Bihar Earthquake: बिहार समेत चीन, तिब्बत और नेपाल के कई हिस्सों में मंगलवार (7 जनवरी) को भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए। इन झटकों के कारण बिहार के लोग दहशत में आकर अपने घरों से बाहर निकल आए। भूकंप के बार-बार आने की इस घटना के पीछे वैज्ञानिक कारण और बिहार की भौगोलिक स्थिति महत्वपूर्ण हैं। आइए जानते हैं कि बिहार में भूकंप आने का कारण क्या है और यह राज्य किस सिस्मिक जोन में आता है।
बिहार भारत के उन हिस्सों में से एक है जो उच्च भूकंपीय सक्रियता वाले क्षेत्रों में आता है। बिहार की स्थिति भारत-नेपाल सीमा के पास हिमालयन टेक्टोनिक प्लेट से जुड़ी हुई है। इस क्षेत्र में कई फॉल्ट लाइन्स हैं, जो भूकंपीय गतिविधियों को बढ़ावा देती हैं। बिहार की जमीन के नीचे 6 सब-सरफेस फॉल्ट लाइन्स हैं, जो चारों दिशाओं में गंगा के समतल की ओर बढ़ती हैं। इन फॉल्ट लाइन्स के कारण बिहार में अक्सर भूकंप के झटके महसूस होते रहते हैं।
भूकंपीय क्षेत्र या सिस्मिक जोन क्या है?
सिस्मिक जोन या भूकंपीय क्षेत्र उन जगहों को कहा जाता है जहां भूकंप आने की संभावना होती है। भारतीय मानक ब्यूरो ने भूकंप के इतिहास और भौगोलिक स्थिति को देखते हुए देश को चार सिस्मिक जोन में विभाजित किया है:
सिस्मिक जोन II – सबसे कम भूकंपीय सक्रियता वाला क्षेत्र
सिस्मिक जोन III – मध्यम सक्रियता वाला क्षेत्र
सिस्मिक जोन IV – उच्च सक्रियता वाला क्षेत्र
सिस्मिक जोन V – सबसे अधिक सक्रियता वाला क्षेत्र, जहां भूकंप की संभावना सबसे ज्यादा होती है
बिहार में कौन-सी सिस्मिक जोन हैं?
बिहार राज्य के 38 जिलों में से कई जिले उच्च भूकंपीय सक्रियता वाले क्षेत्रों में आते हैं:
सिस्मिक जोन V:
बिहार के 8 जिले सिस्मिक जोन V में आते हैं, जो सबसे अधिक भूकंपीय गतिविधियों वाले क्षेत्र हैं। इनमें मधुबनी और सुपौल पूरी तरह से इस जोन में शामिल हैं।
सिस्मिक जोन IV:
बिहार के 24 जिले इस जोन में आते हैं। यह क्षेत्र भी भूकंपीय गतिविधियों के मामले में उच्च सक्रियता वाला है।
सिस्मिक जोन III:
बिहार के 6 जिले इस जोन में आते हैं, जहां मध्यम भूकंपीय सक्रियता होती है।
इसके अलावा, बिहार के कई जिले सिस्मिक जोन V और IV या सिस्मिक जोन IV और III के बीच आते हैं, जिससे यहां की भूकंपीय स्थिति और भी जटिल हो जाती है।
बिहार में भूकंप का इतिहास
बिहार ने कई बार भूकंप की त्रासदी का सामना किया है, लेकिन इनमें से सबसे भयानक और विनाशकारी भूकंप 15 जनवरी, 1934 को आया। इस भूकंप ने न केवल बिहार बल्कि पूरे भारत को हिला कर रख दिया था। रिक्टर स्केल पर इस भूकंप की तीव्रता 8.4 आंकी गई थी, जो इसे अब तक के सबसे भीषण भूकंपों में से एक बनाती है। यह भूकंप बिहार के साथ-साथ नेपाल और उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में भी विनाशकारी साबित हुआ।
1934 के भूकंप की भयावहता
यह 1934 का भूकंप इतना शक्तिशाली था कि इसके झटकों ने बिहार के कई शहरों और गांवों को पूरी तरह से तबाह कर दिया। इस भूकंप का केंद्र नेपाल के पास था, लेकिन बिहार इसका प्रमुख शिकार बना। पटना, मुजफ्फरपुर, दरभंगा और मोतिहारी जैसे शहरों में बड़े पैमाने पर इमारतें ध्वस्त हो गईं और हजारों लोग मारे गए। इस भूकंप से जुड़ी कहानियों और दस्तावेजों में इसकी विनाशकारी प्रकृति का उल्लेख मिलता है। उस समय सड़कों पर दरारें पड़ गई थीं, और कई गांवों का अस्तित्व समाप्त हो गया था। लोग इस प्रलयकारी घटना के बाद महीनों तक सदमे में रहे। इस विनाशकारी घटना ने उस दौर में आपदा प्रबंधन के अभाव को उजागर किया, और इसके बाद भारत में आपदा प्रबंधन के प्रयासों में सुधार की आवश्यकता महसूस की गई।
अन्य प्रमुख भूकंप: बिहार का भूकंपीय इतिहास
बिहार में समय-समय पर कई बड़े भूकंप आए, जो इसके भौगोलिक और टेक्टोनिक स्थिति को उजागर करते हैं:
1764 का भूकंप: 4 जून 1764 को आए भूकंप की तीव्रता 6.0 थी। हालांकि, उस समय के रिकॉर्ड सीमित होने के कारण इसके नुकसान का पूरा विवरण उपलब्ध नहीं है।
1833 का भूकंप: 23 अगस्त 1833 को आए इस भूकंप की तीव्रता 7.5 थी। यह भूकंप भी बिहार और नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्रों को प्रभावित करने वाला एक प्रमुख भूकंप था।
1988 का भूकंप: 21 अगस्त 1988 को आए भूकंप की तीव्रता 6.6 थी, जिसने बिहार के कई हिस्सों को प्रभावित किया। यह बिहार में आया आखिरी बड़ा भूकंप था, जिसने जनजीवन को काफी हद तक प्रभावित किया था।