वाले इंतजार क्यों करते ...उदाहरण स्थापित करना था कि अगली बार कोई और प्रेमवीर आए, तो सीधे 'आई लव यू' से डंडे की थुराई के बाद 'फेरे तक' की ट्रेनिंग मिल सके।
जब प्रेम से शादी न हो, तो गांववालों की लाठी और पंचायत की जजमेंट... दोनों मिलकर प्रेमी के इंकार के बावजूद अवैध संबंध को शादी के मंदिर तक पहुंचा देते हैं। संदेश साफ था वाध रिश्ते में अवैध इश्क पंचायत से गुजरेगा तो इंकार के बावजूद विवाह का फैसला भी होगा वो भी कूटाई के बाद जनता की अदालत से!
रिपोर्ट- आशीष कुमार